गुजरात के मोरबी में हुए पुल हादसे के कड़ियों को अब पिरोने की जरूरत है। उससे पता चलता है कि इस मामले में हर स्तर पर लापरवाही हुई। लेकिन इस घटना को साजिश बताकर इसे दूसरा रुख देने की कोशिश की गई। चाहे वो इस पुल के रखरखाव का ठेका ओरेवा कंपनी को देने का मामला हो, चाहे इसे बिना अनुमति खोलने का मामला हो। इस मामले में सरकारी लीपापोती की जा रही है।
मोरबी नगर पालिका ने केबल पुल का ठेका 15 वर्षों के लिए ओरेवा ट्रस्ट को दिया था। ओरेवा ओधव पटेल की कंपनी है। ट्रस्ट या कंपनी के मालिकों के सीधे संबंध बीजेपी और आरएसएस नेताओं से हैं। इस संबंध में ओरेवा के मालिक का फोटो पीएम मोदी के साथ सोशल मीडिया पर सामने आया है। लेकिन सत्य हिन्दी अपनी तौर पर उसकी पुष्टि नहीं करता है तो इसलिए उस फोटो को सत्य हिन्दी इस रिपोर्ट में प्रकाशित नहीं कर रहा है। बहरहाल, ओरेवा के और भी बिजनेस हित गुजरात में हैं। वो सत्ता के नजदीक है। ओरेवा कंपनी घड़ी, मच्छरमार रैकेट और सीएफएल बनाती है। ओरेवा ट्रस्ट कई और भी सामाजिक कार्यों को मोरबी में अंजाम देता है।
मोरबी केबल पुल अंग्रेजों के समय का है। ओरेवा को ठेका मिलने के बाद यह करीब 8 महीने से बंद था। लेकिन रविवार को छठ त्यौहार की शुरुआत हुई थी तो कंपनी ने कमाई के चक्कर में इस पुल को खोल दिया। उसने पुल पर जाने के लिए 17 रुपये का पास जारी किया। पास की पर्चियों को सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है। एनडीटीवी की पत्रकार तनुश्री पांडे जो मौके पर आज सोमवार सुबह से हैं, ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की पुष्टि की है कि लोगों को इस पुल पर जाने के लिए ओरेवा कंपनी के कर्मचारियों से 17 रुपये का टिकट खरीदना पड़ता था। हालांकि उस पर पास शब्द भी लिखा है, जिसका संबंध टैक्स बचाने से भी हो सकता है।
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ओरेवा ने जो टिकट बेचे, उसका अर्थ ये है कि पुल पर भीड़ का नियंत्रण उसके हाथ में है। उसने जितने टिकट बेचे, उतने लोग पुल पर पहुंचे। पुलिस ने कल रात को बताया था कि हादसे के समय पुल पर 400 लोग थे। क्या यह कंपनी की जिम्मेदारी नहीं थी कि वो इतने लोगों को एकसाथ टिकट न बेचे जो वहां पहुंच जाएं।
स्थानीय नगर पालिका के अधिकारियों ने एनडीटीवी को बताया था कि इस पुल को बिना अनुमति खोला गया। आखिर कोई ठेकेदार इतना प्रभावशाली कैसे हो सकता है कि वो सरकारी एजेंसी या स्थानीय प्रशासन की परवाह ही न करे और पुल को खोल दे। ऐसी चीजों को एक निर्धारित प्रक्रिया होती है। क्या सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी से संबंधों के कारण नगरपालिका के अधिकारियों ने ओरेवा ठेकेदार को खुली छूट दे रखी थी। लेकिन क्या इससे उन अधिकारियों की जिम्मेदारी खत्म हो जाती है, जो इसे अनुमति देने के सीधे जिम्मेदार थे। उनकी मौन सहमति के बिना कोई प्रभावशाली ठेकेदार भी ऐसा नहीं कर सकता।
इस घटना के फौरन बाद कुछ स्वयंभू गवाह सामने आ गए। जिन्होंने मोरबी से लेकर अहमदाबाद तक बयान दे डाले कि इसमें जरूर कोई साजिश है। फौरन एक वीडियो सामने आ गया, जिसमें कुछ लोग उछलकूद और पैर मारते दिखाई दे रहे हैं। देश के एक नामी टीवी चैनल ने फौरन ही इस मुफ्त के वीडियो को लपक लिया और खबर दिखाई जाने लगी कि जरूर इसके पीछे कोई साजिश है। लेकिन गुजरात की चर्चित पत्रकार समृद्धि सुकनिया और अन्य पत्रकारों ने ट्वीट करके बताया कि यह वीडियो पुराना है और इसका रविवार शाम को हुए हादसे से कोई संबंध नहीं है। केबल पुल होने के कारण यह पुल हिलता रहता है। ऐसे में वीडियो जो पुराना है, किसी साजिश की ओर इशारा नहीं करते। ताज्जुब यह है कि पुलिस ने अपनी एफआईआर में साजिश वाली बात लिखी है।
Action should be taken against this person for sharing months old video. https://t.co/71PgLcviLj
— Samriddhi K Sakunia (@Samriddhi0809) October 30, 2022
अगर साजिश की थ्योरी को बाकी टीवी चैनल भी बढ़ाने लगते तो ओरेवा ठेकेदार इस घटना से साफ बच निकलता। लेकिन कुछ पत्रकारों की सक्रियता से यह संभव नहीं हो सका। गुजरात के गृहमंत्री संघवी के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि जब पुल खोलने की अनुमति नहीं थी तो उसे क्यों और किसके इशारे पर खोला गया। यह सवाल गुजरात सरकार का सोमवार सुबह से पीछा कर रहे हैं लेकिन उसका जवाब सामने नहीं आ रहा है।
अब तक इस्तीफा नहीं
अगर यह हादसा किसी गैर बीजेपी शासित राज्य में हुआ होता तो बीजेपी अब तक शोर मचा रही होती और उस राज्य के सीएम से इस्तीफा मांग रही होती। पश्चिम बंगाल में ऐसा हादसा होने पर बीजेपी ने सीएम ममता बनर्जी का इस्तीफा मांगा था। भ्रष्टाचार का हवाला दिया था। पीएम मोदी ने तो उस घटना को एक्ट ऑफ फ्रॉड कह डाला था। लेकिन अभी तक गुजरात के सीएम भूपेंद्र पटेल से किसी ने इस्तीफा नहीं मांगा है। किसी ने उन्हें इसके लिए जवाबदेह तक नहीं बनाया है। बीजेपी सरकार के तमाम मंत्री मोरबी में इसलिए जमा हैं कि शायद प्रधानमंत्री वहां पहुंचें तो वो चेहरा दिखा सकें।
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