घृणा और धार्मिक भावना भड़काने वाला बयान देने के मुद्दे पर समाजवादी पार्टी के विधायक आज़म खान की सज़ा का उत्तर प्रदेश की राजनीति पर दूरगामी परिणाम पड़ सकता है। एक तरफ़ बीजेपी के नेताओं का मानना है कि अब बड़बोले नेताओं को ज़ुबान पर लगाम देना पड़ेगा, तो दूसरी तरफ़ समाजवादी पार्टी के नेता मानते हैं कि इस तरह की सज़ा विपक्षी नेताओं की आवाज़ बंद करने का एक नया हथकंडा है। क्या सचमुच अब बेलगाम बोलने वाले नेता सुधर जायेंगे? क्या चुनावों के समय धार्मिक नफ़रत फैलाने वाले बयानों से मुक्ति मिल जाएगी?