जब से दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीग़ी जमात का कार्यक्रम हुआ है और उसमें कोरोना वायरस के पॉजिटिव मामले आए हैं तब से सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो और मैसेज शेयर किए जा रहे हैं जो नफ़रत को फैलाते हैं। जो एक समुदाय को दानवीकरण करने की कोशिश करता है। सुप्रीम कोर्ट में तो एक याचिका दाखिल करके आरोप लगाया गया है कि मीडिया का कुछ हिस्सा भी यही काम कर रहा है और इसको रोका जाए व उन पर कार्रवाई की जाए। लेकिन सोशल मीडिया का क्या? वहाँ ऐसी ग़लत सूचनाएँ और अफवाह फैलाने वाले तो बेलगाम हैं। यदि पाकिस्तान के डेढ़ साल पुराने वीडियो को देश में ताज़ा हुई घटना बताई जाए तो इसके पीछे मक़सद क्या हो सकता है?
हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल किया गया था। शेयर किए गए इस वीडियो में दिख रहा है कि ख़ून में सना एक व्यक्ति नंगा पड़ा है। इसके कैप्शन में लिखा गया था कि 'देखिए 14 दिन के एकांतवास में भी इन तबलीगी जमात के लोगों ने अश्लीलता और आतंक मचा रखा है'। फ़ैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट 'ऑल्ट न्यूज़' ने लिखा कि वीडियो को 'राज शर्मा कानपुर💯%FB' (@RajShar41438261) ने ट्विटर पर 7 अप्रैल को शेयर किया था। हालाँकि बाद में जब यह फ़ेक न्यूज़ साबित हो गया तो उसने उस ट्वीट को डिलीट कर दिया।
दूसरे कुछ सोशल हैंडल पर शेयर किए गए कुछ ज़्यादा समय के उस वीडियो में दिख रहा है कि वह व्यक्ति खिड़की के शीशे को अपने सर और हाथों से तोड़ रहा है। 'ऑल्ट न्यूज़' ने लिखा कि HindustanKi Awazlive फ़ेसबुक पेज से इसे शेयर किया गया। इसमें कैप्शन में लिखा गया था कि ये तबलीगी जमात का है और आतंक मचा रखा है... क्वरेंटाइन में जमकर किया हंगामा....। फ़ेक न्यूज़ साबित होने पर बाद में इस पेज से भी उस पोस्ट को डिलीट कर दिया गया।
इस वीडियो को वाट्सऐप, ट्विटर और फ़ेसबुक पर भी कई लोगों ने इसी दावे के साथ शेयर किया है।
जबकि सचाई यह है कि यह वीडियो भारत का है ही नहीं। न ही यह वीडियो हाल का है। 'ऑल्ट न्यूज़' ने फ़ैक्ट चेक कर बताया है कि यह वीडियो क्लिप एक बड़े वीडियो का एक छोटा सा हिस्सा है। यूट्यूब पर 26 अगस्त 2019 को अपलोड किए गए इसी वीडियो के टाइटल में लिखा गया है कि नंगा आदमी गुलशान ए हदीद कराची की मसजिद में घुसा। कराची पाकिस्तान का एक प्रमुख शहर है। 'ऑल्ट न्यूज़' ने वीडियो में दिख रहे शॉट को गूगल मैप में मिले इमेज के साथ इसका मिलान किया। इसमें पाया गया है कि यह घटना जामिया मसजिद खालिद बिन वालीद की है। 26 अगस्त से तीन दिन पहले इसी वीडियो को पोस्ट किया गया था जिसके डिस्क्रिप्शन में दावा किया गया था कि उस व्यक्ति की पहचान शफीक अब्रो के रूप में हुई थी जिसे घटना के बाद पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था। उसमें दावा किया गया कि वह एक पुलिस कमांडो का बेटा है और वह मानसिक रूप से असंतुलित है।
इससे साफ़ होता है कि यह वीडियो भारत का तो है ही नहीं। यह पाकिस्तान के कराची का है और वह भी काफ़ी पुराना। इस वीडियो में दिख रहे व्यक्ति का तब्लीग़ी जमात, कोरोना वायरस, क्वरेंटाइन से कुछ भी लेनादेना नहीं है। इस वीडियो को मुसलिमों को 'दानवीकरण' करने के मक़सद से झूठ फैलाया जा रहा है।
इसी तरह से मुसलिमों को निशाना बनाए जाने के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में एक दिन पहले ही यानी बुधवार को याचिका दायर की गई है।जमीयत उलेमा ए हिंद ने आरोप लगाया है कि मीडिया का कुछ हिस्सा तब्लीग़ी जमात के दिल्ली में पिछले महीने हुए कार्यक्रम को लेकर सांप्रदायिक नफ़रत फैला रहा है। इसने कोर्ट से अपील की है कि वह केंद्र सरकार को निर्देश दे कि 'फ़ेक न्यूज़' को फैलने से रोके और इसके व नफ़रत फैलाने के लिए ज़िम्मेदार मीडिया और लोगों पर सख़्त कार्रवाई करे। याचिका में दलील दी गई है कि तब्लीग़ी जमात की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का इस्तेमाल पूरे मुसलिम समुदाय पर दोष मढ़ने और 'दानवीकरण' करने के लिए किया जा रहा है।
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