जब से दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीग़ी जमात का कार्यक्रम हुआ है और उसमें कोरोना वायरस के पॉजिटिव मामले आए हैं तब से सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो और मैसेज शेयर किए जा रहे हैं जो नफ़रत को फैलाते हैं। जो एक समुदाय को दानवीकरण करने की कोशिश करता है। सुप्रीम कोर्ट में तो एक याचिका दाखिल करके आरोप लगाया गया है कि मीडिया का कुछ हिस्सा भी यही काम कर रहा है और इसको रोका जाए व उन पर कार्रवाई की जाए। लेकिन सोशल मीडिया का क्या? वहाँ ऐसी ग़लत सूचनाएँ और अफवाह फैलाने वाले तो बेलगाम हैं। यदि पाकिस्तान के डेढ़ साल पुराने वीडियो को देश में ताज़ा हुई घटना बताई जाए तो इसके पीछे मक़सद क्या हो सकता है?