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शहजाद पूनावाला के बयान से पूर्वांचली भड़के तो बीजेपी की क्या हालत होगी?

दिल्ली चुनाव में यदि पूर्वांचली किसी पार्टी के विरोध में हो गए तो चुनाव नतीजे कैसे होंगे, यह समझना क्या ज़्यादा मुश्किल है? बीजेपी नेता शहजाद पूनावाला के एक बयान को लेकर जिस तरह से आप ने हमला किया है और जिस तरह से बीजेपी नेता ही बैकफुट पर नज़र आ रहे हैं, उससे दिल्ली की राजनीति में हलचल को समझा जा सकता है। यदि यह मुद्दा बन गया तो क्या बीजेपी को दिल्ली में इस चुनाव में बड़ा नुक़सान हो सकता है?

इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले यह जान लें कि आख़िर शहजाद पूनावाला ने क्या विवादित बयान दे दिया है और इसको किस तरह से राजनीतिक मुद्दा बनाया जा रहा है। आम आदमी पार्टी ने बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला पर आरोप लगाया है कि उन्होंने नेशनल टीवी चैनल पर आप विधायक ऋतुराज झा को गाली दी है। आप ने इसको पूरे पूर्वांचली लोगों से जोड़ दिया और आरोप लगाया कि बीजेपी हमेशा पूर्वांचली लोगों के ख़िलाफ़ रही है। 

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दरअसल, एक टीवी डिबेट में बीजेपी के प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने ऋतुराज झा को लेकर आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया था। आप ने इस मुद्दे को लपक लिया। आप नेता संजय सिंह ने इस मामले को लेकर ऋतुराज झा के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें संजय सिंह ने कहा कि 'पहले दिल्ली में अभियान चलाकर पूर्वांचल के लोगों को रोहिंग्या और बांग्लादेशी बताकर वोट कटवाए गए और अब सारी सीमाएँ तोड़ते हुए बीजेपी प्रवक्ता ने नेशनल टीवी पर ऋतुराज झा को गाली दी'। 

आम आदमी पार्टी का आरोप है कि पूनावाला ने पूर्वांचली समुदाय के लोगों के खिलाफ आपत्तिजनक शब्द का प्रयोग कर दिल्ली में रह रहे लाखों पूर्वांचलियों का अपमान किया है। उन्होंने कहा कि यूपी-बिहार के लोगों को गाली देने का बीजेपी का पुराना इतिहास है। संजय सिंह ने कहा कि पूर्वांचली नेताओं के लिए यह परीक्षा की घड़ी है और सभी को इस मुद्दे पर बोलना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह इस मुद्दे को पूर्वांचली इलाक़ों में उठाएंगे और उन्हें बताएंगे कि अपने वोट की ताकत से कैसे अपने अपमान का बदला लिया जाए।

इसको मुद्दा बनता देख और पार्टी का नुक़सान होता देख बीजेपी नेता मनोज तिवारी ने शहजाद पूनावाला के बयान की निंदा की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो बयान जारी किया है। उन्होंने कहा, 'आजकल पूर्वांचल समाज को अपशब्द कहने का, गाली देने का जैसे फैशन चल पड़ा है। ...ये लोग अपनी मेहनत से अपनी पहचान बनाते हैं। ...हर राजनीतिक दलों के लोग ऐसा ही सोचेंगे। किसी के लिए भी जातिसूचक, समाजसूचक, प्रांतसूचक... इस तरह का अपशब्द बोलने से पहले 50 बार सोचना चाहिए लोगों को। मैं शुरू करना चाहता हूँ कल की डिबेट में बोली गई एक आपत्तिजनक बात से। जो एक चैनल पर बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला और आप प्रवक्ता ऋतुराज झा के बीच हुई। मैं कड़ी निंदा करता हूँ। बीजेपी प्रवक्ता से हम और हमारी पार्टी ऐसा अपेक्षा करती है कि उसे खुद को संस्कारी और सुविचारित रखना है।' उन्होंने आगे कहा, 

...इसलिए शहजाद पूनावाला के मुँह से निकली बात की मैं निंदा करता हूँ और पार्टी भी इसका संज्ञान लेगी, ऐसा मुझे विश्वास है। और शहजाद पूनावाला भी बिना किसी टीका टिप्पणी के क्षमा मांग लें, ऐसा मैं चाहता हूँ।


मनोज तिवारी, बीजेपी नेता

पूर्वांचली लोगों का असर क्या?

पूर्वांचली लोग दिल्ली चुनाव में कितना असर रखते हैं, इसको आप द्वारा मुद्दा बनाए जाने और बीजेपी के बैकफुट पर आने से समझा जा सकता है। दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए 5 फरवरी को मतदान है और 8 फरवरी को मतगणना होगी। चुनाव आयोग के अनुसार दिल्ली में क़रीब डेढ़ करोड़ मतदाता हैं। 

एक अनुमान के अनुसार सभी विधानसभा क्षेत्रों के कुल डेढ़ करोड़ मतदाताओं में से 33.5 प्रतिशत पूर्वांचली हैं। चांदनी चौक में उनकी उपस्थिति 24 प्रतिशत से लेकर पूर्वी दिल्ली में 41 प्रतिशत तक है। उत्तर पूर्वी दिल्ली सीट पर वे 40 प्रतिशत वोटों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि नई दिल्ली में 37 प्रतिशत, पश्चिमी दिल्ली में 34 प्रतिशत, उत्तर पश्चिमी दिल्ली में 31 प्रतिशत और दक्षिणी दिल्ली में 27 प्रतिशत वोट उनके खाते में हैं। 

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कोई कह सकता है कि महाबल मिश्रा चुनावी लड़ाई जीतने वाले पहले बिहारी थे, जिन्होंने 1996 में बाहरी दिल्ली के नसीरपुर से पार्षद के रूप में सीट जीती थी। हालाँकि उनसे पहले, एक पूर्वांचली लाल बिहारी तिवारी ने पूर्वी दिल्ली की घोंडा सीट से विधानसभा चुनाव जीता था और राज्य की भाजपा सरकार में मंत्री बने थे। इसके बाद तिवारी ने 1997 (उपचुनाव), 1998 और 1999 में लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीते। शीला दीक्षित जो सीएम बनी थीं, पूर्वी दिल्ली सीट पर भाजपा के लाल बिहार तिवारी से हार गई थीं।

बता दें कि पिछले तीन चुनावों से आप दिल्ली की सत्ता में है। विधानसभा चुनाव 2013 में आम आदमी पार्टी पहली बार चुनाव लड़ने उतरी थी। तब उसने 28 सीटों पर जीत हासिल की थी। उस चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और उसे 31 सीटें मिली थीं। कांग्रेस 8 सीटें जीतकर सत्ता से बाहर हो गई थी। हालाँकि, कांग्रेस ने बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए आप को समर्थन दे दिया था। अरविंद केजरीवाल की सरकार कुछ दिनों तक कांग्रेस के सहयोग से चली। 

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में आप ने रिकॉर्ड 67 सीटें जीती थीं। तब बीजेपी सिर्फ़ 3 सीटें ही जीत पाई थी। 2015 के चुनाव में कांग्रेस की हालत ख़राब थी और वह एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। 2020 में आप ने बड़ी जीत हासिल की थी। तब उस चुनाव में केजरीवाल की पार्टी को 70 में से 62 सीटें मिली थीं। बीजेपी 8 सीटों पर सिमट गई थी। पिछले चुनाव की तरह कांग्रेस जीरो पर ही रही। हालाँकि, आप को इस चुनाव में पाँच सीटों का नुक़सान हुआ था। 

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लोकसभा में बीजेपी, विधानसभा में आप आगे

विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हालत ख़राब दिखती है, लेकिन लोकसभा चुनाव में दिल्ली में स्थिति उलट हो जाती है। 2013 में आप को 30 फीसदी वोट मिले थे जबकि बीजेपी को 33 फीसदी। लेकिन इसके तुरंत बाद हुए 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 46 फीसदी और आप को 33 फीसदी वोट मिले। 2015 के विधानसभा चुनाव में आप को 54 फीसदी वोट मिले तो बीजेपी का वोट शेयर घटकर 32 फीसदी हो गया। 

फिर से 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 57 फीसदी तो आप को 23 फीसदी वोट मिले। 2020 के विधानसभा में आप को 54 फीसदी वोट मिले तो बीजेपी 39 फीसदी। 2024 का जब फिर से लोकसभा चुनाव हुआ तो बीजेपी को 54 फीसदी वोट मिले जबकि आप को सिर्फ़ 24 फीसदी। वैसे, कांग्रेस की स्थिति इस दौरान ख़राब ही बनी रही और उसका वोट शेयर तीनों दलों में सबसे कम ही रहा। 

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया।)
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क़मर वहीद नक़वी
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