'आयुष्मान भारत' योजना को यदि कोई राज्य नहीं लागू करना चाहे तो क्या यह बाध्यकारी होगी? सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें दिल्ली सरकार को राष्ट्रीय राजधानी में 'आयुष्मान भारत' योजना को लागू करने के लिए कहा गया था।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पीएम-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन यानी पीएम-एबीएचआईएम योजना के क्रियान्वयन के लिए 5 जनवरी तक केंद्र के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का निर्देश दिया था। इस को दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। दिल्ली सरकार इस योजना को दिल्ली में लागू नहीं करना चाहती है और तर्क देती रही है कि इसी तरह की स्वास्थ्य योजना दिल्ली में पहले से ही मौजूद है।
सुप्रीम कोर्ट में दिल्ली सरकार ने किस आधार पर चुनौती दी है, इसने क्या दलीलें दी हैं और सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर 'आयुष्मान भारत' योजना को दिल्ली लागू क्यों नहीं करना चाहती है?
केंद्र ने 2018 में देश के गरीब-जरूरतमंद लोगों को 5 लाख तक का फ्री इलाज देने के लिए प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत योजना शुरू की थी। दो राज्यों- दिल्ली और पश्चिम बंगाल को छोड़कर भारत के लगभग सभी राज्यों में यह योजना लागू है।
यह केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में लागू नहीं है। इसका मतलब है कि दिल्ली के लोग आयुष्मान भारत योजना के तहत 5 लाख तक के मुफ़्त इलाज का फायदा नहीं उठा सकते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि दिल्ली में लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिलता है। दिल्ली सरकार ने आयुष्मान भारत की तरह योजना चलाई है।
दिल्ली में क्या योजना?
दिल्ली आरोग्य कोष की ओर से सरकारी अस्पताल में 5 लाख रुपये तक के इलाज के लिए सरकार की ओर से मदद दी जाती है। इसका लाभ लेने के लिए परिवारों की सालाना आय 3 लाख रुपये से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
दिल्ली में जिन गरीब परिवारों की आय 1 लाख सालाना या उससे कम है उन्हें दिल्ली आरोग्य निधि के तहत डेढ़ लाख रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जाती है।
इसके साथ ही अरविंद केजरीवाल ने 18 दिसंबर 2024 को बुजुर्गों के लिए 'संजीवनी योजना' शुरू की। इसके तहत राजधानी के 60 साल से ज़्यादा उम्र के बुजुर्गों का इलाज सरकारी या प्राइवेट दोनों तरह के अस्पतालों में निशुल्क होगा। इस योजना का लाभ उठाने के लिए आय की कोई सीमा नहीं है और दिल्ली सरकार इलाज का पूरा खर्च उठाएगी।
पश्चिम बंगाल में स्वास्थ्य योजना
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
बहरहाल, दिल्ली में इस योजना को लागू करने का विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया है। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ ने हाईकोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगाते हुए हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली दिल्ली सरकार की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा।
दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि केंद्र की शक्तियाँ राज्य सूची में प्रविष्टि 1, 2 और 18 (यानी सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि) के तहत मामलों तक सीमित हैं। हालाँकि, हाई कोर्ट ने विवादित आदेश के तहत स्वास्थ्य क्षेत्र के संबंध में सरकारों की शक्तियों को फिर से परिभाषित किया है। सिंघवी ने हाई कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार को समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर करने पर सवाल उठाया। इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि यदि ऐसा होता है तो भारत सरकार पूंजीगत व्यय का 60% (और दिल्ली सरकार 40%) वहन करेगी, लेकिन चालू व्यय का 0% वहन करेगी। वरिष्ठ अधिवक्ता ने आगे दावा किया कि दिल्ली सरकार की अपनी योजना की पहुंच और कवरेज बहुत बड़ी है।
दलीलें सुनने के बाद पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया और उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने का निर्देश दिया।
बता दें कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने सरकारी अस्पतालों में आईसीयू बेड और वेंटिलेटर सुविधाओं की उपलब्धता के मुद्दे पर 2017 में शुरू की गई एक जनहित याचिका का स्वत: संज्ञान लेते हुए यह आदेश दिया था कि दिल्ली में आयुष्मान भारत योजना को लागू न करना उचित नहीं होगा, जबकि 33 राज्य व केंद्र शासित प्रदेश पहले ही इसे लागू कर चुके हैं। हाई कोर्ट ने कहा था कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि दिल्ली के निवासी इसके तहत मिलने वाली धनराशि और सुविधाओं से वंचित न हों, इस योजना को पूरी तरह से लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा, यह भी कहा गया कि एमओयू पर आदर्श आचार संहिता के बावजूद हस्ताक्षर किए जाएंगे, क्योंकि यह दिल्ली के निवासियों के लाभ के लिए है।
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