देश की राजधानी दिल्ली स्थित
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) ने विश्वविद्यालय परिसर में धरना देने पर 20,000 रुपये
का जुर्माना लगाने, किसी भी प्रकार की हिंसा में शामिल पाए जाने
50,000 रुपये तक का जुर्माना और उनके निष्कासन किए जाने
संबंधि नए नियमों को आलोचना के बाद वापस ले लिया है।
इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक जेएनयू की
वाइस चांसलर शांतिश्री डी. पंडित ने दावा किया कि उन्हें इस तरह का दस्तावेज तैयार
किए जाने और जारी किए जाने की जानकारी नहीं थी।
नए नियम वाले 10 पन्नों के दस्तावेज पर छात्रों और
शिक्षकों की कड़ी प्रतिक्रिया आने के बाद चीफ प्रॉक्टर रजनीश कुमार मिश्रा ने
बृहस्पतिवार रात में अधिसूचना जारी कर कहा कि जेएनयू छात्रों के लिए बनाए गये अनुशासन
और नियमों से संबंधित दस्तावेज को प्रशासनिक कारणों से वापस लिया जाता है।
जेएनयू की वाइस चांसलर शांतिश्री डी. पंडित ने
कहा कि मैं एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की वजह से हुबली में हूं और मुझे इस तरह के
किसी भी सर्कुलर की जानकारी नहीं थी। मुख्य प्रॉक्टर ने दस्तावेज जारी करने से
पहले मुझसे सलाह नहीं ली। मुझे नहीं पता था कि इस तरह का दस्तावेज तैयार किया जा
रहा है। मुझे खबरों के जरिए इसके बारे में पता चला और मैंने इसे वापस ले लिया है।
मिश्रा ने इस संबंध में जारी अधिसूचना में कहा कि
कुलपति के निर्देश पर दस्तावेज वापस ले लिया गया है। नए नियमों के तहत कहा गया था कि छात्रों पर धरना देने
को लेकर 20,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है और
उनका प्रवेश रद्द किया जा सकता है या यदि वे घेराव करते हैं तो 30,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है या वे हिंसा के आरोपी ठहराए जा
सकते हैं।
एनडीटीवी की खबर के मुताबिक नए नियम
3 फरवरी से लागू किए गए थे। यह वह समय था जब जेएनयू मे 2002
के गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी की संलिप्तता बताने वाली बीबीसी
की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की गई थी। इस दौरान प्रशासन ने कथित तौर पर बिजली
काटने सहित विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए विभिन्न तरीके आजमाने की कोशिश की थी।
इन नए नियमों को कथित तौर पर जेएनयू की कार्यकारी परिषद
द्वारा मंजूरी दी गई थी।
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