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भारतीय लोक संगीत में भी मौजूद है पश्चिमी रफ़्तार जैसी गूंज    

भारतीय लोक संगीत शैलियों पर काफ़ी स्लो यानि धीमा होने का आरोप लगता रहता है। ऐसा कहा जाता है कि आज की भागती दौड़ती ज़िंदगी में युवा फ़ास्ट यानि तेज़ और धूम -धड़ाके वाले संगीत पसंद करते हैं। 
पश्चिमी संगीत से तुलना करें तो आज के युवाओं को मोजर्ट जैसे पुराने संगीतकार की जगह माइकल जैक्सन जैसे तेज़ गायक और नर्तक पसंद हैं। भारतीय लोक संगीत शैलियों में भी उसी तरह की ऊर्जा मौजूद है। 
इसी कड़ी में गुजरात के "द ताप्ती प्रोजेक्ट" बैंड लोक संगीत की पुरानी अवधारणों को तोड़ रहा है। इसमें ऊर्जा है, रफ़्तार है और भारतीय संस्कृति की अविरल धारा  भी है। इसमें लोक संगीत और आधुनिक संगीत का एक मिश्रण भी है। 
फिर भी इसे गुजराती लोक संगीत और पश्चिम के धूम धड़क वाले संगीत का फ़्यूज़न या मिश्रण कहना काफ़ी नहीं होगा। इसमें गुजरात के सूरत इलाक़े के मिट्टी की सुगंध मौजूद है। सूरत इलाक़े में बहने वाली ताप्ती नदी की कलकल ध्वनि भी साफ़ सुनाई देती है। 
"द विलेज  स्क़वायर " ऐसे ही लोक गायकों को देश के दूर दराज़ के हिस्सों से ढूंढ कर ला रहा है। दिल्ली में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम "अमराई" महोत्सव में इस तरह के संगीत की झंकार सुनाई दी। इस उत्सव में " द ताप्ती प्रोजेक्ट " ने आधुनिक बैंड के साथ गुजराती लोक गीतों की ऊर्जा का एहसास तो कराया ही उसके व्यापक स्वरूप से परिचय भी करा दिया। 

जयन्तिया पहाड़ियों में रहने वाली ख़ासी जनजाति के संगीत में बजाए जाने वाले मंजीरा, दुई तारा के साथ कोबोन की संगत इसे विशिष्ट बनाती है। मुख्य गायिका अमाबेल की जादुई आवाज़ में एक तरफ़ हिमालय की ऊंचाइयों की झलक मिलती है तो दूसरी तरफ़ मेघालय के घाटियों की गहराई भी है। 

राजस्थान के घेवर खान और फ़िरोज़ खान के गायन में एक अलग ही अंदाज़ दिखाई देता है। वो एक ख़ास वाद्य यंत्र "कमायचा" पर ऐसे धुनों की रचना करते हैं जो राजस्थान के रेगिस्तान की ख़ुशबू को समेट लाता है। 
सरंगी और सितार परिवार के कमायचा में 17 तार होते हैं। इनमें तीन तार बकरी की आंतों और 14 स्टील के होते हैं।सारंगी की तरह इसे भी एक गज़ से बजाया जाता है। घेवर खान ने कमायचा पर पुराने कोयले से चलने वाली ट्रेन की ध्वनि निकाल कर दर्शकों को अचम्भित कर दिया। 
सालों पहले जब पोखरन से जैसलमेर के लिए पहली बार ट्रेन चली थी तब घेवर खान ने उसके स्वागत के लिए इस धुन की रचना की थी। उनका गायन पश्चिमी राजस्थान में जैसलमेर के आस पास बसे रेगिस्तान के लोक गीतों का अद्भुत उदाहरण है जिसमें पानी के लिए तड़प का एहसास भी है और जीवन का उमंग भी मौजूद है।

 घेवर और फ़िरोज़ खान ने पंजाब के लोक गीत "झूले लाल" को ठेठ राजस्थानी अंदाज़ में सुना कर यह साबित किया कि लोक गीत किसी राज्य या भाषा से बंधे नहीं हैं बल्कि उनका एक राष्ट्रीय आयाम भी मौजूद है।
 "द विलेज स्क़वायर" देश के अनेक पर्यटन स्थलों के लिए संगीत टूर (यात्रा) का आयोजन भी करता है। इस यात्रा पर जाने वाले लोगों के लिए स्थानीय लोक गीत और नृत्य का विशेष रूप से आयोजन किया जाता है। 
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शैलेश
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