सीसीटीवी फुटेज में साफ़ तौर पर जामिया के छात्रों को पिटाई करती हुई दिखने वाली पुलिस क्या लोगों की आँखों में धूल नहीं झोंक रही है? फुटेज में पुलिसकर्मी तोड़फोड़ भी करते दिख रहे हैं। सीसीटीवी कैमरे तोड़ते दिख रहे हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन ने भी सबूत दिए हैं। फिर भी बार-बार पुलिस इससे इनकार करती रही है। शुरुआत में लाइब्रेरी में घुसने से भी इनकार करने वाली इसी दिल्ली पुलिस ने अब कहा है कि वह विश्वविद्यालय के अंदर फँसे निर्दोष छात्रों को बचाने के लिए मजबूरी में घुसी थी। पुलिस की यह बात न तो सूत्रों से आई है और न ही किसी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में। दिल्ली पुलिस ने यह बात कोर्ट को लिखित में बताई है। पुलिस का यह अजीब तर्क है। अजीब इसलिए कि अब तक जितने भी वीडियो आए हैं क्या उसमें ऐसा कहीं लग रहा है कि पुलिस किसी छात्र को बचाने की कोशिश में लगी है? लाइब्रेरी में जिन छात्रों पर पुलिस लाठियाँ बरसाती दिख रही है, क्या पुलिस इन्हें बचा रही थी?
जामिया: दिल्ली पुलिस का एक और 'झूठ'- छात्रों को पीटने नहीं, बचाने गई थी
- दिल्ली
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- 16 Mar, 2020
शुरुआत में जामिया लाइब्रेरी में घुसने से भी इनकार करने वाली इसी दिल्ली पुलिस ने अब कहा है कि वह विश्वविद्यालय के अंदर फँसे निर्दोष छात्रों को बचाने के लिए मजबूरी में घुसी थी।

यह मामला 15 दिसंबर को नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ जामिया के छात्रों के प्रदर्शन से जुड़ा हुआ है। तब दिन में बसों सहित कई वाहनों को आग लगा दी गई थी। जामिया के छात्रों ने हिंसा में शामिल होने से इनकार किया था और इस मामले में बयान भी जारी किया था। लेकिन इसके बावजूद प्रदर्शन कर रहे छात्रों के ख़िलाफ़ कैंपस परिसर में पुलिस ने कार्रवाई की थी। इससे विवाद खड़ा हो गया था। विश्वविद्यालय के चीफ़ प्रॉक्टर वसीम अहमद ख़ान ने कहा था कि पुलिस एक तो विश्वविद्यालय प्रशासन की बिना अनुमति के ही घुसी, फिर छात्रों को पीटा गया और उन्हें कैंपस से बाहर निकाला गया।