दिल्ली में विधानसभा के चुनाव हैं और इसमें 1.47 करोड़ मतदाता वोट डालेंगे। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि चुनाव से पहले 10 महीने में यानी 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद मतदाताओं की संख्या 9.87 लाख बढ़ गई, जबकि 2009 के लोकसभा चुनाव और 2013 के विधानसभा चुनाव के बीच यानी 4 साल में सिर्फ़ 8.67 लाख ही बढ़ी थी। तो इस बार यह बढ़ोतरी अप्रत्याशित कैसे हो गई? क्या कोई गड़बड़ी की गई है या मतदाता एकाएक जागरूक हो गए? या फिर राजनेताओं ने लोगों में लोकतंत्र में वोट की अहमियत समझायी और उन्होंने अपने नाम मतदाता सूची में दर्ज करा ली?
कहीं ऐसा तो नहीं है कि दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों की संख्या एकाएक बढ़ गई है? वैसे, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में रोज़गार के अवसर, बेहतर सुविधाओं और संसाधनों के होने के कारण बड़ी तादाद में लोगों का आना और यहीं बस जाना बदस्तुर जारी है। यह वोटरों की संख्या में बढ़ोतरी में भी दिखता है। पिछले 27 सालों में मतदाताओं की संख्या क़रीब ढाई गुना ज़्यादा बढ़ गई है। 1993 में जहाँ 58.5 लाख मतदाता थे वहीं 2020 के चुनाव के लिए यह संख्या 1.47 करोड़ हो गई है। 1993 ही वह साल था जब दिल्ली को आंशिक राज्य का दर्जा मिला था और विधानसभा का गठन हुआ था। तब से अब तक 14 चुनाव हुए हैं जिसमें से सात लोकसभा के और इतने ही विधानसभा के चुनाव शामिल हैं।
चुनावों से पहले मतदाताओं की सूची अपडेट की जाती है। अब तक आई इन सूचियों में कई बार उतार-चढ़ाव देखे गए हैं। इसी को लेकर 'इंडिया टुडे' ने आँकड़ों का विश्लेषण किया है। इसके अनुसार, 1993 के विधानसभा चुनाव के बाद 1996 में मतदाताओं की संख्या में 38 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। 1993 और 2003 के विधानसभा चुनाव में तो मतदाताओं की संख्या कम हो गई थी। जबकि 2013, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों के दौरान मतदाताओं की बढ़ोतरी क़रीब 11 फ़ीसदी रही।
हालाँकि इस बीच 2013 में आम आदमी पार्टी के चुनाव मैदान में आने से राजनीति बदली है। पहले जहाँ बड़े दो दल चुनाव मैदान में होते थे वहीं अब तीन दलों के बीच लड़ाई है। और माना जाता है कि इसका असर लोगों के नाम मतदाता सूची में दर्ज कराने पर पड़ा है। इसी बीच 2020 के विधानसभा चुनाव के लिए जब मतदाताओं की सूची बनी तो अनपेक्षित उछाल देखा गया।
23 अप्रैल से 15 नवंबर के बीच 1.88 लाख और 15 नवंबर 2019 से 6 जनवरी 2020 तक 1.87 लाख मतदाता बढ़ गए। इसी तरह दस महीने में क़रीब 10 लाख मतदाता हो गए। तो ऐसा क्यों हुआ?
इस बारे में 2015 में सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च के शोधकर्ता भानु जोशी ने भी इसका विश्लेषण किया था। उन्होंने अपने विश्लेषण में पाया कि कुछ विधानसभा क्षेत्रों में संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई थी। इसके तीन कारण हो सकते हैं।
पहला तो यह कि चुनाव आयोग ने मतदाताओं को सूची में नाम जोड़वाने के लिए विशेष तौर पर अभियान चलाया। आयोग ने सिस्टमैटिक इलेक्टर्स एजुकेशन और इलेक्टोरल पार्टिशिपेशन जैसे कार्यक्रम किए और लोगों को इसके लिए उत्साहित किया। हालाँकि, चुनाव आयोग के इस कार्यक्रम से मतदाताओं की संख्या में चौंकाने वाली यह बढ़ोतरी, शायद न हुई हो।
दूसरा कारण यह हो सकता है कि चुनाव में आम आदमी पार्टी के आने से प्रतियोगिता बढ़ी है। हर दल के नेता स्थानीय बस्तियों में जाकर अपने-अपने समर्थन बढ़ाने के लिए मतदाताओं को मतदाता सूची में नाम जुड़वाने में जुटे रहे।
इसके साथ ही एक बड़ा कारण यह भी हो सकता है कि मतदाताओं की संख्या गड़बड़ी के कारण भी बढ़ गई हो। भानु जोशी ने कहा कि यह संभव है कि कुछ संदेहास्पद मतदाताओं ने अपना नाम जुड़वा लिया हो। लेकिन यह तय करने के लिए कि किस कारण से ऐसा हुआ, विधानसभा क्षेत्र स्तर पर विशेष शोध से ही यह पता चल सकता है।
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