दिल्ली की एक अदालत ने जंतर-मंतर पर कथित भड़काऊ और मुस्लिम विरोधी नारों के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए तीन लोगों की जमानत याचिका खारिज कर दी है। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि वीडियो में ऐसी भाषा का इस्तेमाल किया गया है जो अलोकतांत्रिक है और इस देश के किसी भी नागरिक से अपेक्षित नहीं है। इससे पहले इसी मामले में अदालत ने आरोपी बीजेपी सदस्य अश्विनी उपाध्याय को ज़मानत दे दी थी।
पिछले रविवार को जंतर मंतर पर एक कार्यक्रम 'औपनिवेशिक युग के क़ानूनों के ख़िलाफ़' हुआ था और उस कार्यक्रम के कई वीडियो सामने आए थे। भारतीय संसद से कुछ ही मीटर की दूरी पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुए उस मार्च के दौरान कथित तौर पर मुस्लिम विरोधी और उनके ख़िलाफ़ हिंसा के लिए उकसाने वाले नारे लगाए गए थे। इस मामले में दिल्ली पुलिस ने एफ़आईआर भी दर्ज की है। इस रैली में दिल्ली प्रदेश बीजेपी के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय भी शामिल हुए थे। काफ़ी आलोचनाओं के बाद मंगलवार को दिल्ली पुलिस ने अश्विनी उपाध्याय समेत 6 लोगों को गिरफ़्तार कर लिया था।
इसी मामले की सुनवाई करते हुए मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट उद्धव कुमार जैन ने गुरुवार को तीन आरोपियों प्रीत सिंह, दीपक सिंह हिंदू और विनोद शर्मा की ज़मानत याचिका खारिज कर दी थी।
दीपक और प्रीत के जमानत वाले मामले में अदालत ने कहा कि उसने वीडियो क्लिपिंग देखी है और ओपन कोर्ट में इसका कुछ हिस्सा चलाया गया है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, 'एक क्लिपिंग में आवेदक/अभियुक्त, जैसा कि वीडियो क्लिपिंग में आईओ द्वारा पहचाना गया है, को तीखी टिप्पणी करते हुए देखा जा सकता है, जो अलोकतांत्रिक है और इस देश के एक नागरिक से अपेक्षित नहीं है जहाँ धर्मनिरपेक्षता जैसे सिद्धांत के बुनियादी मूल्य संविधान में निहित हैं।'
अदालत ने यह माना कि नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वास्तव में नागरिकों को हर संभव सीमा तक है लेकिन उसने यह भी कहा कि 'हर अधिकार के साथ एक समान कर्तव्य जुड़ा होता है।' अदालत ने यह भी कहा-
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आईपीसी की धारा 153ए के पीछे का सिद्धांत धार्मिक/सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखना है और यह प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि जब वह खुद को व्यक्त करने के अपने अधिकार का इस्तेमाल करे तो वह धार्मिक सद्भाव को बनाए रखे। यह वास्तव में धर्मनिरपेक्षता का सकारात्मक पहलू है।
मुसलिम विरोधी नारे पर दिल्ली के कोर्ट की टिप्पणी
प्रीत के वकील रुद्र विक्रम सिंह और अश्विनी दुबे ने अदालत को बताया कि वह घटना के समय मौजूद नहीं थे या प्राथमिकी में नाम नहीं था। दीपक की ओर से पेश हुए वकील अवध कौशिक ने तर्क दिया कि उन्हें मामले में झूठा फँसाया गया है।
बता दें कि अदालत ने 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के वकील और भाजपा के पूर्व प्रवक्ता अश्विनी उपाध्याय को यह कहते हुए जमानत दे दी थी कि 'मौजूदा मामले में जाँच प्रारंभिक चरण में है, हालाँकि, इसका मतलब यह नहीं है कि किसी नागरिक की स्वतंत्रता को केवल दावे और आशंका से कम किया जा सकता है।'
इस मामले में अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि यह कार्यक्रम सेव इंडिया फ़ाउंडेशन की ओर से किया गया था और उनका इस कार्यक्रम से कोई लेना-देना नहीं है। उनके मुताबिक़, उन्हें वहाँ दूसरे लोगों की ही तरह बतौर मेहमान बुलाया गया था और वे 11 बजे कार्यक्रम में पहुंचे थे और 12 बजे वहां से लौट आए थे। उन्होंने यह भी कहा कि वे इस घटना में शामिल शरारती तत्वों को नहीं पहचानते।
जबकि उपाध्याय ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लोगों से भारत जोड़ो आंदोलन के नाम पर 8 अगस्त को दिल्ली चलो का आह्वान किया था और वह इसे लेकर खासे सक्रिय थे। उपाध्याय ने नफ़रती नारों के मामले में पुलिस में शिकायत देकर कहा है कि अगर वीडियो सही है तो नारे लगाने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जानी चाहिए। कार्यक्रम में बीजेपी नेता गजेंद्र चौहान भी शामिल थे।
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