सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा है कि सांसदों-विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों पर जल्द फैसला देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इसको लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही है। कोर्ट ने इस संबंध में देश के सभा हाईकोर्ट और निचली अदालतों को कई अहम निर्देश दिये हैं।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि ऐसे मामलों के लिए हाईकोर्ट में एक स्पेशल बेंच गठित की जानी चाहिए। साथ ही निचली अदालतें सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित क्रिमिनल केसों की निगरानी के लिए स्वत:संज्ञान लें।
सुप्रीम कोर्ट ने इस सुनवाई के दौरान कहा कि इस तरह के केस में निचली अदालतों को एक जैसा दिशा-निर्देश देना मुश्किल होगा। लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट लाईव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को संसद सदस्यों और विधानसभा सदस्यों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी के लिए कई निर्देश जारी किए।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इसको लेकर दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिए राज्यों में लागू समान दिशानिर्देश बनाना मुश्किल है।
अनुच्छेद 227 के तहत अपनी शक्तियों को लागू करके ऐसे मामलों की प्रभावी निगरानी के लिए ऐसे उपाय विकसित करने का काम हाईकोर्ट पर छोड़ दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों-विधायकों पर लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे की निगरानी के लिए तीन अहम निर्देश जारी किये हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने जारी किये तीन अहम निर्देश
पहले निर्देश के मुताबिक हाईकोर्ट सांसदों-विधायकों के खिलाफ आपराधिक मुकदमों की निगरानी के लिए एक विशेष पीठ का गठन करेंगे। इसकी अध्यक्षता या तो संबंधित हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस करेंगे या चीफ जस्टिस की तरफ से नामित बेंच द्वारा की जाएगी। लाईव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने दूसरा अहम निर्देश देते हुए कहा कि स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई करने वाली विशेष पीठ आवश्यकता महसूस होने पर मामले को नियमित अंतराल पर सूचीबद्ध कर सकती है। हाईकोर्ट मामलों के जल्दी और प्रभावी निपटान के लिए आवश्यक आदेश और निर्देश जारी कर सकता है।
विशेष पीठ अदालत की सहायता के लिए एडवोकेट जनरल या अभियोजक को बुलाने पर विचार कर सकती है। तीसरा निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट को ऐसे न्यायालयों को विषयगत मामलों को आवंटित करने की जिम्मेदारी वहन करने के लिए प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश की आवश्यकता हो सकती है। हाईकोर्ट ऐसे अंतरालों पर रिपोर्ट भेजने के लिए प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश को बुला सकता है।
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सीजेआई पहले भी लंबित मामलों पर जता चुके हैं चिंता
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ कोर्ट में लंबित मामलों को लेकर पहले भी अपनी चिंता जता चुके हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने 3 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामलों को सुलझाने में देरी और सुनवाई टालने पर चिंता जताई थी।उस दिन उन्होंने वकीलों से कहा था, हम नहीं चाहते कि सुप्रीम कोर्ट तारीख पर तारीख वाली अदालत बन जाए। उन्होंने तीन नवंबर को कहा था कि सुप्रीम कोर्ट में हर दिन औसतन 154 मामले टाले जाते हैं। अगर इतने सारे मामले एडजर्नमेंट में रहेंगे तो यह सुप्रीम कोर्ट की अच्छी छवि नहीं दिखाता है।
उन्होंने इसके साथ ही वकीलों से कहा था कि वकील भी जब तक जरूरत न हो, तब तक कोर्ट की सुनवाई टालने की मांग नहीं किया करें। उनकी इस टिप्पणी का कारण एक केस था जिसमें पेश हुए वकील की ओर से एडजर्नमेंट की मांग पर उन्होंने नाराजगी जताते हुए यह बात कही थी। उनका कहना था कि बार-बार केस की सुनवाई टालने से न्याय की आस में कोर्ट आने वालों को परेशानी होती है।
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