भले ही केंद्र व दिल्ली सरकार और विशेषज्ञ इस बात को कह रहे हों कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर कमजोर पड़ रही है और हालात पूरी तरह नियंत्रण में हैं। लेकिन एक रिपोर्ट बताती है कि कोरोना को हल्के में लेने की क़तई ज़रूरत नहीं है।
आने वाले दिन ठंड के हैं और इन दिनों में आमतौर पर अधिकांश लोगों को सर्दी, जुकाम-बुखार रहता है। भारत जैसे लचर स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देश में कई राज्यों में अब तक कोरोना की टेस्टिंग का बुरा हाल है। ऐसे में रोजमर्रा के काम-काज के बोझ से दबा आदमी टेस्ट कराने नहीं जा पाता और सर्दी, जुकाम-बुखार को यह कहकर नज़रअंदाज कर देता है कि ऐसे लक्षण तो हर साल होते हैं।
परेशानी की बात यह है कि जब तक तबीयत ज़्यादा नहीं बिगड़ जाती, वह टेस्ट कराने नहीं जाता और तब तक वह इस वायरस का संक्रमण कई जगह फैला चुका होता है। इसलिए बेहद सतर्क रहने की ज़रूरत है और एक ताज़ा रिपोर्ट इसे लेकर आगाह करती है।
नेशनल सेंटर फ़ॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) द्वारा विशेषज्ञों के दिशा-निर्देशन में बनाई गई इस रिपोर्ट में दिल्ली सरकार को सलाह दी गई है कि वह अस्पतालों में बिस्तरों का इंतजाम कर ले। रिपोर्ट कहती है कि ठंड के दिनों में हर दिन 15 हज़ार नए मामले रोज आ सकते हैं।
ये ऐसे रोगी हो सकते हैं जिन्हें सांस की परेशानी हो सकती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बाहर से भी बड़ी संख्या में मरीज दिल्ली में आ सकते हैं और इसके अलावा त्योहारों के दौरान भी लोगों के इकट्ठे होने के कारण मरीजों की संख्या बढ़ सकती है।
एनसीडीसी ने कोरोना की रोकथाम को लेकर संशोधित की गई अपनी रणनीति में कहा है कि दिल्ली में कोरोना से होने वाली मौतों की दर 1.9 फ़ीसदी है, जो कि राष्ट्रीय औसत 1.5 फ़ीसदी से ज़्यादा है। एनसीडीसी ने कहा कि मौतों की दर को कम करना इस महामारी से लड़ने के दौरान हमारे प्रमुख लक्ष्यों में से एक होना चाहिए।
इस रिपोर्ट के आने के बाद चिंता बढ़नी लाजिमी है क्योंकि 15 हज़ार केस न सही, इस आंकड़े के 70 फ़ीसदी भी अगर संक्रमण के मामले आते हैं तो हालात को संभालना आसान नहीं होगा। क्योंकि इस महामारी के इलाज की कोई कारगर वैक्सीन अभी तक नहीं आई है।
बच्चों से भी फैलता है संक्रमण: शोध
अब तक जिन रिपोर्टों में यह कहा जा रहा था कि बच्चों से कोरोना संक्रमण फैलने का ख़तरा कम होता है, यह बात अब एक शोध में ग़लत साबित हुई है। इस शोध के अनुसार, भारत में कोरोना संक्रमण बच्चों से भी उतना ही फैलता है। यह शोध प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस में प्रकाशित हुआ है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बच्चे कोरोना संक्रमण को फैलाते हैं।
उम्मीद की किरण है स्टेरॉयड
दुनिया भर के डॉक्टरों का एक समूह दावा कर रहा है कि कोरोना से होने वाली ज़्यादातर मौतों का कारण पता लगाया जा चुका है और सदियों से प्रचलित एक दवा को सही समय पर और सही मात्रा में देकर बड़ी संख्या में रोगियों का जीवन बचाया जा सकता है।
डब्ल्यूएचओ और भारत में आईसीएमआर ने इसके उपयोग की अनुमति दे दी है। लेकिन इसकी डोज़ को तय करने के लिए एक साधारण क्लीनिकल ट्रायल की ज़रूरत है जिसको लेकर आईसीएमआर ने चुप्पी साध रखी है। दवा की डोज़ और उपयोग का प्रोटोकोल तय नहीं होने के कारण डॉक्टर दुविधा में हैं।
स्टेरॉयड नाम से प्रचलित ये दवा कई पीढ़ियों से अस्थमा, दमा, फेफड़े तथा सांस के रोगियों को दी जाती है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प को कोरोना के इलाज के लिए यही दवा दी गई और वह तेजी से स्वस्थ हो गए।
इंग्लैंड में लंबे समय से काम कर रहे भारतीय मूल के डॉक्टर अशोक जैनर का कहना है कि कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड एक चमत्कारिक दवा की तरह सामने आयी है। भारत में इस पर थोड़े और क्लीनिकल ट्रायल करके इसके उपयोग के नियम तय कर दिए जाने चाहिए क्योंकि इससे बेहतर कोई और दवा अभी उपलब्ध नहीं है।
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