तो आख़िर अलका लांबा ने भी आम आदमी पार्टी (आप) का साथ छोड़ ही दिया। अलका ने पार्टी का साथ छोड़ना ही था। पिछले नौ महीनों से वह जिस तरह से पार्टी में रह रही थीं, उससे लग रहा था कि वह पार्टी में रहकर भी पार्टी की नहीं हैं। उन्हें पार्टी के सारे सोशल मीडिया ग्रुप से बाहर कर दिया गया था। उनके विधानसभा क्षेत्र चांदनी चौक में अगर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल आते थे तो उन्हें बुलाना तो दूर अधिकारिक रूप से सूचना भी नहीं दी जाती थी। वह आठ महीने से केजरीवाल से मिलने की कोशिश कर रही थीं लेकिन उन्हें मिलने का वक़्त नहीं दिया जा रहा था।
अलका लांबा का जाना, क्या अहंकारी हो गए हैं केजरीवाल!
- दिल्ली
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- 7 Sep, 2019

क्या कभी केजरीवाल ने यह सोचने की ज़रूरत समझी कि आख़िर उनका साथ छोड़ने वालों की लिस्ट लंबी क्यों होती जा रही है। शायद नहीं।
यहां तक कि सरकार और पार्टी में नंबर दो माने जाने वाले उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी उनसे मिलना गवारा नहीं समझते थे। लोकसभा चुनाव के प्रचार में केजरीवाल ने उन्हें अपनी कार में बिठाने से इनकार कर दिया था और उनसे कहा गया था कि वह काफ़िले में केजरीवाल की कार के पीछे पैदल चलें। उनके इलाक़े में सीसीटीवी लगाने की योजना को रोक दिया गया था। तंग आकर विधायक लांबा को ख़ुद मुख्यमंत्री निवास के सामने दो बार धरने पर बैठना पड़ा था।