250 वार्ड वाले दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) में अपना मेयर बनाने के लिए 126 पार्षदों का साथ चाहिए। आम आदमी पार्टी इस आंकड़े से ज्यादा वार्ड जीत चुकी है। लेकिन उसे अपने पार्षदों में सेंध लगने का डर हो सकता है। चुनाव में आम आदमी पार्टी को 134, बीजेपी को 104 और कांग्रेस को 9 सीटों पर जीत मिली है।
वैसे तो यह दोनों ही दलों के लिए चिंता की बात है क्योंकि किसी के भी पार्षदों में सेंध लग सकती है। लेकिन पिछले कुछ सालों में बीजेपी पर आरोप लगे हैं कि वह विपक्षी दलों की सरकारों को गिराने के लिए उनके विधायकों में तोड़फोड़ करती है इसलिए आम आदमी पार्टी के लिए अपने पार्षदों को सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती है।
इस बारे में आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज का कहना है कि पार्टी ने सभी पार्षदों को निर्देश दिए हैं कि अगर उनसे कोई भी संपर्क करता है तो उसकी रिकॉर्डिंग कर लें और हम ऐसे लोगों का पर्दाफाश करेंगे।
ऐसे में दिल्ली में दोनों दलों के पार्षदों में सेंध भी लग सकती है क्योंकि नगर निगम में दल बदल कानून लागू नहीं होता है। इसका मतलब पार्षद अपना पाला बदल सकते हैं क्योंकि उन्हें अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता। जबकि लोकसभा और विधानसभा में विधायक-सांसद ऐसा नहीं कर सकते।
बीजेपी और आम आदमी पार्टी, दोनों पार्टियों को इस बात का डर है कि उनके पार्षद उन्हें छोड़कर दूसरे राजनीतिक दल के साथ जा सकते हैं। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान सहित कुछ अन्य नेताओं के साथ बैठक की है।
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एमसीडी का चुनाव बेहद प्रतिष्ठा का चुनाव है और देश की राष्ट्रीय राजधानी के नगर निगम में अपना मेयर बनाने के लिए पिछले कई महीनों से बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच तगड़ी जोर आजमाइश चल रही थी।
आम आदमी पार्टी ने बीजेपी पर नगर निगम चुनाव को टालने का आरोप लगाया था क्योंकि पहले यह चुनाव इस साल मार्च-अप्रैल में प्रस्तावित थे लेकिन बाद में केंद्र सरकार ने कहा था कि वह दिल्ली के तीनों नगर निगमों को एक करने जा रही है।
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