मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट बैठक में वकीलों की सूची को यह कह कर खारिज कर दिया गया कि इससे स्वतंत्र न निष्पक्ष जाँच नहीं हो पाएगी।
पुलिस की भूमिका पर सवाल
कैबिनेट ने कहा, ‘ये आरोप लगे हैं कि इस मामले में दिल्ली पुलिस तटस्थ नहीं रही है, वह पूर्वग्रह से ग्रस्त रही है। न्यायपालिका ने भी दिल्ली दंगों की जाँच में पुलिस की भूमिका पर प्रतिकूल टिप्पणियाँ की हैं।’ सरकार ने यह भी कहा है कि“
‘यह ज़रूरी है कि न्यायालय के सामने सभी तथ्य निष्पक्ष रूप से पेश किए जाएं इसके लिए आवश्यक है कि सरकारी वकील दिल्ली पुलिस के प्रभाव से मुक्त रहें।’
दिल्ली सरकार
वकीलों की सूची
बता दें कि दिल्ली पुलिस ने दंगों में पैरवी करने के लिए 6 वकीलों की एक टीम तैयार की है। इसमें सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता, अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल अमन लेखी भी शामिल हैं।क्या है पेच?
इसमें पेच यह है कि दिल्ली सरकार की यह राय दिल्ली के लेफ़्टीनेंट गवर्नर अनिल बैजल की राय से मेल नहीं खाती है। उन्होंने इसके पहले राज्य सरकार से कहा था कि वह दिल्ली पुलिस के इस पैनल पर अपनी मुहर लगा दे।लेफ़्टीनेंट गवर्नर को यह हक़ है कि वह संविधान के अनुच्छेद 299 ए ए (4) का इस्तेमाल कर इस मामले को राष्ट्रपति के पास भेज दें।
क्या करेंगे एल-जी?
अब सवाल यह है कि क्या अनिल बैजल राष्ट्रपति के पास इसे भेज देंगे? इस मुद्दे पर लेफ़्टीनेंट गवर्नर और दिल्ली सरकार के बीच ठन सकती है, इसे इससे समझा जा सकता है कि अरविंद केजरीवाल सरकार ने इसके पहले यह कह कर बैजल की आलोचना की है कि वह सरकार के कामकाज में बहुत ही अधिक हस्तक्षेप करते रहे हैं।दिल्ली सरकार ने कहा है कि वकीलों के पैनल का मामला सामान्य है, ‘रेअरेस्ट ऑफ़ द रेअर’ नहीं है, लिहाज़ा, लेफ़्टीनेंट गवर्नर को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
कैबिनेट का फ़ैसला
इस बैठक में कैबिनेट ने दिल्ली सरकार के गृह मंत्रालय को अधिकृत किया कि वह सबसे अच्छे वकीलों को नियुक्त करे जो सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में सरकार क पैरवी करें।यह मामला ऐसे समय आया है जब दिल्ली पुलिस के समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ भेदभावपूर्ण रवैया से जुड़ी खबरें आई हैं। दिल्ली पुलिस ने जो चार्जशीट पेश किए हैं, उन पर एक नज़र डालने से यह साफ़ हो जाता है कि वह भेदभापूर्ण रवैया अपना रही है।
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