‘अवतार किशन हंगल तो बड़ा ख़ूबसूरत नाम है! आपने एंग्लोसाइज़ करके इसे ए के हंगल क्यों कर लिया? क्या फ़िल्म इंडस्ट्री में घुसपैठ की ख़ातिर?’
अवतार किशन हंगल को आप नहीं जानते!
- सिनेमा
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- 15 Aug, 2020

हंगल साहब बताते हैं कि कराची में उनकी टेलरिंग की दुकान नहीं चली। कुछ दिनों बाद कराची के पॉश इलाक़े में बसी 'ईसरदास एंड संस' की आलीशान टेलरिंग शॉप में वह 4 सौ रुपये महावार की तनख्वाह पर 'चीफ़ कटर' की नौकरी पा गए। शॉप के ग्राहकों में अँग्रेज़ फौजी अफ़सर और भारतीय ‘प्रबुद्ध’ होते थे।
मेरा सवाल सुनकर वह ज़ोर से ठहाका लगाते हैं।
उन्हें लेकर मेरे भीतर कुछ देर पहले घर कर आए मुग़ालते, एक-एक करके टूटते चले गए।
यह सन 2002 का वाक़या है। हंगल साहब हाल ही में 'इप्टा' के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। हमारी पहली मुलाक़ात थी। सड़क पर हमारी टैक्सी जितनी तेज़ रफ़्तार से दौड़ रही थी, उससे ज़्यादा रफ़्तार से मेरा दिमाग़ उनकी परिकल्पना की तलाश में भागा जा रहा था। मैं अपनी डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म में उनका प्रोफ़ाइल ढूँढ रहा था। पचहत्तर से ज़्यादा वसंत पार कर चुके ए के हंगल कभी झुकी कमर वाले एक जीर्ण-शीर्ण बूढ़े का अक्स लेकर उभरते, कभी पति से दुखी होकर ससुराल से लौटी बेटी के कमर झुके 'अभिमान' का पिता बनकर। अचानक बिना पेंशन गुज़र-बसर करता 'दीवार' का एक फटीचर रिटायर्ड स्कूल टीचर मुँह लटकाये सामने आ जाता है तो कभी टटोल-टटोल कर आगे खिसकते 'शोले के नेत्रहीन इमाम की तसवीर दिखाई देने लग जाती है। बहुत सी आकृतियाँ और उनके कोलाज एक-दूसरे के ऊपर चढ़ते-उतरते गड्डमड्ड होते जाते हैं।
यह उनके कोई रिश्तेदार का घर है। शायद भांजे का। नयी दिल्ली के 'साउथ एक्स' की एक कोठी के बड़े से ड्राइंग रूम में मुझे ले जाकर बैठा दिया जाता है।