वे सरापा ग़ज़ल थीं। उन जैसे ग़ज़लसरा न पहले कोई था और न आगे होगा। ग़ज़ल से उनकी शिनाख्त है। ग़ज़ल के बिना बेगम अख्तर अधूरी हैं और बेगम अख्तर के बगैर ग़ज़ल। देश-दुनिया में ग़ज़ल को जो बेइंतिहा मकबूलियत मिली, उसमें बेगम अख्तर का बड़ा रोल है। एक दौर में जब ग़ज़ल बादशाहों, नवाबों के दरबार की ही जीनत होती थी, ख़ास लोगों तक ही महदूद थी, उसे उन्होंने आम जन तक पहुँचाया। बेगम अख्तर ने बतलाया कि ग़ज़ल सिर्फ़ पढ़ी ही नहीं जाती, बल्कि इसे संगीत में ढालकर गाया भी जा सकता है।
बेगम अख्तर: ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया...
- सिनेमा
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- 7 Oct, 2020

बेगम अख्तर का आज जन्मदिन है। उनका जन्म सात अक्तूबर 1914 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद ज़िले में हुआ था।
बेगम अख्तर ने जो भी गाया, उनकी पुरकशिश आवाज़ ने इन ग़ज़लों को अमर कर दिया। ग़ज़ल को क्लासिकल म्यूजिक में वह मर्तबा दिलवाया, जिसकी वह हकदार थी। वे बेगम अख्तर ही थीं, जिन्होंने सबसे पहले कहा, ग़ज़ल भारतीय शास्त्रीय संगीत की परम्परा का हिस्सा है। एक अहम बात और जो उन्हें अजीम बनाती है। उस दौर में जब महिलाएँ साहित्य, संगीत और कला हर क्षेत्र में कम दिखलाई देती थीं, तब बेगम अख्तर देश की उन चुनिंदा गायिकाओं सिद्धेश्वरी देवी, गौहरजान कर्नाटकी, गंगूबाई हंगल, अंजनीबाई मालपकर, मोगूबाई कुर्डीकर, रसूलन बाई में से एक थीं, जिन्होंने सार्वजनिक कॉन्सर्ट दिए। और भारतीय समाज को बतलाया कि महिलाएँ भी भारतीय शास्त्रीय संगीत, उप-शास्त्रीय संगीत के गायन में किसी से कम नहीं।