वे सरापा ग़ज़ल थीं। उन जैसे ग़ज़लसरा न पहले कोई था और न आगे होगा। ग़ज़ल से उनकी शिनाख्त है। ग़ज़ल के बिना बेगम अख्तर अधूरी हैं और बेगम अख्तर के बगैर ग़ज़ल। देश-दुनिया में ग़ज़ल को जो बेइंतिहा मकबूलियत मिली, उसमें बेगम अख्तर का बड़ा रोल है। एक दौर में जब ग़ज़ल बादशाहों, नवाबों के दरबार की ही जीनत होती थी, ख़ास लोगों तक ही महदूद थी, उसे उन्होंने आम जन तक पहुँचाया। बेगम अख्तर ने बतलाया कि ग़ज़ल सिर्फ़ पढ़ी ही नहीं जाती, बल्कि इसे संगीत में ढालकर गाया भी जा सकता है।