सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम फैसले में अयोध्या की विवादित ज़मीन राम लला विराजमान को देने का निर्णय सुनाया है। इसके साथ ही मुसलमानों को मसजिद बनाने के लिए 5 एकड़ ज़मीन अलग से दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा है कि मंदिर बनाने के लिए तीन महीने के अंदर एक ट्रस्ट बनाया जाएगा, जिसमें निर्मोही अखाड़े का भी प्रतिनिधित्व हो।
खंडपीठ ने कहा कि हिन्दू पक्ष यह साबित करने में कामयाब रहा कि बाहरी आंगन पर उसका कब्जा बहुत पहले से ही रहा है। दूसरी ओर, मुसलिम पक्ष यह साबित नहीं कर सका कि आंगन पर सिर्फ़ उसका ही कब्जा था।
सर्वोच्च अदालत ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह एक स्कीम बनाए, जिसमें ट्रस्ट बनाने की व्यवस्था हो। विवादित ज़मीन का अंदरूनी और बाहरी आंगन रामजन्मभूमि ट्र्स्ट को दें।
सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि इस मामले में 2010 में दिया गया इलाहाबाद हाई कोर्ट का फ़ैसला तर्क से परे था। अदालत ने ज़ोर देकर कहा कि इसका कोई तर्क नहीं हो सकता कि सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के मामले को खारिज करने के बाद उन्हें ज़मीन में हिस्सा भी दिया जाए।
पूरी ज़मीन को एक ही माना जाना चाहिए। बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विवादित ज़मीन को तीन पक्षकारों में बाँट दिया था।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा सेवईत नहीं है, यानी उसे मूर्तियों की सेवा का हक़ नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि रामजन्मभूमि कोई न्यायिक व्यक्ति नहीं है। इसके साथ ही आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की इस रिपोर्ट को अदालत ने खारिज नहीं किया, जिसमें कहा गया था कि बाबरी मसजिद किसी खाली जगह पर नहीं बनाई गई ती।
अदालत ने कहा कि उसके लिए यह उचित नहीं होगा कि वह धर्मशास्त्र के ज्ञाता की भूमिका निभाए और हदीस की व्याख्या करे। कोर्ट ने फ़ैसले में कहा कि आस्था के आधार पर ज़मीन का मालिक़ाना हक़ नहीं दिया जा सकता। साथ ही कोर्ट ने साफ़ कहा कि फ़ैसला क़ानून के आधार पर ही दिया जाएगा।
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कोर्ट ने एएसाई रिपोर्ट के आधार पर अपने फ़ैसले में कहा कि मंदिर तोड़कर मसजिद बनाने की भी पुख्ता जानकारी नहीं है।
मुसलिम पक्ष के वकील ज़फ़रयाब जिलानी ने इस पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा, 'हम कोर्ट के फ़ैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन इसमें कई विरोधाभास है, लिहाज़ा हम फ़ैसले से संतुष्ट नहीं है। हम फ़ैसले का मूल्यांकन करेंगे और आगे की कार्रवाई पर फैसला लेंगे।'
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