loader

यह अमेरिकी इतिहास का सबसे अहम चुनाव क्यों?

किसी भी कोण से देख लें। डोनल्ड ट्रंप जैसा नैतिकता मुक्त, ख़तरनाक, विभाजक और ओछा नेता अमेरिका का राष्ट्रपति कभी नहीं बना। इसलिए जॉर्ज बुश से लेकर क्लिंटन, ओबामा और कार्टर तक सारे पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की निंदा करते हैं और उन्हें देश के लिए ख़तरा मानते हैं। उनका जो रूप इस चुनाव प्रचार के दौरान देखने को मिला है उससे यह स्पष्ट हो गया है कि वे अमेरिकी मूल्यों के लिए ही नहीं बल्कि अमेरिकी लोकतंत्र लिए भी बुरी ख़बर हैं। 
शिवकांत | लंदन से

59वें राष्ट्रपतीय चुनाव को अमेरिकी गणतंत्र के 244 वर्ष के इतिहास का सबसे अहम चुनाव कहा जा रहा है। क्यों? इसलिए कि अमेरिकी गणतंत्र की बुनियाद ख़तरे में है। आज़ाद ख़यालों और असीमित अवसरों के देश की बुनियाद स्वंतत्रता, समानता, निजता और न्याय जैसे आदर्शों पर रखी गई थी। 

लेकिन राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने वर्षों से जड़ें जमाए बैठी राजनीतिक व्यवस्था और नौकरशाही को उखाड़ फेंकने के नाम पर देश के बुनियादी मूल्यों की ही बलि चढ़ा दी है। गणतंत्र के पेड़ को गुड़ाई कर स्वस्थ बनाने के बजाए उसकी जड़ें ही काट डाली हैं।

इतिहासकार और राजनीतिक शास्त्री अमेरिका के इस चुनाव की तुलना सन 1800 के एरोन बर और जेफ़र्सन के चुनाव, 1860 के डगलस और लिंकन के चुनाव और 1932 के हूवर और रूज़वैल्ट के चुनाव से करते हैं। हूवर और रूज़वैल्ट के चुनाव के समय अमेरिका और पूरी दुनिया आर्थिक मंदी से जूझ रही थी। अमेरिकी गणतंत्र और उसकी पूंजीवादी व्यवस्था दोनों संकट में थे। डगलस और लिंकन के चुनाव में अमेरिका पर गृहयुद्ध का ख़तरा मंडरा रहा था। बर और जेफ़र्सन के चुनाव में जेफ़र्सन एक ऐसे नेता का सामना कर रहे थे जो अपनी तानाशाही प्रवृत्तियों और सिद्धान्तहीनता के लिए जाना जाता था। 

ताज़ा ख़बरें

ट्रंप ने बोले कई झूठ

डोनल्ड ट्रंप के चार साल के बयानों, ट्वीटों और कामों को देखें तो एरोन बर से सहानुभूति होने लगती है। अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिए ट्रंप ने निरंकुश भाव से मिथ्या प्रचार किए। वैज्ञानिकों की सलाह को अनसुना करते हुए लोगों को बिना मास्क के खुला घूमने के लिए उकसाया जिससे 3,30,000 से ज़्यादा लोग महामारी का शिकार हो गए। 

अपनी करतूतों पर कानूनी सवाल खड़े होने पर न्याय व्यवस्था और विज्ञान को दोषी ठहराया। अश्वेतों, अल्पसंख्यकों और अप्रवासियों के प्रति लोगों के मन में मौजूद भेदभाव की चिंगारी को हवा दी। अपने समर्थकों को अपने आलोचकों के ख़िलाफ़ उकसाने का काम किया। 

ट्रंप ने अंतरराष्ट्रीय संधियों को मानने से इनकार किया। शिष्टता की सारी हदें तोड़ीं। संसद, अदालत और चुनाव प्रक्रिया का मज़ाक बना कर रखा और राष्ट्रपति के अधिकारों के नाम पर मनमानी करने की कोशिश की।

लोकतंत्र के लिए ख़तरा हैं ट्रंप!

किसी भी कोण से देख लें। डोनल्ड ट्रंप जैसा नैतिकता मुक्त, ख़तरनाक, विभाजक और ओछा नेता अमेरिका का राष्ट्रपति कभी नहीं बना। इसलिए जॉर्ज बुश से लेकर क्लिंटन, ओबामा और कार्टर तक सारे पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की निंदा करते हैं और उन्हें देश के लिए ख़तरा मानते हैं। उनका जो रूप इस चुनाव प्रचार के दौरान देखने को मिला है उससे यह स्पष्ट हो गया है कि वे अमेरिकी मूल्यों के लिए ही नहीं बल्कि अमेरिकी लोकतंत्र लिए भी बुरी ख़बर हैं। 

जनादेश को स्वीकार करते हुए हार-जीत को स्वीकार करना लोकतंत्र की मूल मर्यादा है। लेकिन डोनल्ड ट्रंप उसे भी मानने को तैयार नहीं हैं। 

ट्रंप ने चुनाव से महीनों पहले डाक के ज़रिए डाले जाने वाले वोटों की वैधता पर सवाल उठाना और चुनाव में धांधली होने की निराधार आशंकाएं फैलाना शुरू कर दिया था। क्योंकि उन्हें पता था कि महामारी के डर से लोग बड़ी संख्या में डाक के ज़रिए वोट डालने वाले हैं। अब वे अदालतों में याचिकाएं देकर डाक से आए वोटों की वैधता को चुनौती देने और मतगणना रुकवाने की कोशिशों में लगे हैं। वे बार-बार दोहरा चुके हैं कि उन्हें धांधली के सिवा कोई नहीं हरा सकता। 

ख़बर है कि अब वे तीन नवंबर की रात को मतगणना पूरी होने से पहले ही अपनी जीत का दावा करने वाले हैं। यदि उन्होंने भारी बढ़त हासिल हुए बिना ऐसा किया तो अमेरिका इतिहास में पहली बार लीबिया, यमन और ज़िम्बाब्वे जैसे उन अस्थिर देशों की श्रेणी में खड़ा नज़र आएगा, जहां के नेता जनादेश का आदर करना नहीं जानते। 

डाक के जरिये वोटिंग

महामारी के आतंक को देखते हुए इस बार अमेरिका के 25 राज्यों ने अपने सभी मतदाताओं के घर डाक से वोट भेज दिए हैं ताकि जो लोग व्यक्तिगत रूप से वोट डालने जाने में असमर्थ हैं या घबरा रहे हैं वे डाक के ज़रिए वोट डाल सकें। अमेरिका के ज़्यादातर राज्य व्यक्तिगत रूप से वोट डालने के लिए चुनाव से कई हफ़्ते पहले मतदान केंद्र खोल देते हैं। बहुत से लोग इन केंद्रों में जाकर व्यक्तिगत रूप से भी मतदान कर रहे हैं। 

अब तक लगभग दस करोड़ मतदाता अपने वोट डाक के ज़रिए और व्यक्तिगत रूप से डाल चुके हैं और करीब तीन करोड़ वोट अभी डाक के रास्ते में हैं। ये दोनों संख्याएं मिला लें तो पिछले चुनाव जितना मतदान तो हो चुका है। चुनाव के दिन भी भारी मतदान होने की संभावना है।

ट्रंप के अदालती दांव-पेच 

भारी मतदान को आम तौर पर सत्तासीन उम्मीदवार के ख़िलाफ़ लहर के रूप में देखा जाता है। डाक से हुए मतदान के ख़िलाफ़ ट्रंप के मोर्चा खोलने का यह भी एक कारण हो सकता है। इसलिए वे चुनाव के दिन पड़ने वाले मतों के आधार पर अपनी जीत का एलान करके डाक से आए वोटों की गिनती को अदालती दांव-पेच में उलझा देना चाहते हैं। 

why US presidential election 2020 is so important - Satya Hindi
प्रचार के दौरान ट्रंप के समर्थक।

अमेरिका में काउंटियां या तहसीलें मतदान कराती हैं। देश के 50 राज्यों में कुल मिला कर 3243 काउंटियां हैं जिन्हें मतगणना का काम 8 दिसंबर तक पूरा करना होगा जो राष्ट्रपति पद के विजेता उम्मीदवार की घोषणा करने की अंतिम तिथि है। काउंटियों के सामने इस बार दोहरी समस्या है। मतदान भारी संख्या में हो रहा है और ऊपर से अदालती चुनौतियां काम में रोड़े अटका रही हैं। 

मिसाल के तौर पर अमेरिका के दूसरे सबसे बड़े राज्य टैक्सस की हैरिस काउंटी में ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के लोग कार में बैठे-बैठे वोट डालने की सुविधा वाले मतदान केंद्रों पर डाले गए लगभग सवा लाख वोटों की वैधता को अदालती चुनौती दे रहे हैं।

देखिए, अमेरिकी चुनाव पर चर्चा- 

न्यायपालिका पर कब्जा

यदि कोई राज्य 8 दिसंबर तक मतगणना का काम पूरा नहीं कर पाता है तो मामला उसकी राज्य संसद के पास चला जाता है और संसद बैठक करके विजेता का फ़ैसला करती है। यदि नौबत वहां तक पहुंच जाती है तो राज्यों की संसदें जनादेश की अनदेखी करते हुए दलगत राजनीति के आधार पर विजेता का एलान कर सकती हैं। ट्रंप की रणनीति शायद यही है। 

डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन और कमला हैरिस इस तरह के फ़ैसलों को अदालतों में चुनौती दे सकते हैं और मामला सर्वोच्च न्यायालय तक जा सकता है, जहां ट्रंप ने अपने कार्यकाल में अपनी रिपब्लिकन विचारधारा वाले तीन जजों की नियुक्ति करके यह पक्का कर लिया है कि कोई भी फ़ैसला उनके ख़िलाफ़ न जा सके।

अमेरिकी कांग्रेस या संसद को अपने 6 जनवरी के संयुक्त अधिवेशन में विजेता राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की घोषणा करनी होती है। यदि तब तक मतगणना के मामले अदालतों में उलझे रहे तो प्रतिनिधि सभा के सदस्य नए राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं।

जनवरी तक खिंचेगा विवाद?

प्रतिनिधि सभा के सदस्य अपने-अपने राज्यों के दलों में बंट जाते हैं और हर राज्य के दल को एक वोट देने का अधिकार होता है। जिस उम्मीदवार को ज़्यादा वोट मिलते हैं वह चुन लिया जाता है। इसी तरह उपराष्ट्रपति का चुनाव सेनेट करती है जहां हर सेनेटर एक वोट देता है। चुनाव में उतरने से पहले 27 राज्यों में रिपब्लिकन पार्टी की सरकारें थीं और सेनेट में भी रिपब्लिकन सेनेटरों का बहुमत था। इसलिए ट्रंप की रणनीति यह भी हो सकती है कि विवाद को जनवरी तक घसीटा जाए ताकि प्रतिनिधि सभा और सेनेट के ज़रिए चुनाव हो और वे बाज़ी मार ले जाएं।

देखना यह है कि पिछले कई हफ़्तों से हो रहे भारी मतदान की लहर किसकी तरफ़ जाती है। यदि तीन नवंबर को किसी एक उम्मीदवार को प्रचंड बहुमत मिलता दिखाई दिया तो सारे अदालती दांव-पेच धरे रह जाएंगे। इनके होने पर भी यदि आधे से अधिक राज्यों में डेमोक्रेटिक पार्टी जीत गई और सेनेट में उसका बहुमत आ गया तो भी ट्रंप की संसद के ज़रिए गद्दी हासिल कर लेने की रणनीति नाकाम हो जाएगी। 

तीन नवंबर की रात को लोगों की नज़र पेंसिलवेनिया और फ़्लोरिडा राज्यों पर रहेगी। पिछली बार दोनों राज्यों से ट्रंप जीते थे। इस बार ट्रंप पेंसिलवेनिया में बाइडन से चार अंकों से पीछे हैं और फ़्लोरिडा में दो अंकों से। इनके अलावा पिछली बार जीते मिशिगन, विस्कोंसिन, मिनिसोटा और एरिज़ोना जैसे राज्यों में वे बाइडन से काफ़ी पीछे चल रहे हैं। 

जो बाइडन और कमला हैरिस ने प्रचार के आखिरी दो दिन पेंसिलवेनिया में लगाए हैं जो जीत-हार में इस राज्य के महत्व को रेखांकित करते हैं।

why US presidential election 2020 is so important - Satya Hindi
चुनाव प्रचार करतीं कमला हैरिस।

अमेरिकी चुनाव की ख़ूबियां-ख़ामियां 

यह चुनाव अमेरिका के लोकतांत्रिक मूल्यों और उसकी साख पर मंडराते संकट के घने बादलों के साथ-साथ उसकी चुनाव प्रणाली की कमज़ोरियों को भी रेखांकित करता है। उसकी कुछ ख़ूबियां भी हैं। जैसे कि पार्टी के उम्मीदवार का चुनाव देश भर के पार्टी कार्यकर्ता करते हैं और उनका समर्थन बटोरने के लिए आमचुनाव की तरह तहसील-तहसील घूम कर प्रचार करना होता है। 

उम्मीदवारों के बीच खुली सार्वजनिक बहस कराई जाती है और मीडिया उम्मीदवारों के निजी जीवन की पैनी नज़र से जांच-परख करता है। राष्ट्रपति से लेकर काउंटी या तहसील के पार्षद तक के छोटे-बड़े सभी चुनाव एक साथ होते हैं। उन्हें हर चार साल बाद होने वाले राष्ट्रपतीय और हर दो साल बाद होने वाले संसदीय चुनावों के साथ नत्थी कर दिया जाता है। भारत की तरह साल भर चुनाव नहीं होते। 

ख़ामियां ये हैं कि चुनाव कराने का भार देश की सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई काउंटी या तहसील के कंधों पर डाल दिया गया है। अलग-अलग काउंटियां अपनी-अपनी सामर्थ्य और सुविधा के अनुसार चुनाव कराती हैं और देश-भर की काउंटियों में आपस में ताल-मेल नहीं रहता। 

अमेरिका में भारत की तरह कोई केंद्रीय चुनाव आयोग नहीं है जो उम्मीदवारों के प्रचार और उनके आचरण पर नज़र रख सके। चुनाव में गड़बड़ी होने पर दोबारा वोट डलवाने का प्रावधान भी नहीं है। केवल अदालतों के दरवाज़े खटखटाए जा सकते हैं।

इन्हीं ख़ामियों की वजह से डोनल्ड ट्रंप जैसे ख़तरनाक नेता ने दलगत राजनीति से मुक्ति दिलाने के नाम पर सत्ता हासिल कर ली और अब सारे चुनावी कायदे-कानून तोड़ कर उस पर काबिज़ रहने की कोशिश में जुटा है। जिसने अपना सारा कार्यकाल पिछले राष्ट्रपति के व्यक्तित्व और कामों से जलन की वजह से स्वास्थ्य सेवा बीमा सुलभ कराने के कानून को नाकाम करने में लगा दिया। लोगों में महामारी से बचने की जागरूकता फैलाने के बजाय मास्क और दूरी जैसे बचाव के साधनों के प्रति नफ़रत फैला दी।

ट्रंप के कारनामे

अमेरिका को फिर से महान बनाने के नारे लगाते हुए ट्रंप ने महामारी की रोकथाम के लिए दुनिया का नेतृत्व करने के बजाए विश्व स्वास्थ्य संगठन से नाता तोड़ लिया। 

चीन की चुनौती का सामना करने के लिए एशिया-प्रशांत व्यापार संधि का नेतृत्व करने के बजाय वहां से हाथ खींच लिए। जलवायु परिवर्तन की रोकथाम में दुनिया का नेतृत्व करने के बजाए पैरिस संधि से नाता तोड़ लिया। चीन को विश्व व्यापार की शर्तों का पालन करने को बाध्य करने के बजाए विश्व व्यापार संगठन की ही जड़ें खोद डालीं। 

दुनिया से और ख़बरें

अमेरिका की साख गिराई

रूस के साथ हुई परमाणु निरस्त्रीकरण संधि को निष्क्रिय बना दिया। ईरान के साथ हुई परमाणु संधि को तोड़ डाला। भारत के साथ तरजीही व्यापार की व्यवस्था को समाप्त कर दिया। दुनिया को जोड़ने की बात करने के बजाय अपने सहयोगी देशों और संगठनों से बिना बात के झगड़े मोल लेकर अमेरिका को अलग-थलग कर दिया। विश्व आर्थिक मंच और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों से मुक्त व्यापार और उदारीकरण की बात करने के बजाय संरक्षणवाद और व्यापार युद्ध की बातें करके अमेरिका की बरसों से बनी साख को धूमिल किया। 

दुनिया को लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार, मुक्त व्यापार और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का संदेश देने वाला अमेरिका ट्रंप के नेतृत्व में संधियों का पालन न करने वाला, संरक्षणवादी, स्वार्थपरक, असहाय और मानवीय सरोकारों से मुंह मोड़ने वाली ताकत बन चुका है।

दुनिया को ऐसी ताकत की नहीं बल्कि एक ऐसी महाशक्ति की ज़रूरत है जो महामारियों और जलवायु परिवर्तन जैसी विश्वव्यापी समस्याओं की रोकथाम के लिए दिशा और नेतृत्व प्रदान करे। भारत के पड़ोस में चीन जैसी निरंकुश महाशक्ति के विस्तारवादी इरादों पर अंकुश लगाने के लिए भी अमेरिका के नेतृत्व की ज़रूरत है।

इस चुनाव में यह सब और इसके सिवा और भी बहुत कुछ ऐसा है जो दांव पर लगा है। लेकिन फ़ैसला केवल और केवल अमेरिकी मतदाताओं के हाथों में है। वे भारी संख्या में मतदान करके अपना फ़ैसला सुनाने के लिए बेचैन भी हैं। सारे संकेत यही बता रहे हैं कि ट्रंप साहब की गद्दी हिल गई है। लेकिन यदि अपने किसी जादू की वजह से वे एक बार फिर जीत हासिल कर जाते हैं तो दुनिया को ताहिर तिलहरी साहब की इन पंक्तियों से संतोष करना होगा- 

कुछ ऐसे बदहवास हुए आंधियों से लोग,

जो पेड़ खोखले थे उन्हीं से लिपट गए... 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
शिवकांत | लंदन से
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

दुनिया से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें