अमेरिका में चल रहे 59वें राष्ट्रपति चुनाव ने देश की दो बड़ी कमज़ोरियों को उजागर किया है। पहली यह कि अमेरिका दलगत राजनीति और संकीर्ण विचारधाराओं के आधार पर कितना बँटा हुआ है। दूसरी यह कि राष्ट्रपति चुनाव प्रणाली में कितनी बड़ी ख़ामियाँ हैं।
यूएस चुनाव किन ख़ामियों से दुनिया में चर्चित हुआ?
- दुनिया
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- शिवकांत | लंदन से
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- 3 Nov, 2020


शिवकांत | लंदन से
अमेरिका में चल रहे 59वें राष्ट्रपति चुनाव में कई खामियाँ उजागर हुई हैं। क्या डोनल्ड ट्रंप उन्हीं खामियों का फ़ायदा उठाने की कोशिश में हैं? और क्या इन्हीं वजहों से इस बार का चुनाव अमेरिका के इतिहास का सबसे अहम चुनाव हो गया है? ट्रंप ने आम तौर पर संतोषजनक काम करने वाली चुनाव प्रणाली को कड़ी चुनौतियाँ देते हुए लोगों को उसकी कमज़ोरियों पर विचार करने को बाध्य कर दिया है।
स्वस्थ लोकतंत्र में विचारधाराओं के दक्षिणपंथी और वामपंथी खेमे प्रभाव और सत्ता के लिए स्पर्धा करते हुए देश की राजनीति और अर्थनीति में संतुलन बनाए रखते हैं। लेकिन जब-जब डोनल्ड ट्रंप जैसे नेता विचारधारा के अपने खेमे को अतिवाद की तरफ़ धकेलने की कोशिश करते हैं तब-तब दूसरा खेमा भी अतिवाद की तरफ़ बढ़ने लगता है। अतिवादी खेमों में टकराव और हिंसा की आशंका बढ़ जाती है।
डोनल्ड ट्रंप की सत्ता के चार सालों में ऐसा ही कुछ हुआ है। ट्रंप ने अपनी दक्षिणपंथी रिपब्लिकन पार्टी को अति-दक्षिणपंथ की तरफ़ धकेला है तो जवाब में वामपंथी डैमोक्रेटिक पार्टी के भीतर भी वामपंथी खेमा मुखर और प्रबल हुआ है। इसीलिए बर्नी सैंडर्स डैमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार बनने के इतना क़रीब पहुँचे।
शिवकांत | लंदन से
लेखक ब्रिटेन में बसे हुए वरिष्ठ पत्रकार हैं