भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में मार्क्सवादी नेता राष्ट्रपति चुने गए हैं। मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमार दिसानायके को रविवार को श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में विजेता घोषित किया गया है। देश के चुनाव आयोग द्वारा अभूतपूर्व दूसरे दौर की मतगणना के बाद यह परिणाम आया।
दिसानायके नेशनल पीपुल्स पॉवर गठबंधन के नेता और जनता विमुक्ति पेरामुना के प्रमुख हैं। श्रीलंका के चुनाव आयोग द्वारा विजेता घोषित किए जाने के बाद दिसानायके ने कहा, 'सदियों से हमने जो सपना देखा था, वह आखिरकार साकार हो रहा है। यह उपलब्धि किसी एक व्यक्ति के काम का नतीजा नहीं है, बल्कि आप जैसे लाखों लोगों के सामूहिक प्रयास का नतीजा है। आपकी प्रतिबद्धता ने हमें यहां तक पहुंचाया है और इसके लिए मैं आपका बहुत आभारी हूं। यह जीत हम सबकी है।'
The dream we have nurtured for centuries is finally coming true. This achievement is not the result of any single person’s work, but the collective effort of hundreds of thousands of you. Your commitment has brought us this far, and for that, I am deeply grateful. This victory… pic.twitter.com/N7fBN1YbQA
— Anura Kumara Dissanayake (@anuradisanayake) September 22, 2024
जनता विमुक्ति पेरामुना के प्रमुख ने एक्स पर लिखा, 'यहां तक का हमारा सफर कई लोगों के बलिदानों से तय हुआ है, जिन्होंने इस उद्देश्य के लिए अपना पसीना, आंसू और यहां तक कि अपनी जान भी दे दी। उनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। हम उनकी उम्मीदों और संघर्षों का राजदंड थामे हुए हैं, यह जानते हुए कि इसमें कितनी जिम्मेदारी है। उम्मीद और अपेक्षा से भरी लाखों आंखें हमें आगे बढ़ाती हैं और हम मिलकर श्रीलंका के इतिहास को फिर से लिखने के लिए तैयार हैं।'
उन्होंने कहा, 'यह सपना एक नई शुरुआत से ही साकार हो सकता है। सिंहली, तमिल, मुस्लिम और सभी श्रीलंकाई लोगों की एकता इस नई शुरुआत का आधार है। हम जिस नए पुनर्जागरण की तलाश कर रहे हैं, वह इसी साझा ताकत और दृष्टि से उभरेगा। आइए हम हाथ मिलाएं और मिलकर इस भविष्य को आकार दें!'
दिसानायके ने जिन लोगों के बलिदान का ज़िक्र किया उसमें शहीद क्रांतिकारी नेता रोहन विजेवीरा प्रमुख हैं। उन्होंने पार्टी की स्थापना की थी तथा दो विद्रोहों का नेतृत्व किया था। विजेवीरा के बाद से पार्टी की रणनीति और जनाधार में खूब बदलाव आए। इस जीत में विजेवीरा जैसे क्रांतिकारियों और शहीदों की भी बड़ी भूमिका है। इसी बात पर दिसानायके ने जोर भी दिया है।
जनता विमुक्ति पेरामुना का इतिहास
यह जीत न केवल दिसानायके के लिए एक व्यक्तिगत जीत है, बल्कि उनकी वामपंथी पार्टी जनता विमुक्ति पेरामुना यानी जेवीपी के लिए भी एक अहम क्षण भी है। एक समय कट्टरपंथी हाशिये के समूह के रूप में देखे जाने वाले जेवीपी ने 1980 के दशक के क्रूर विद्रोह के दौरान श्रीलंकाई सेना के हाथों अपने सैकड़ों सशस्त्र विद्रोहियों को खो दिया था। जीत पार्टी के लिए एक नाटकीय बदलाव का संकेत है। यह अपने उग्रवादी अतीत से राष्ट्रीय राजनीति में एक वैध ताक़त बन गई है।
जेवीपी का इतिहास 1970 और 1980 के दशक में हिंसक विद्रोहों वाला था। वह उन संघर्षों के घावों से उबर रहा था कि तभी अनुरा दिसानायके की राजनीति में एंट्री हुई।
1997 में दिसानायके ने राष्ट्रीय राजनीति में अपना पहला महत्वपूर्ण कदम उठाया जब उन्हें जेवीपी की युवा शाखा, सोशलिस्ट यूथ ऑर्गनाइजेशन का राष्ट्रीय आयोजक नियुक्त किया गया।
दिसानायके बदलाव लाने वाले शख्स
अनुरा दिसानायके को जल्द ही एक परिवर्तनकारी व्यक्ति के रूप में देखा जाने लगा, जो पार्टी को उसके कट्टरपंथी अतीत से बाहर निकालने में मदद करने में सक्षम था। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एक साल बाद 1998 में उन्हें जेवीपी केंद्रीय समिति और फिर इसकी राजनीतिक समिति में शामिल किया गया, जिससे पार्टी में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उनकी भूमिका मजबूत हुई।
चुनावी राजनीति में उनका पहला परीक्षण 1998 के केंद्रीय प्रांतीय परिषद चुनावों में हुआ, जहाँ उन्होंने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। हालाँकि जेवीपी परिषद नहीं जीत पाई, लेकिन अभियान ने उन्हें अपनी साख स्थापित करने और मतदाताओं के बीच एक समर्थक बनाने का मौका दिया। दो साल बाद, दिसानायके राष्ट्रीय संसद के लिए चुने गए।
2004 में गठबंधन सरकार के हिस्से के रूप में उन्होंने कृषि, पशुधन, भूमि और सिंचाई मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के साथ गठबंधन में जेवीपी का प्रतिनिधित्व किया। मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल ने उन्हें एक सक्षम प्रशासक के रूप में प्रतिष्ठा बनाने में मदद की। इस कार्यकाल ने उन्हें कृषि सुधारों और ग्रामीण विकास पर राजनीतिक बहस के केंद्र में भी रखा।
इस समय तक साफ़ हो गया था कि उनकी नेतृत्व शैली अलग थी। उन्होंने कट्टरपंथी मार्क्सवादी सिद्धांतों को व्यावहारिक सुधारवाद के साथ जोड़ा, जिससे यथास्थिति से मोहभंग हुए मतदाताओं की एक नई पीढ़ी आकर्षित हुई।
जनवरी 2014 में दिस्सानायके ने सोमवंशा अमरसिंघे की जगह जेवीपी नेतृत्व संभाला। उनके नेतृत्व में जेवीपी ने विद्रोह और सशस्त्र विद्रोह के अपने अतीत से हटकर भ्रष्टाचार विरोधी, सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक समाजवाद के मंच की ओर प्रयास किया।
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