जिस पाकिस्तान को मैंने अस्सी के दशक में देखा था वह अब बर्बाद हो चुका है। उस समय लाहौर के बाज़ारों की रोशनी, चौड़ी सड़कें और शानदार कॉलोनियां उसे भारत के किसी भी शहर से बेहतर दिखाती थी। लेकिन उस दौरान पाकिस्तान की राजनीति की बागडोर एक ऐसे शख्स के हाथों में थी जिसके एक कदम ने उस मुल्क को तबाह और बर्बाद कर दिया। वह और कोई नहीं जनरल जिया उल हक़ थे जिन्होंने उन्हें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनाने वाले अपने आका ज़ुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटकवा दिया। सत्ता हड़पने के बाद जनरल ज़िया ने अपने मुल्क को चलाने की कोशिश तो की लेकिन इसमें उन्हें बहुत सफलता नहीं मिली। तब उन्होंने वह चाल चली जिसने पाकिस्तान को बर्बादी और कट्टरता के रास्ते पर ला खड़ा कर दिया।
जनरल जिया को अंदाजा था कि धर्म के आधार पर बने इस देश में अगर मज़हब कार्ड खेला जाए तो जनता उसमें ही उलझकर रह जायेगी और उनकी असफलताओं के बारे में बातें कम होने लगेगी। इतना ही नहीं जनता को उन धर्मगुरुओं के माध्यम से काबू किया जा सकेगा। और इसके साथ ही पाकिस्तान में मज़हबी कट्टरता का एक नया दौर शुरू हुआ और देखते ही देखते मदरसों की बाढ़ आ गई। आज वहां 14,000 से भी ज्यादा मस्जिदें हैं। वह लाहौर शहर जिसके बारे में कभी कहा जाता था कि जिन लाहौर नहीं देख्या, वो जन्मया नहीं, यानी जिसने लाहौर देखा नहीं उसका जन्म ही नहीं हुआ, नष्ट हो गया।
लोगों को यह जानकर हैरानी होती है कि पचास के दशक में जब भारत भुखमरी और गरीबी की लड़ाई लड़ रहा था, पाकिस्तान ने उस वक्त यूरोप के छठे बड़े मुल्क जर्मनी को एक बहुत बड़ी रकम कर्ज के तौर पर दी थी। लेकिन आज वही पाकिस्तान पैसे-पैसे के लिए मोहताज हो गया है। उसके पास महज तीन अरब डॉलर का फॉरेक्स रिजर्व है जो अपना नहीं उधार का है। मुल्क की कुल देनदारी 125 अरब डॉलर की है और अगले दो महीनों में उसे 15 अरब डॉलर चुकाने हैं जो कर्ज का हिस्सा है। यह कयास लगाया जा रहा है कि मार्च आते-आते पाकिस्तान दिवालिया हो जायेगा, ठीक वैसे ही जैसे श्रीलंका हो गया था। सैकड़ों कारख़ाने बंद हो गये हैं और पूरा देश बिजली संकट से जूझ रहा है।
पाकिस्तान के डिफेंस मिनिस्टर ख्वाजा आसिफ ने तो हाल ही में कहा कि उनका देश दिवालिया हो गया है। अब देश दिवालिया हो न हो, वहां लोगों को खाने के लाले पड़ गये हैं। दो वक्त की रोटी सपना होने लगी है। रोजमर्रा की चीजों की कीमतें आसमान छू रही हैं। आटा जैसी सामान्य चीज 170 रुपये किलो बिक रहा है, बाकी खाद्य पदार्थों की बात तो छोड़ें। मुद्रास्फीति की दर 30 फीसदी से ज्यादा हो गई है और कहा जा रहा है कि यह साल पाकिस्तान के लिए सबसे बुरा होगा। डॉलर की कीमत रॉकेट की तरह भाग रही है और यह 270 रुपये पर जा पहुंचा है। इस कारण से विदेशी इम्पोर्ट बहुत महंगे हो गये हैं। सरकार के पास डॉलर नहीं है कि वह विदेशों से आये कराची पोर्ट पर खड़े सैकड़ों कंटेनरों को छुड़ा सके। इन कंटेनरों में खाने-पीने का सामान भी भरा हुआ है और कई तरह की महत्वपूर्ण चीजें भी हैं।
चीन की दोस्ती काम न आई
पाकिस्तान की मदद के लिए अब कोई देश सामने नहीं आ रहा है। उसका करीबी सऊदी अरब भी अब उससे कन्नी काट रहा है और किसी तरह की मदद देने से इनकार कर रहा है। वह चीन जिसके बारे में पाकिस्तानी गर्व से कहते हैं कि उनकी दोस्ती समंदर से गहरी और हिमालय से ऊंची है, वह अब कोई बात नहीं कर रहा है और अपने 35 अरब डॉलर वापस मांग रहा है। उन दोनों का मिला-जुला प्रोजेक्ट सीपीईसी बुरी तरह से पिट गया है और ढोल बजाकर बनाया जाने वाला ग्वादर पोर्ट वीरान पड़ा हुआ है। चीन को यह समझ में आ गया है कि उसके पैसे फंस गये हैं और उन्हें निकालना टेढ़ी खीर है।
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पाकिस्तान कोई श्रीलंका नहीं है कि वहां के किसी बंदरगाह या एयपोर्ट को चीन अपने हाथ में ले ले। यह निहायत ही खतरनाक मुल्क है जहां कट्टपंथी जमातें चीन को अच्छी दृष्टि से नहीं देखती हैं। वहां के दहशतगर्दों ने कई सौ चीनियों को जन्नत का रास्ता दिखा दिया है और आगे भी दिखाती रहेंगी। यही कारण है कि चीन की सरकार वहां आगे कुछ करने को इच्छुक नहीं है। चीन के महत्वाकांक्षी प्रीमियर शी जिनपिंग यहां पर कैलकुलेशन करने में मार खा गये।
आखिर पाकिस्तान की यह हालत कैसे हुई? सबसे पहले तो वह इस गलतफहमी में रहा कि वह कश्मीर जीत लेगा। आज़ादी के तुरंत बाद उसने क्रूर हत्यारों और बलात्कारी मुज़ाहिदीनों की मदद से कश्मीर घाटी पर हमला किया। इन लुटेरों ने वहां घुसकर ऐसी लूट मचाई कि स्थानीय जनता घबरा गई और उन्होंने भारत का दामन थामना ही उचित समझा। बाद में जनरल अय्यूब खान ने ऑपरेशन जिब्राल्टर किया ताकि कश्मीर पर कब्जा किया जा सके। लेकिन उस युद्ध में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी। यहां से पाकिस्तान का राग कश्मीर शुरू हुआ। वहां कश्मीर को बड़ा मुद्दा बनाया गया और जब कभी कोई बड़ी बात होती तो फौज और सियासतदानों द्वारा राग कश्मीर छेड़ दिया जाता।
पाकिस्तान ने भारत को जबाव देने के लिए ऐटम बम भी बनाया। ऐटम बम के बारे में बढ़-चढ़कर उसके सियासतदान बातें करते रहे और जनता को युद्ध के उन्माद में धकेलते रहे। इस ऐटम बम को चोरी-छुपे बनाने में अरबों डॉलर फूंक दिये थे। यह बम दिखाकर वह सारी दुनिया को डराता-धमकाता रहा कि वह भारत पर यह बम छोड़ देगा। अपने परमाणु केन्द्रों की सुरक्षा और मेंटेंनेंस में पाकिस्तान अभी भी करोड़ों डॉलर लगा रहा है जो गरीब देश के लिए बहुत ज्यादा है। उसके पूर्व प्राइम मिनिस्टर ज़ुल्फिकार अली भुट्टो ने कहा था कि हमें सैकड़ों वर्ष घास खाकर भी रहना पड़े तो भी हम ऐटम बम बनायेंगे। उनकी बात आज सच हो गई और पाकिस्तान की जनता घास खाने को मजबूर हो गई है। आज उसका ऐटमिक ज़खीरा न केवल उसके लिए बल्कि सारी दुनिया के लिए खतरा बन गया है। भयंकर गरीबी के बावजूद वह अपने डिफेंस पर उसने पिछले साल 1450 अरब डॉलर का आवंटन किया है। यह राशि इतनी ज्यादा है कि जन कल्याण के सभी कार्य इसके कारण ठप हो गये हैं।
जनता को एक ही नारा सुनाया जाता “कश्मीर बनेगा पाकिस्तान”। यह चाल सफल रही और आम पाकिस्तानी को नींद में भी कश्मीर दिखने लगा। भारतीय कश्मीर में पूरी तरह से अशांति छा गई और दहशतगर्दों ने अपनी पैठ जमा ली। अफसोस की बात है कि तत्कालीन सरकार ने इसे जड़ से उखाड़ने की कोई कोशिश नहीं की जिसका नतीजा है कि पांच लाख कश्मीरी पंडितों को न केवल अपनी जन्मभूमि छोड़नी पड़ी बल्कि अपने जीवन भर की कमाई से भी। लेकिन उधर कश्मीर के नाम पर पाकिस्तान में खूब लूट मची। फौज और आईएसआई ने सरकार से कश्मीर के नाम पर मोटी रकमें लेनी शुरू कर दीं।
पाकिस्तान के भ्रष्ट फौजियों ने कश्मीर ऑपरेशन के नाम पर खूब लूट मचाई जनता को पता नहीं चला और वह कश्मीर-कश्मीर करती रही। सरकार के खजाने में सेँध लगाकर सैकड़ों फौजी अफसर जिनमें दो-तीन जनरल भी थे, मुल्क से भाग गये। इसका जीता-जागता उदाहरण हैं जनरल बाजवा। लेकिन कश्मीर के नशे में धुत्त पाकिस्तानी अवाम को भनक तक नहीं लगी। कश्मीर जीतने के नाम पर बड़े पैमाने पर हथियार भी खरीदे गये जिनमें मोटा कमीशन भी लिया गया।
पाकिस्तान का दुर्भाग्य यह रहा कि वहां फौज को बहुत बड़ा रुतबा मिला हुआ है और उस पर उंगली उठाने की परंपरा नहीं रही है। इसी फौज ने वहां 45 वर्षों तक शासन किया और जनता को बरगलाने के लिए हमेशा भारत से दुश्मनी और कश्मीर लेने के लिए सशस्त्र युद्ध की बातें की। खतरनाक खेल में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चौपट हो गई।
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