पाकिस्तान के चीफ जस्टिस (सीजेपी) उमर अता बंदियाल ने बुधवार को पीटीआई सरकार के वकील बाबर अवान से राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (एनएससी) की हालिया बैठक की कार्यवाही के बारे में पूछा। जिसमें उस पत्र पर चर्चा की गई थी जिसमें इमरान खान सरकार को गिराने के लिए कथित तौर पर एक विदेशी साजिश का सबूत दिखाया गया था। आज इस मामले में फिर सुनवाई होगी।
पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट की बेंच जिसमें चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एजाजुल अहसन, जस्टिस मोहम्मद अली मजहर, जस्टिस मुनीब अख्तर और जस्टिस जमाल खान मंडोखेल शामिल हैं, इस मामले की सुनवाई कर रही है। बेंच ने 3 अप्रैल की घटनाओं पर खुद संज्ञान लिया था, जब नेशनल असेंबली (पाकिस्तानी संसद) में डिप्टी स्पीकर कासिम शाह सूरी ने प्रधान मंत्री इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को खारिज कर दिया और राष्ट्रपति डॉ अल्वी ने प्रधानमंत्री की सलाह पर संसद को भंग कर दिया।
सुनवाई के दौरान जस्टिस बंदियाल ने आज उस आधार पर सवाल उठाया जिसके आधार पर स्पीकर ने फैसला सुनाया। उन्होंने कहा, क्या स्पीकर तथ्यों को पेश किए बिना इस तरह के फैसले की घोषणा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह संवैधानिक प्वाइंट है जिस पर अदालत को फैसला करना है।
उन्होंने अवान से अदालत को सूचित करने के लिए भी कहा कि क्या अध्यक्ष यह आदेश जारी कर सकते हैं जो अनुच्छेद 95 को दरकिनार कर उस दिन के एजेंडे में नहीं था। उन्होंने पीटीआई के वकील को "ठोस" सबूतों के साथ बचाव करने के लिए कहा।
चीफ जस्टिस ने पीटीआई के वकील बाबर अवान से पूछा कि एनएससी बैठक के मिनट्स (लिखित कार्यवाही) कहाँ है? अदालत ने अवान से यह भी पूछा कि सूरी ने किस आधार पर अपने अधिकार का प्रयोग किया।राष्ट्रपति के वकील का तर्कअवान के बाद, राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के वकील अली जफर ने अपनी दलीलें शुरू कीं और जोर देकर कहा कि डिप्टी स्पीकर के फैसले के मामले में अदालत का कोई भी निर्देश उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
जफर ने बताया कि विचाराधीन मामला अनुच्छेद 95 और 69 की व्याख्या से संबंधित है। संविधान के प्रावधानों की व्याख्या के लिए छह नियम हैं। इसे केवल शब्दों के बजाय इसकी वास्तविक भावना के अनुसार समझा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि जिस तरह न्यायिक कार्यवाही पर संसद में बहस नहीं हो सकती, उसी तरह अदालतें भी संसद की कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं। दुर्भाग्य से, याचिकाकर्ता (विपक्ष) चाहते हैं कि मामले को डिप्टी स्पीकर के फैसले के खिलाफ अपील के रूप में सुना जाए। उन्होंने कहा, यह मामला वास्तव में नेशनल असम्बेली के विशेषाधिकारों में हस्तक्षेप है।
जफर ने समझाया कि भले ही 10 सदस्यों को वोट देने की अनुमति नहीं दी गई और उन्हें सदन से निकाल दिया गया, लेकिन इस तरह के कदम को कोई भी चुनौती नहीं दे सकता।
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि लेकिन वे (विपक्ष) कह रहे हैं कि एक नया स्पीकर आना चाहिए और फिर से मतदान होना चाहिए।
जफर ने कहा, डिप्टी स्पीकर के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाना संसद में हस्तक्षेप है। स्पीकर को निर्देश देना संसद को निर्देश देने के बराबर है, जो असंवैधानिक है।
इस पर चीफ जस्टिस बंदियाल ने पूछा कि क्या संविधान का उल्लंघन होने पर भी हस्तक्षेप संभव नहीं है। जफर ने जवाब दिया, मैं बाद में अपनी दलीलें दूंगा कि क्या संवैधानिक है और क्या नहीं।सुप्रीम कोर्ट में आज की कार्यवाही का समय खत्म होने के बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि मामले की सुनवाई अब भारतीय समय के मुताबिक कल सुबह 10 बजे शुरू होगी।
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