फ्रांस में पैगंबर मोहम्मद के कार्टूनों को लेकर जो हत्याकांड पिछले दिनों हुआ, उसका धुंआ अब सारी दुनिया में फैल रहा है। सेमुएल पेटी नामक एक फ्रांसीसी अध्यापक की हत्या अब्दुल्ला अजारोव नामक युवक ने इसलिए कर दी थी कि उस अध्यापक ने अपनी कक्षा में छात्रों को मोहम्मद साहब के कार्टून दिखा दिए थे। अब्दुल्ला की भी फ्रांसीसी पुलिस ने गोली मारकर हत्या कर दी। अब यह मामला इतना तूल पकड़ रहा है कि फ्रांस समेत यूरोपीय राष्ट्रों में अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर भारी-भरकम प्रदर्शन हो रहे हैं और इस्लामी उग्रवादियों पर तरह-तरह के प्रतिबंधों की माँग की जा रही है। उधर दुनिया के कई इस्लामी राष्ट्र हैं, जो फ्रांस पर बुरी तरह से बरस रहे हैं और अभिव्यक्ति की इस स्वच्छंदता की भर्त्सना कर रहे हैं।
तुर्की के राष्ट्रपति तय्यब एरदोगन ने कहा है कि फ्रांस के राष्ट्रपति अपनी दिमाग़ी जाँच कराएँ। (कहीं वे पागल तो नहीं हो गए हैं) क्योंकि वे कहते हैं कि इसलाम फ्रांस के भविष्य को चौपट करनेवाला है। उन्होंने फ्रांसीसी वस्तुओं के बहिष्कार की अपील कर दी है। ऐसी ही अपीलें मलेशिया-जैसे अन्य मुसलिम राष्ट्र भी कर रहे हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने ज़रा बेहतर प्रतिक्रिया की है।
इमरान ख़ान ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमेनुएल मेक्रो से कहा है कि उन्हें इसलाम-द्रोह फैलाने की बजाय इस दुखद मौक़े पर ऐसी वाणी बोलनी चाहिए थी, जिससे लोगों के घावों पर मरहम लगता और आतंकवादी कोई भी होता, चाहे वह मुसलिम या गोरा नस्लवादी या नाज़ी होता, भड़कता नहीं। उनके बयान आग में तेल का काम कर रहे हैं।
एक तरफ़ मुसलिम नेताओं और संगठनों के ऐसे बयान आ रहे हैं और दूसरी तरफ़ यूरोप के शहरों में पैगंबर मोहम्मद के कार्टूनों के पोस्टर बना-बनाकर दीवारों पर चिपकाए जा रहे हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि कुछ देशों के फ्रांसीसी नागरिकों पर भी जानलेवा हमले शीघ्र ही सुनने में आएँ। ये दोनों तेवर मुझे अतिवादी लगते हैं।
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