कलकत्ता हाई कोर्ट एक बार फिर ख़बरों में है। पश्चिम बंगाल बार कौंसिल ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एन. वी. रमना को एक चिट्ठी लिख कर कलकत्ता हाई कोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस राजेश बिंदल को पद से हटाने की माँग की है। इस चिट्ठी में जस्टिस बिंदल पर न्याय का मखौल उड़ाने, भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने और पूर्वग्रह से ग्रस्त होने के आरोप लगाए गए हैं।
इसमें कहा गया है कि कलकत्ता हाई कोर्ट पहुँचते ही जस्टिस बिंदल को कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया और उन्होंने एक के बाद एक ऐसे भेदभावपूर्ण फ़ैसले लिए हैं, जिसकी वजह से ये सवाल उठते हैं और यह चिट्ठी लिखनी पड़ी है। इस चिट्ठी में कई उदाहरण भी दिए गए हैं।
नारद ज़मानत मामला
मुख्य न्यायाधीश को लिखे ख़त में कहा गया है कि नारद ज़मानत मामले में 17 मई 2021 को विशेष सीबीआई अदालत से फ़िरहाद हक़ीम को मिली ज़मानत आदेश पर जस्टिस बिंदल ने बग़ैर हक़ीम का पक्ष जाने ही रोक लगा दी।
इसमें यह कहा गया कि सीबीआई ने इस मामले में जिस तरह याचिका दी और अंतरिम ज़मानत याचिका को खारिज कर दिया गया, उससे कई सवाल खड़े हो गए।
इस चिट्ठी में यह भी कहा गया है कि जस्टिस बिंदल के खंडपीठ ने जिस तरह मामले की सुनवाई की, उस पर जस्टिस अरिंदम सिन्हा ने 24 मई को गंभीर टिप्पणी की थी।
बार कौंसिल की चिट्ठी में कहा गया है कि सीबीआई को याचिका दायर करने की छूट कई बार दी गई, पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और मलय घटक को याचिका देने की छूट नहीं मिली, जिससे यह साफ हो जाता है कि जस्टिस बिंदल का पर्वग्रह व भेदभाव साफ होता है।
पूर्वग्रह
इस ख़त में यह भी कहा गया है कि सोशल मीडिया पर डाले गए पोस्ट से भी जस्टिस बिंदल के पूर्वग्रह का पता चलता है। इसमें वायरल हुई एक तसवीर भी है, जिसमें जस्टिस बिंदल राज्यपाल जगदीप धनखड़ के घर पर देखे जा सकते हैं।
बार कौंसिल ने कहा है कि न्यायालय की गरिमा को बरक़रार रखने के लिए यह ज़रूरी है कि जस्टिस बिंदल को तुरन्त कलकत्ता हाई कोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के पद से हटा दिया जाए।
बता दें कि इसके पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जब नंदीग्राम से शुभेंदु अधिकारी के निर्वाचन को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी तो कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश ने यह मामला उस जज की बेंच के पास भेजा था, जिन पर बीजेपी का सक्रिय सदस्य होने का आरोप तृणमूल कांग्रेस ने लगाया था।
जिस जज के पास यह मामला भेजा गया था, उन्होंने बीजेपी से अपने जुड़ाव से इनकार नहीं किया था, बल्कि यह कहा था कि जब राजनीतिक पृष्ठभूमि के वकील मामले की पैरवी कर सकते हैं तो राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले जज को क्यों नहीं स्वीकार कर सकते हैं।
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