राष्ट्रवाद का विरोध करने वाले रवींद्रनाथ ठाकुर की ज़मीन पर उग्र हिन्दू राष्ट्रवाद कुलाँचें मार रहा है, राधा और कृष्ण को समर्पित गीत गाने वाले मुसलमानों और बाऊल की धुन में रमे रहने वाले हिन्दू-मुसलमानों के बीच इसलामी कट्टरपंथ बढ़ता जा रहा है। सिद्धांतों पर राजनीति के लिए मशहूर पश्चिम बंगाल में हिन्दू-मुसलमान ध्रुवीकरण पर वोट पड़ सकते हैं। सचमुच, पद्मा में काफी पानी बह चुका है। पश्चिम बंगाल बदल चुका है। असदउद्दीन ओवैसी इस पर कितना दूरगामी प्रभाव छोड़ पाएंगे और बंगाल की राजनीति को बदल पाएंगे, सवाल यह है। इस श्रृंखला की दूसरी कड़ी पढ़ें।
प्रमोद मल्लिक
जिस राज्य की 100-110 विधानसभा सीटों पर मुसलमान वोटर निर्णायक स्थिति में हैं, जिस राज्य के मुख्यमंत्री पर मुसलमानों के तुष्टिकरण का आरोप लगता है, जिस राज्य में हिन्दू-मुसलमान विभाजन की राजनीति अभी भी जड़ें नहीं जमा पाई हैं, वहां मुसलमानों की बात करने वाले असदउद्दीन ओवैसी क्या कहेंगे?
वे 'मुसलिम विक्टिमहुड' का कार्ड कैसे खेलेंगे? वे सरकार से पैसे पाने वाले इमामों या अंग्रेजी माध्यम के मदरसे में मुफ़्त की पढ़ाई करने वाले बच्चों के अभिभावकों के पास क्या तर्क लेकर जाएंगे कि मुसलमानों को अलग-थलग कर देने का उनका तर्क लोग मान लें?
साफ है, पश्चिम बंगाल न तो बिहार है न ही महाराष्ट्र, जहां के ग़ैर-बीजेपी दलों ने मुसलमानों की समस्याओं से वाकई किनारा कर लिया है, क्योंकि उन्हें बहुसंख्यक हिन्दू मतदाताओं के नाराज़ होने का डर है। एआईएमआईम को असली राजनीतिक चुनौती का सामना तो क़ाजी नज़रुल इसलाम की भूमि पर करना है।
ओवैसी के हाथ तुरुप का पत्ता!
पर ओवैसी के पास तुरुप का पत्ता है और वह है मुसलमानों के पिछड़ेपन का। वह इसे ही अपना आधार बनाएंगे, इसे इससे समझा जा सकता है कि ओवैसी ने बिहार चुनाव बहुत पहले ही ट्वीट कर कहा था कि पश्चिम बंगाल के मुसलमान तमाम ह्यूमन इंडेक्स में पिछड़े हुए है। इससे इनकार करना ममता बनर्जी के लिए मुश्किल होगा। खुद राज्य सरकार मानती है कि सरकारी नौकरियों में सिर्फ 4 प्रतिशत मुसलमान हैं, न्यायपालिका में यह तादाद 6 प्रतिशत है।
ओवैसी यदि उच्च शिक्षा में मुसलमानों की हिस्सेदारी का मुद्दा उठाते हैं तो मुख्यमंत्री बगलें झांकने को मजबूर होंगी। जिस राज्य में 28 प्रतिशत मुसलमान हैं, वहां उच्च शिक्षा में मुसलमानों की भागेदारी 11 प्रतिशत है।
पिछड़े हुए हैंं मुसलमान!
गाँवों में स्थिति ज़्यादा भयावह है। अमर्त्य सेन स्थापित प्रतीची ट्रस्ट के 2016 के अध्ययन के मुताबिक़, राज्य के 341 ब्लॉकों में से जिन 65 ब्लॉकों में मुसलमान बहुसंख्यक हैं, उनमें शिक्षा पर खर्च पहले से कम हो रहा है। शिक्षा पर होने वाले खर्च के निगेटिव और शून्य से नीचे होना वाकई बताता कि गाँवों का मुसलमान शिक्षा पर खर्च नहीं कर रहा, ज़ाहिर है, वहां शिक्षा घट रही है।
ग़रीबी
प्रतीची ट्रस्ट का अध्ययन यह भी बताता है कि पश्चिम बंगाल की 32 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती है, पर मुसलमानों में सिर्फ 19 प्रतिशत शहरों में रहते हैं।
घरेलू खर्च के मामले में प्रतीची ट्रस्ट के नतीजे और अधिक चौंकाने वाले हैं। इसके अनुसार 38.3 प्रतिशत मुसलमान परिवारों की मासिक आय 2,500 रुपए या इससे कम है। सिर्फ 3.8 प्रतिशत मुसलमान परिवारों की मासिक आय 15,000 रुपए या उससे अधिक है।
कुल मिला कर, पश्चिम बंगाल के 80 प्रतिशत मुसलमान परिवारों की मासिक आय 5,000 रुपए से कम है।
बता दें कि डॉक्टर अमर्त्य सेन ने नोबेल पुरस्कार के साथ मिले पैसों एक एक हिस्से का इस्तेमाल प्रतीची ट्रस्ट के गठन पर किया था यह ट्रस्ट पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में आर्थिक शोध करता है और इसकी विश्वसनीयता है।
बेरोज़गारी
पर्यवेक्षकों का कहना है कि हालांकि वाम मोर्चा के दौरान हुए भूमि सुधारों का फ़ायदा मुसलमानों को मिला क्योंकि बंटाई का ज़्यादा काम तो वे ही करते थे, लेकिन बाद में जब उसी वाम मोर्चा के शासनकाल में उद्योग-धंधे चौपट हो गए तो उसका असर सब पर पड़ा और मुसलमान भी इससे बच नहीं सके।
मुसलमानों की ये समस्याएं पूरे देश में हैं, पश्चिम बंगाल कोई अपवाद नहीं है। यहां तो स्थिति फिर भी बेहतर है। सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की संख्या का राष्ट्रीय औसत 2 प्रतिशत है, बंगाल में यह तो प्रतिशत है। उच्च शिक्षा में 11 प्रतिशत मुसलमान हैं, जो राष्ट्रीय औसत से बहुत ऊपर हैं।
लेकिन जब चुनाव पश्चिम बंगाल में होगा तो बात भी यहीं की होगी। दूसरे राज्यों की स्थितियों के आधार पर अपने राज्य की स्थिति को उचित ठहराना मुश्किल होगा। ममता की कमज़ोरी यहां हैं। ओवैसी को यह पता है।
मुसलमानों का वोटिंग पैटर्न
पश्चिम बंगाल के मुसलमानों के वोटिंग पैटर्न पर एक नज़र डालने से कुछ बातें साफ़ होती हैं। एनडीटीवी के एक अध्ययन के मुताबिक़, लोकसभा चुनाव 2014 में मुसलमानों के वोटों में से वाम मोर्चा को 40 प्रतिशत, तृणमूल कांग्रेस को 30 प्रतिशत, कांग्रेस को 20 प्रतिशत व अन्य को 8 प्रतिशत वोट मिले थे।
साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में मुसलमानों का 70 प्रतिशत वोट तृणमूल कांग्रेस, 20 प्रतिशत कांग्रेस और वाम मोर्चा को 5 प्रतिशत वोट मिले थे। वाम मोेर्चा की दुर्गति का यह कारण भी था।
हिन्दू वोटों का कॉन्सोलिडेशन!
मुसलमानों और हिन्दुओं के वोटों का कॉनसोलिडेशन कैसे हुआ, इसे इससे समझा जा सकता है कि 2014 में तृणमूल कांग्रेस को मुसलिम-बहुल इलाक़ों में 42 प्रतिशत और हिन्दू-बहुल इलाक़ों में 27 प्रतिशत वोट मिले।
पश्चिम बंगाल के चुनाव का नतीजा जो हो, पर सवाल तो यह है कि क्या ओवैसी की राजनीति देशहित में है? देखें, वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष क्या कहते हैं।
साल 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 40 प्रतिशत वोट मिले थे, 2019 में वह गिर कर 10 प्रतिशत पर आ गया बीजेपी को 1996 में 10 प्रतिशत वोट मिला था, वह 2019 में 40 प्रतिशत पर आ गया। इस चुनाव में पश्चिम बंगाल की 42 में से 18 सीटें जीत कर बीजेपी ने सबको हैरत में डाल दिया।
इस चुनाव में बीजेपी से सिर्फ 1.5 प्रतिशत ज़्यादा वोट ही तृणमूल कांग्रेस को मिले थे। मुसलमानों और ख़ास कर एआईएमआईएम की भूमिका यहां अधिक महत्वपूर्ण है। चुनाव में मुकाबला तिकोणा होगा।
तिकोना मुक़ाबला
सीपीआईएम और कांग्रेस तृणमूल के साथ मिल कर इसे दोतरफा बना सकती हैं, पर ममता बनर्जी की निरंकुश कार्यशैली और असुरक्षित माहौल में चुनाव लड़ने की विवशता में इसमें आड़े आएगी। दीवाल से पीठ सटा कर लड़ाई लड़ रही ममता की पार्टी अधिक सीटें नहीं दे पाएंगी और वापसी की तलाश में जुटा वाम मोर्चा और कांग्रेस कम पर समझौता भी नहीं कर सकेंगे। उनके भी कार्यकर्ता व स्थानीय नेता हैं जो बीजेपी व तृणमूल की दुहरी मार झेल रहे हैं।
बंगाल में होने वाले तितरफा मुक़ाबले का सच यह है कि ममता बनर्जी एक अजीब तिराहे पर खड़ी हैं या कर दी दी गई हैं। उन पर मुसलमानों की उपेक्षा का आरोप ओवैसी लगाएंगे, यदि उन्होंने जवाब दिया कि उन्होंने ये काम किए हैं तो बीजेपी को मौक़ा मिलेगा। बीजेपी पलटवार करेगी कि वह तो मुसलिम तुष्टीकरण कर रही हैं।
हिन्दू तुष्टीकरण!
सच तो यह है कि ममता बनर्जी ने मुसलिम तुष्टीकरण के साथ-साथ हिन्दू तुष्टीकरण का काम भी किया है। ममता ने सितंबर 2020 में राज्य के आठ हज़ार से ज़्यादा ग़रीब ब्राह्मण पुजारियों को एक हज़ार रुपए मासिक भत्ता और मुफ़्त आवास देने की घोषणा की। ममता बनर्जी ने राज्य में हिंदी भाषी वोटरों को अपने साथ जोड़ने के लिए तृणमूल कांग्रेस की हिंदी सेल का गठन किया है।
इस सेल का चेयरमैन पू्र्व केंद्रीय मंत्री दिनेश त्रिवेदी को बनाया गया है। पश्चिम बंगाल हिंदी समिति का विस्तार करते हुए कई नए सदस्यों और पत्रकारों को इसमें शामिल किया गया है। वर्ष 2011 में पुनर्गठित हिंदी अकादमी में 13 सदस्य थे। यह तादाद अब बढ़ा कर 25 कर दी गई है।
डर गईं ममता?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी समेत दूसरे दल भी इन फ़ैसलों की आलोचना कर रहे हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, तृणमूल कांग्रेस बंगाल में बीजेपी के बढ़ते असर से डर गई है। इसी वजह से उन्होंने हिंदू और हिंदी भाषियों के वोटरों को लुभाने के लिए तमाम फ़ैसले किए हैं। लेकिन राज्य के लोग इस सरकार की हक़ीक़त समझ गए हैं। उनको अब ऐसा चारा फेंक कर मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।'
दलित कार्ड
इसके साथ ही सरकार ने पहली बार दलित अकादमी के गठन का एलान करते हुए सड़क से सत्ता के शिखर तक पहुंचने वाले मनोरंजन ब्यापारी को इसका अध्यक्ष बनाया है। दलित अकादमी के गठन के पीछे उनकी दलील है कि दलित भाषा का बांग्ला भाषा पर काफी प्रभाव है।
पश्चिम बंगाल दलित साहित्य अकादमी के प्रमुख मनोरंजन ब्यापारी
ममता बनर्जी ने जिस होशियारी से दलित कार्ड को खेलने की कोशिश की है, वह एआईएमआईएम को पता है और वह भी उसी राह पर चलने की कोशिश कर रही है।
पश्चिम बंगाल एआईएमआईएम के अध्यक्ष ज़मीर-उल-हसन ने पत्रकारों से कहा है कि वे 86 सीटों पर दलितों के साथ मिल कर चुनाव लड़ेंगे।
बीजेपी ने इसकी काट के रूप में माटुआ और नाम शूद्र जैसे दलितों को अपनी ओर लाने की कोशिश की है। अमित शाह ही नहीं, नरेंद्र मोदी भी इसकी कोशिश कर चुके हैं। पिछे हफ्ते ही वह कोलकाता गए थे तो एक माटुआ परिवार जाकर खाना खाया था।
दलित कॉन्सोलिडेशन
लेकिन पश्चिम बंगाल में दलित समस्या वैसी नहीं दिखती है जैसी उत्तर प्रदेश में दिखती है। जातिवाद और भेदभाव है, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसी स्थिति नहीं होने से दलित वोटों का कॉनसॉलोडिशन नहीं है। लिहाजा, यह देखना दिलचस्प होगा कि दलित मुसलमानों के साथ जाएंगे या नहीं और जाएंगे तो उसका क्या असर होगा।
लेकिन जिस मुसलमान वोट के व्यवहार पर सबकुछ निर्भर है, वह कैसे वोट करता है, यह देखना होगा। जिस राज्य में बीजेपी सिर्फ 1.5 प्रतिशत वोट से ही तृणमूल से पीछे छूट गई थी, वहां यदि तिकोना मुक़ाबले में यदि हर क्षेत्र में वह 5000 वोट भी काट लेती है तो तृणमूल के लिए दिक्क़तें होंगी।
पश्चिम बंगाल के 5 मुसलिम-बहुल ज़िलों में से 4 बिहार की सीमा से सटे हुए हैं, ये बांग्लादेश से भी सटे हुए हैं। यहां 60 सीटे हैं। यदि इन ज़िलों में एआईएमआईएम ने मुसलमानों को तोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली तो मामला पलट सकता है।
ममता की विडंबना!
यह विडंबना है कि ममता इस जाल में फँस गई हैं। उन्होंने ही 1998 के चुनाव में बीजेपी से क़रार किया था और लोकसभा व विधानसभा का चुनाव लड़ा था। हालांकि बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली, पर ममता पर आरोप लगा कि वह अंगुली पकड़ कर एक सांप्रदायिक दल को राज्य की राजनीति में ले आई हैं। बीजेपी की स्थिति उस समय भारतीय राजनीति में अछूत की थी, ममता ने उसे सम्मान दिलाया था। आज ममता को उसी पार्टी से लड़ना है।
दूसरी विंडबना यह है कि मुसलमानों के तुष्टीकरण का आरोप झेल रही ममता को अब ओवैसी के सवालों का जवाब देना है कि तमाम ह्यूमन इनडेक्स में बंगाल के मुसलमान बहुत ही पिछड़े हुए हैं। ओवैसी की पार्टी को कितनी सीटें मिलेंगी, चुनाव बाद ही पता चलेगा। पर यह तो साफ़ है कि वे ध्रुवीकरण बढ़ाएंगे, मतों का विभाजन कराएंगे, बीजेपी को इससे फ़ायदा होगा।
राष्ट्रवाद का विरोध करने वाले रवींद्रनाथ ठाकुर की ज़मीन पर उग्र हिन्दू राष्ट्रवाद कुलाँचें मार रहा है, राधा और कृष्ण को समर्पित गीत गाने वाले मुसलमानों और बाऊल की धुन में रमे रहने वाले हिन्दू-मुसलमानों के बीच इसलामी कट्टरपंथ बढ़ता जा रहा है। सिद्धांतों पर राजनीति के लिए मशहूर पश्चिम बंगाल में हिन्दू-मुसलमान ध्रुवीकरण पर वोट पड़ सकते हैं। सचमुच, पद्मा में काफी पानी बह चुका है। पश्चिम बंगाल बदल चुका है।
गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।
नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & Norms व Cancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 6 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 180 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 6 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 12 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से एक वर्ष के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 12 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
सदस्यता तिथि से एक वर्ष की अवधि में 'सत्य हिन्दी' द्वारा आयोजित हर webinar में भाग लेने के लिए आपको मुफ़्त निमंत्रण। आप प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा।
'सत्य हिन्दी' द्वारा यदि भारत में कुछ विशेष कार्यक्रमों (Ground Events) का आयोजन किया जाता है, तो उनमें से किसी एक कार्यक्रम में भाग लेने का विशेष निमंत्रण (Special Invite)* शर्त लागू: (जब तक कोरोना वायरस के कारण उपजी स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो जाती, तब तक यह सम्भव नहीं होगा।)
विशिष्ट सदस्यता स्मृति चिह्न।**
* स्मृति चिह्न हम केवल भारतीय पते पर ही भेज पायेंगे, विदेश में नहीं। **स्मृति चिह्न सदस्यता लेने की तिथि के 60 दिन बाद भेजा जायेगा।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
सदस्यता तिथि से एक वर्ष की अवधि में 'सत्य हिन्दी' द्वारा आयोजित हर webinar में भाग लेने के लिए आपको मुफ़्त निमंत्रण। आप प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा।
'सत्य हिन्दी' द्वारा यदि भारत में कुछ विशेष कार्यक्रमों (Ground Events) का आयोजन किया जाता है, तो उनमें से किसी एक कार्यक्रम में भाग लेने का विशेष आरक्षित प्रीमियम निमंत्रण (Specially Reserved Premium Invite)* शर्त लागू: (जब तक कोरोना वायरस के कारण उपजी स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो जाती, तब तक यह सम्भव नहीं होगा।)
अति विशिष्ट सदस्यता स्मृति चिह्न।**
** स्मृति चिह्न हम केवल भारतीय पते पर ही भेज पायेंगे, विदेश में नहीं। **स्मृति चिह्न सदस्यता लेने की तिथि के 60 दिन बाद भेजा जायेगा।
This membership is open only to Non Resident Indians (NRI), Persons of Indian Origin (PIO), Overseas citizens of India (OCI) or Indian Citizens currently staying abroad. If you are not belong to any of these categories, please do not proceed.
*Membership will be cancelled if the above declaration is found to be false and Membership Fee will be refunded to the source account which was used to pay it.
प्रमोद मल्लिक
लेखक पत्रकार हैं, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर लिखते रहते हैं। और पढ़ें »
अपनी राय बतायें