जिस मनरेगा के तहत मज़दूरों को रोजगार देने की गारंटी दी गई है उसके लिए आख़िर केंद्र सरकार पश्चिम बंगाल सरकार को फंड क्यों जारी नहीं कर रही है? क्या 2021 में बीजेपी के बंगाल चुनाव हारने की वजह से राज्य को फंड रोका जा रहा है? कम से कम ममता बनर्जी की टीएमसी लगातार केंद्र पर ऐसा ही आरोप लगाती रही है। लेकिन अब केंद्र सरकार ने आरटीआई के माध्यम से इस सवाल का लिखित में जवाब दिया है। इसने कहा है कि बंगाल में मनरेगा में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियों की वजह से वह फंड जारी नहीं कर पा रही है। तो सवाल है कि क्या केंद्र ऐसा कर सकता है और यदि ऐसा कर सकता है तो कब तक? क्या अनिश्चितकाल तक के लिए?
केंद्र ने इसका जवाब आरटीआई में दिया है। आरटीआई में केंद्र ने क्या कहा है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर यह विवाद क्या है और ममता बनर्जी की सरकार क्या आरोप लगाती रही है।
दरअसल, अब क़रीब-क़रीब तीन साल होने को आए जब केंद्र ने मनरेगा के तहत बंगाल को फंड ही जारी नहीं किया। केंद्र ने 2021 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा के तहत पश्चिम बंगाल को फंड की आखिरी किश्त भेजी थी। तब से केंद्र ने राज्य में कार्यक्रम के कार्यान्वयन में अनियमितताओं का हवाला देते हुए धनराशि रोक रखी है। 2021 ही वह साल है जब बीजेपी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव हार गई थी। और टीएमसी इसको लेकर बीजेपी और मोदी सरकार को घेरती रही है।
इसी साल अगस्त में टीएमसी के वरिष्ठ नेता और सांसद डेरेक ओब्रायन ने कहा था कि 'अभिषेक बनर्जी और टीएमसी इस पर केंद्र से ह्वाइट पेपर लाने की मांग करती रही है जिससे कि यह साबित हो जाए कि बीजेपी सरकार ने बंगाल को 2021 के चुनाव में हार के बाद क्या भुगतान किया है।' पश्चिम बंग खेत मजूर समिति द्वारा दायर याचिका पर कलकत्ता उच्च न्यायालय में एक मामले की सुनवाई में राज्य सरकार ने बताया कि फंड रोके जाने के बाद से उसने केंद्र को 20 से अधिक बार पत्र लिखा है, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला है।
टीएमसी के ऐसे आरोपों के बीच ही पीएम मोदी ने मार्च महीने में आरामबाग में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था कि 'केंद्र बंगाल को फंड भेज रहा है, लेकिन टीएमसी सरकार उनका इस्तेमाल नहीं कर रही है और वह राह में बाधा डाल रही है। टीएमसी सरकारी नौकरियों से लेकर जानवरों की तस्करी तक- हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार कर रही है।'
बीजेपी और टीएमसी में चल रहे ऐसे आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच आरटीआई के माध्यम से केंद्र से जवाब मांगा गया। आरटीआई के जवाबों से पता चलता है कि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए फंड को रोक दिया है।
द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार आरटीआई में मंत्रालय ने कहा है कि मनरेगा के तहत चलाए जा रहे 63 कार्यस्थलों का निरीक्षण किया गया था जिनमें से 31 में गड़बड़ियाँ पाई गईं। हालाँकि 32 कार्यस्थलों पर काम संतोषजनक पाया गया।
केंद्रीय टीमों ने कार्यान्वयन में इन गड़बड़ियों की व्यापक रूप से रिपोर्ट की। इसमें कहा गया है, 'जाँच से बचने के लिए बड़े कार्यों को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटा गया', 'मौजूदा काम को धोखाधड़ी से मनरेगा के तहत पूरा किया गया दिखाया गया', 'सिस्टम की खरीद के लिए निविदा मानदंडों का पालन नहीं किया गया', 'मनरेगा के तहत नहीं आने वाले काम भी किए गए', 'फाइलों का खराब रखरखाव किया गया' आदि। केंद्र ने यह भी कहा कि जब इन गड़बड़ियों की ओर इशारा किया गया तो राज्य सरकार ने असंतोषजनक रिपोर्ट दी और वह भी देरी से। इसी के आधार पर फंड को रोका गया है।
बता दें कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 में एक वित्तीय वर्ष में न्यूनतम 100 दिनों के रोजगार देने की गारंटी दी गई है। पश्चिम बंगाल में 3.4 करोड़ पंजीकृत मनरेगा श्रमिक हैं। केंद्र मनरेगा के लिए 90% बजट वहन करता है।
इस अधिनियम की धारा 27 केंद्र को योजना के कार्यान्वयन में अनियमितता पाए जाने पर फंड जारी करने से रोकने का अधिकार देती है। हालांकि, धारा अनिश्चित काल के लिए निधि रोके रखने का प्रावधान नहीं करती है। इसमें यह भी कहा गया है कि सही समय में इसके सही क्रियान्वयन के लिए उपाय किए जाने चाहिए। लेकिन आरटीआई में इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं कहा गया है।
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