ममता बनर्जी ने सीएए के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। केंद्र द्वारा इसे अधिसूचित किए जाने के एक दिन बाद ममता बनर्जी ने मंगलवार को कहा कि इसमें स्पष्टता की कमी है। उन्होंने राज्य के लोगों से नागरिकता के लिए आवेदन नहीं करने को कहा। उन्होंने चेताया कि यदि उन्होंने ऐसा किया तो उन्हें शरणार्थी और घुसपैठिए के रूप में चिह्नित किया जाएगा और सरकारी योजनाओं से वंचित किया जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि ऐसा नागरिक होने के बाद भी किया जाएगा।
ममता बनर्जी ने कहा, 'जिन लोगों को आवेदन करने के लिए कहा जा रहा है, मैं आपको बता दूं… एक बार आवेदन करने के बाद आपको नागरिक होने के बावजूद शरणार्थी के रूप में चिह्नित किया जाएगा। आवेदन करते ही ऐसे लोग घुसपैठिये बन जायेंगे। यह अधिकार छीनने का खेल है। अगर आप आवेदन करते हैं तो इसकी कोई गारंटी नहीं है कि आपको नागरिकता मिलेगी या नहीं। आप अपनी संपत्ति खो देंगे। आप सरकारी योजनाओं से वंचित रहेंगे। चुनाव से पहले ये है बीजेपी का प्लान। आवेदन करने पर सारे नागरिक अधिकार छीन लिये जायेंगे। इसके लिए आवेदन करने से पहले हजार बार सोचें। यह एनआरसी से जुड़ा है।'
केंद्र सरकार ने सोमवार को नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए को अधिसूचित कर दिया। इसको क़रीब पाँच साल पहले ही क़ानून बना दिया गया था। लेकिन इसको लागू किए जाने और पूरी प्रक्रिया के लिए नियम-क़ायदों को अधिसूचित नहीं किया गया था और इस वजह से इसे लागू नहीं किया जा सका था। इसका मतलब है कि क़ानून बने क़रीब पाँच साल होने के बावजूद अब तक किसी को भी इसके तहत नागरिकता नहीं मिल सकी है।
सीएए को दिसंबर 2019 में अधिनियमित किया गया था और 10 जनवरी, 2020 को यह पूरी तरह क़ानून बन गया था। लेकिन सीएए नियमों को अभी तक अधिसूचित नहीं किया गया था। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के नागरिकों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इन देशों के हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदाय के उन लोगों को नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे।
ममता ने कहा कि वह पश्चिम बंगाल में सीएए लागू नहीं होने देंगी। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल की सीएम ने कहा, 'मैं उन्हें सीएए लागू नहीं करने दूंगी। मैं अपने राज्य में लोगों के बुनियादी अधिकार किसी को छीनने नहीं दूंगी। इसके लिए अगर मुझे अपनी जान भी कुर्बान करनी पड़ी तो मैं ऐसा करूंगी।'
टीएमसी नेता ने कहा कि यह अधिनियम लोगों को परेशान करने के लिए बनाया गया है। उन्होंने बताया कि संयुक्त राष्ट्र ने साफ़ तौर पर कहा है कि शरणार्थियों को विस्थापित नहीं किया जाना चाहिए और किसी देश से बाहर नहीं निकाला जाना चाहिए। उन्होंने कहा, 'यह बुनियादी मानवता है। क्या हमने कभी देखा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता दी जा रही है?'
ममता ने कहा, 'यह कानून केवल लोगों को परेशान करने और उनके लिए चुनाव में दो सीटें सुनिश्चित करने के लिए है। कानून 2019 में पारित किया गया था। चुनाव से ठीक पहले उन्होंने इसकी घोषणा की है... साफ़ तौर पर उनका निहित स्वार्थ है।'
उन्होंने कहा, 'वे पिता का जन्म प्रमाण पत्र मांग रहे हैं... क्या आपके पास आपके पिता का जन्म प्रमाण पत्र है? मेरे पास एक भी नहीं है। मैं अपने माता-पिता की जन्मतिथि भी नहीं जानती... जो लोग खुशी से उछल रहे हैं वे इस अधिनियम को देखें और जानें कि यह कितना खतरनाक है। यह आपको शरणार्थी के रूप में चिह्नित करेगा और फिर आपकी संपत्ति, आपका घर, आपके बुनियादी अधिकार छीन लिए जाएंगे... कुछ लोगों को नागरिकता मिल सकती है लेकिन जिन्हें यह नहीं मिलेगी उन्हें हिरासत शिविर में भेज दिया जाएगा।'
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह बंगाल को फिर से विभाजित करने और बंगालियों को देश से बाहर निकालने का खेल है।
अपनी राय बतायें