पश्चिम बंगाल में अपनी सरकार बनाने के लिए राज्य में ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे बीजेपी के नेताओं के जवाब में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी जनसभाओं, रैलियों से चुनावी माहौल बनाना शुरू कर दिया है। यह तय है कि आने वाले कुछ महीने बंगाल विधानसभा चुनाव के नाम होंगे, जहां बीजेपी और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में जोरदार टक्कर होनी तय मानी जा रही है।
पिछले मंगलवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बोलपुर में रैली की थी। ठीक एक हफ़्ते बाद 29 दिसंबर को ममता बनर्जी ने भी इसी इलाक़े में रैली कर बीजेपी को जवाब देने की कोशिश की और उस पर लोगों को बांटने की राजनीति करने का आरोप लगाया।
ममता ने कहा, ‘कुछ विधायकों को ख़रीद कर, उसमें से भी ज़्यादातर बेकार, ये मत सोचिए कि आप टीएमसी को ख़रीद सकते हैं।’ ममता को पिछले हफ़्ते तब जोरदार झटका लगा था, जब शुभेंदु अधिकारी सहित सात विधायक और सांसद सुनील मंडल बीजेपी में शामिल हो गए थे।
ममता ने एक बार फिर बीजेपी को बाहरी लोगों की पार्टी कहा। टीएमसी प्रमुख ने आरोप लगाया कि बीजेपी नफ़रत की और फर्जी राजनीति को राज्य में ला रही है। उन्होंने कहा कि इस तरह की चीजें रबिंद्रनाथ टैगोर के सोनार बांग्ला की धरती पर जीत नहीं दिला सकती हैं।
बंगाल चुनाव पर देखिए वीडियो-
मुख्यमंत्री ने कहा कि ऐसे लोग जो महात्मा गांधी और अन्य महापुरुषों की इज्जत नहीं करते, वे लोग सोनार बांग्ला के बारे में बात कर रहे हैं। ममता ने विश्व भारती यूनिवर्सिटी के कुलपति को बीजेपी का रबर स्टांप बताया।
ममता ने पिछले हफ़्ते अमित शाह द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब देते हुए कहा था कि शाह जानबूझकर पश्चिम बंगाल की ख़राब छवि पेश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल विकास के सूचकांकों में दूसरे राज्यों से आगे है।
बीजेपी भी आक्रामक
हाल ही में बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा के काफिले पर हुए हमले के बाद बीजेपी ने ममता सरकार पर हमले तेज़ किए हैं। बीजेपी का कहना है कि राज्य में लोकतंत्र पूरी तरह ख़त्म हो गया है और ममता सरकार में बीजेपी के कार्यकर्ताओं की लगातार हत्या हो रही है। बीजेपी ने अपने कार्यकर्ताओं की हत्या को लेकर राज्य में जबरदस्त आंदोलन छेड़ा हुआ है।
जनसंघ के संस्थापक और बीजेपी के प्रेरणा पुरूष श्यामा प्रसाद मुखर्जी के गृह राज्य बंगाल में भगवा लहराना बीजेपी का सपना रहा है।
साथ आए कांग्रेस-लेफ़्ट
यह शायद बंगाल में ममता बनर्जी और बीजेपी की आक्रामक राजनीति का ही असर है कि किसी वक़्त में बंगाल में 34 साल तक सत्ता में रहे वाम मोर्चा (लेफ़्ट) को फिर से कांग्रेस से हाथ मिलाना पड़ा है। बंगाल में अप्रैल-मई में चुनाव होने हैं, इस लिहाज से वक़्त ज़्यादा नहीं बचा है।
कांग्रेस और वाम मोर्चा ने यह फ़ैसला सोच-समझकर लिया है। दोनों दल इस बात को जानते हैं कि अगर टीएमसी या बीजेपी में से कोई भी सत्ता में आया तो बंगाल पर उनकी पकड़ कमजोर हो जाएगी और सत्ता में वापसी का ख़्वाब सिर्फ़ ख़्वाब ही बनकर रह जाएगा। इसलिए करो या मरो की हालत में दोनों को फिर साथ आना पड़ा।
अपनी राय बतायें