9 नवंबर, 2019 के बाद अब यह कहा जा रहा है कि ठहरे रहने का नहीं, आगे बढ़ने का वक़्त है। शायद उच्चतम न्यायालय ने अपने फ़ैसले से हमें आगे बढ़ने का अवसर दिया है। ऐसे लोगों की यह समझ है कि पिछले 30 वर्षों से भी कुछ अधिक से देश राम मंदिर की राजनीति के भँवर में फँस गया था। बड़ी अदालत ने झटके से उसे उससे निकाल लिया है। इससे बेहतर शायद यह कहना होगा कि पिछले कुछ वर्षों से देश जो तेज़ी से बहुसंख्यकवाद की खाई में गिर रहा था और लगता था कि हमारी अदालत उसमें रुकावट बन कर खड़ी हो जाएगी, वह भरम टूट गया। अदालत ने न सिर्फ़ ख़ुद को रास्ते से हटा लिया है बल्कि गिरते देश को एक धक्का और दे दिया है ताकि वह उस खाई में जल्दी जा गिरे। अदालत ने इस निर्णय में जो एकता दिखाई है, जिसे सर्वसम्मति कहा जा रहा है, वह बाहर राजनीतिक जगत में भी दिखलाई पड़ रही है। कांग्रेस पार्टी ने निर्णय का स्वागत किया है। उसके प्रवक्ताओं और नेताओं ने इसे ऐतिहासिक तक बतलाया है। निर्णय देते हुए अदालत की पीठ ने जो सर्वसम्मति दिखलाई है, उसे अभिषेक मनु सिंघवी ने अभूतपूर्व कहा है। बाक़ी दलों ने भी इसकी आलोचना नहीं की है। वह काम जिसे सिविल सोसाइटी कहा जाता है, उसके लिए छोड़ दिया गया है या कुछ अकेली आवाज़ों के लिए।