“चारों दिशाओं से चारों दिशाओं में
आज भारत को टुकड़ों में किसने बाँट दिया?
- वक़्त-बेवक़्त
- |
- |
- 18 May, 2020

रेल मंत्री चुन कर उन राज्यों पर आक्रमण करें जहाँ उनके दल की सरकार नहीं है, वह भी इस विपदा की घड़ी में, इससे ज़ाहिर होता है कि भारतीयता जैसी कोई उदात्त भावना नहीं जो राजनीति से ऊपर उठाने की ताक़त रखती हो।
उजड़े घर छोड़कर
दूसरे उजाड़ों में लोग जा रहे हैं
भूख और अपमान की ठोकरें खाकर
इतिहास, पीड़ा का इतिहास उनको बताता है
यह ज़मीन यहाँ से वहाँ तक जुड़ी है
वह उनका घर नहीं
उनके बच्चे ही उनका घर हैं”
रघुवीर सहाय की कविता ‘आज़ादी’ जैसे आज ही लिखी गई हो!
चारों दिशाओं से चारों दिशाओं में चलते ही चले जाते लोग कहाँ से आ रहे हैं और कहाँ जा रहे हैं? क्या वे भारत से निकल कर भारत को जा रहे हैं? क्या वे भारत नाम के किसी राष्ट्र या देश में रहते थे या हैं? या इस वायरस के संक्रमण की आशंका ने आख़िर साबित कर दिया कि भारत एक नहीं है। भारत को जेएनयू वालों ने नहीं तोड़ा, ‘अर्बन माओवादियों’ ने भी नहीं, न ‘जेहादियों’ ने। ऐसे किसी ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ का यह काम नहीं है जिसकी कल्पना से ‘भारतवासियों’ को डराकर अपना अनुचर बनाया जाता रहा है। एक विपदा या उसकी आशंका मात्र ने भारत को टुकड़ों में बाँट दिया। क्या इस आशंका ने? या, क्या उन्हें तोड़नेवाले वे हैं जो सबसे अधिक उसका नामजाप करते हैं?