भारत में अभी नागरिकता की कक्षाएँ चल रही हैं। शाहीन बाग़ में, खजूरी में, घंटा चौक में, सब्ज़ी बाग़ में, लाल बाग़ में, मुस्तफाबाद में, रखियाल में। इन कक्षाओं की अध्यापक औरतें हैं और उनमें भी अनेक जो उस भाषा में शिक्षित नहीं कही जा सकतीं जिसकी हमें आदत है। ये सब कामकाजी औरतें हैं, अगर हम यह न भूलें कि घरेलू काम भी एक काम है जिसकी तनख्वाह कभी नहीं दी जाती।
नागरिकता क़ानून: औरतों की सबसे बड़ी राजनीतिक गोलबंदी है शाहीन बाग़ का आंदोलन!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 20 Jan, 2020

नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ दिल्ली के शाहीन बाग़ से लेकर, लखनऊ, रांची सहित कई जगहों पर मुसलिम औरतें धरना दे रही हैं। ये औरतें घरों की चौखट लाँघ कर आई हैं, इसलिए कि इस बार सरकार का हमला उनके वजूद पर हुआ है और इसे उन्होंने महसूस किया है। लेकिन ऐसे समय में ख़ुद को मुसलिम औरतों की सबसे बड़ी हितैषी बताने वाली बीजेपी और उसके नेता कहां हैं?
ये औरतें घरों की चौखट लाँघ आई हैं इसलिए कि इस बार सरकार का हमला उनके वजूद पर हुआ है और उसे उन्होंने महसूस किया है। वे जो ज़ुबान बोल रही हैं उसे राजनीतिक कहा जाना चाहिए। गाँधी के नेतृत्व के भारतीय उपनिवेशवाद विरोधी आन्दोलन के बाद क्या हम कह सकते हैं कि यह औरतों की सबसे बड़ी राजनीतिक गोलबंदी है? इस बार लेकिन कोई गाँधी नहीं है।