शिक्षा संस्थानों पर लगाम लगाने के नए सरकारी फरमान की हिंदी की अखबारी दुनिया में कोई चर्चा नहीं है। क्या इसपर हम ताज्जुब करें? आखिर हिंदी अखबारी रवैया हिंदी पाठकों को बेखबर करने का ही रहा है। ज्ञान के संसार में क्या हो रहा है, किस किस्म की उथल-पुथल है, इसपर कोई चर्चा हिंदी मीडिया में शायद ही कभी की जाती हो। तो हिंदी का गुणगान और भारतीय संस्कृति का कीर्तन। लेकिन अभी हमारा विषय यह नहीं है।
भारत में ज्ञान की मौत पर आँसू कौन बहायेगा!
- वक़्त-बेवक़्त
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- 15 Feb, 2021

यह हुक्म सिर्फ विश्वविद्यालयों या शिक्षण संस्थानों के लिए नहीं है। शोध संस्थान, प्रयोगशालाएँ भी इसके घेरे में हैं। इस परिपत्र का अर्थ होगा व्यावहारिक रूप में किसी भी अकादमिक विचार विमर्श का अंत।
अभी तो हम भारत सरकार के उस हुक्म की तरफ ध्यान दिलाना चाहते हैं जिसके मुताबिक़ अब किसी भी ऐसे विषय पर जो सीमा या राज्य की सुरक्षा, जम्मू कश्मीर, लद्दाख, उत्तर पूर्वी राज्य से या कोई भी ऐसा विषय जो भारत के अंदरूनी मामलों से जुड़ा कोई भी ऑनलाइन कार्यक्रम नहीं किया जा सकता। राजनीतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक, व्यक्तिगत, प्रत्येक प्रसंग इस दायरे में ले आया गया है।