जब एक दूसरे से मिलने में भय नहीं था, वैसे समय में किसी एक दोपहर जॉन दयाल ने गपशप में मार्टिन नीमोलर की मशहूर पंक्तियाँ उद्धृत कीं। ये संभवतः पिछली सदी और इस सदी की भी सबसे ज़्यादा उद्धृत की जाने वाली पंक्तियाँ हैं। इनकी प्रसिद्धि का मुकाबला “दुनिया के मजदूरो एक हो” जैसे उद्धरण से ही किया जा सकता है। इनमें जो ‘अर्जेंसी’ का भाव है, वह इनको कविता के दर्जे में पहुँचा देता है। इन्हें पढ़कर अगर आप नीमोलर को कवि मान बैठें तो आपकी ग़लती नहीं। नीमोलर के बारे में कुछ आगे।
अगर वे कभी न आएँ मेरे लिए क्या मैं तब भी बोलूँ?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 17 Jan, 2021

रिहाई के बाद नीमोलर ने जो मंथन किया उससे वे इस नतीजे पर पहुँचे कि यहूदियों का जो क़त्लेआम हुआ, उसमें उनकी तरह के जर्मनों की खामोश भागीदारी थी। उन्होंने सामूहिक अपराधबोध की बात की। इस कारण वे जर्मनी में अलोकप्रिय हो गए भले ही जर्मनी के बाहर उनकी शोहरत उनके इस सिद्धांत के कारण बढ़ी। उन्होंने इस जनसंहार में जर्मन चर्च की ज़िम्मेदारी का सवाल भी उठाया।
पहले यह सोचें कि यह उद्धरण या कविता है क्या? एक अफ़सोस, एक चेतावनी, एक विलाप; क्या है यह? मैंने जॉन दयाल से पूछा इनमें “मैं” कौन है। क्योंकि ये पंक्तियाँ उस “मैं” को ही तो संबोधित हैं।