आज जीवित कुछ सबसे बड़े रचनाकारों में एक विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा हुई है।साहित्यिक जगत में इसका स्वागत हो,यह स्वाभाविक ही है। ख़ुद विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की है।कहा है कि उन्हें इसका ख़याल न था कि यह पुरस्कार उन्हें मिलेगा। इससे वे कुछ और लिख सकेंगे।उनके प्रशंसकों ने कहा है कि इससे ज्ञानपीठ पुरस्कार का मान बढ़ा है।
ज्ञानपीठ और विनोद शुक्ल के बहानेः क्या लेखकों/कवियों का सरोकार मर चुका है
- वक़्त-बेवक़्त
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- अपूर्वानंद
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- 24 Mar, 2025


अपूर्वानंद
जीवित रचनाकार विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार सचमुच खुश करने वाली सूचना है। लेकिन इस बहाने से अब तक इस पुरस्कार को पा चुके जीवित लेखकों/कवियों के सरोकार पर भी बात करना जरूरी है। ये लोग तब चुप रहे थे जब रामभद्राचार्य को यही पुरस्कार मिला था। स्तंभकार अपूर्वानंद ने ऐसे ही साहित्यिकों की कथनी-करनी पर विचार किया है। पढ़िएः
इस पुरस्कार के प्रति लेखक और उनके पाठकों की प्रतिक्रिया देखकर यह लगा कि हमारा साहित्यिक वर्ग दो गुणों से धीरे धीरे वंचित होता दीखता है जो साहित्य से अभिन्न हैं। इनमें एक तो स्मृति है और दूसरा सामाजिक विवेक। वरना ज्ञानपीठ पुरस्कार समिति ने ठीक एक साल पहले क्या किया है, इसे भूलकर आज यह वाहवाही न की जाती। इससे यह भी पता चलता है कि हमारे समाज में कोई ऐसी नैतिक रेखा हमने नहीं खींची है जिसका उल्लंघन करना अस्वीकार्य माना जाए। हमारे लिए नाक़ाबिले बर्दाश्त कुछ भी नहीं।
अपूर्वानंद
अपूर्वानंद दिल्ली विश्वविद्यालय में हिन्दी पढ़ाते हैं।