जीवित रचनाकार विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार सचमुच खुश करने वाली सूचना है। लेकिन इस बहाने से अब तक इस पुरस्कार को पा चुके जीवित लेखकों/कवियों के सरोकार पर भी बात करना जरूरी है। ये लोग तब चुप रहे थे जब रामभद्राचार्य को यही पुरस्कार मिला था। स्तंभकार अपूर्वानंद ने ऐसे ही साहित्यिकों की कथनी-करनी पर विचार किया है। पढ़िएः
हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और कवि विनोद कुमार शुक्ल को भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कारों में से एक प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनकी लेखन शैली, जिसमें सरलता और गहनता का मिश्रण है, ने उन्हें भारतीय साहित्य में एक प्रिय व्यक्ति बना दिया है। प्रियदर्शन की यह महत्वपूर्ण टिप्पणी हमें विनोद कुमार शुक्ल के कई और आयाम से भी परिचित कराती है।
हिन्दी के बड़े आलोचकों में शुमार प्रोफेसर मैनेजर पांडेय का रविवार 6 नवंबर को निधन हो गया। वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे। कौशल किशोर ने उन्हें यह लेख लिखकर श्रद्धांजलित दी है। कौशल किशोर, कवि, समीक्षक, संस्कृतिकर्मी व पत्रकार हैं। वे जन संस्कृति मंच, उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं।