शीर्षस्थ कथाकार शेखर जोशी के निधन के शोक से हम अभी उबर भी नहीं पाए थे कि प्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, सामाजिक-सांस्कृतिक चिंतक, ओजस्वी वक्ता और जन संस्कृति मंच के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफ़ेसर मैनेजर पांडे के निधन की खबर ने एक और आघात दिया। उनके जाने से प्रगतिशील व जनवादी आंदोलन की धारा में जो अंतराल पैदा हुआ है, उसे भर पाना आसान नहीं होगा। वे महज आलोचक नहीं थे। उनमें क्रांतिकारी बदलाव का सामाजिक-सांस्कृतिक चिंतन था। हमारे समय की राजनीति व समाज के बारे में उनके पास वैज्ञानिक विश्व दृष्टि थी। वे सच्चे मायने में पब्लिक इंटेलेक्चुअल (जन बुद्धिजीवी) की भूमिका में थे।