साईबाबा ने 12 अक्तूबर की रात 8.36 मिनट पर आख़िरी साँस ली। उसके कुछ देर पहले उनके दिल ने काम करना बंद कर दिया था। डॉक्टरों ने वापस जान लाने की भरपूर कोशिश की।वह नहीं होना था। 57 साल के साईबाबा की मौत पित्ताशय की पथरी निकालने के बाद हुई पेचीदगी के कारण हो गई।पित्ताशय में पथरी और उसे निकलने की सर्जरी आम है।उसके चलते मौत हो जाए, यह असाधारण है। लेकिन ऐसा हो सकता है।मामूली से मामूली सर्जरी में गड़बड़ी हो सकती है और आदमी मर भी सकता है। डॉक्टर मित्र ने बतलाया कि पथरी निकालनेवाली प्रक्रिया में 1% आशंका मौत की है। साईबाबा उसी 1% में होने थे। ऐसे प्रसंग में हम मन मसोस कर रह जाते हैं लेकिन उसे स्वीकार कर लेते हैं। साईबाबा के साथ दुर्भाग्य से यही हुआ। लेकिन हम क्यों इसे सर्जरी से पैदा हुई पेचीदगी के चलते हुई मौत नहीं मान पा रहे?
क्यों हमें लग रहा है कि साईबाबा की यह मौत मौत नहीं है, हत्या है? हत्या जिसकी ज़िम्मेवारी राज्य को और न्यायपालिका को लेनी ही चाहिए?