बीते दस सालों में चुनावों में कॉंग्रेस की अनगिनत पराजयों और बहुत सी परेशानियों के बावजूद, तमाम तथाकथित चुनावी चिंतकों की ‘तरीके बदलने’ की सलाह के बावजूद कॉंग्रेस ने अपने आदर्शों से समझौता नहीं किया। इसके पीछे कॉंग्रेस का स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास और वर्तमान गांधी-नेहरू की युवा पीढ़ी का ही योगदान है।
सांसद बन प्रियंका गांधी कितना बदल पाएँगी राजनीतिक नैरेटिव?
- विमर्श
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- 27 Oct, 2024

वायनाड से उपचुनाव लड़ रहीं प्रियंका गांधी एक संदेश दे रही हैं कि नेताओं को जनता के सामने आकर झुकना चाहिए, विनम्र बने रहना चाहिए और ज़िम्मेदार होना चाहिए। क्या वह ऐसा राजनीतिक नैरेटिव सेट कर पाएँगी?
इस युवा पीढ़ी की ही कॉंग्रेस नेता प्रियंका गांधी ने बुधवार को वायनाड, केरल से लोकसभा उम्मीदवार के तौर पर नामांकन भर दिया है। जिस तरह वायनाड ने अपने पूर्व सांसद राहुल गांधी और कॉंग्रेस को अभी तक अपना समर्थन दिया है उससे लगता है कि बहुत जल्दी ही प्रियंका गांधी भी लोकसभा में नजर आयेंगी। कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की विचारधारा से परे जाकर भी यदि सोचा जाए तो प्रियंका गांधी, लोकसभा में एक क़ीमती ‘एसेट’ से कम नहीं होने वाली हैं। एक ऐसे दौर में जब नैतिकता और सच राजनीति से बहुत दूर जा चुके हैं, जहाँ 18 वर्ष से अधिक का प्रत्येक भारतीय नागरिक मात्र एक ‘वोटर’ के रूप में पहचाना और इस्तेमाल किया जा रहा है वहाँ लोकसभा में प्रियंका गांधी जैसे नेताओं का आना एक अहम मोड़ हो सकता है। इसका मात्र एक कारण है वह है मतदाताओं, लोकतंत्र और महिलाओं के प्रति उनका बिल्कुल नया और क्रांतिकारी नज़रिया।