बीते दिनों बहराइच में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा में एक 22 वर्षीय युवा रामगोपाल मिश्रा की मौत हो गई। राम गोपाल को किसी ने गोली मारी थी। इससे पहले राम गोपाल एक छत पर चढ़कर वहाँ मौजूद एक धर्म विशेष के झंडे को उखाड़ रहा था। इसी बीच किसी असामाजिक तत्व ने उसे गोली मार दी। राम गोपाल इस धार्मिक जुलूस का हिस्सा था। सवाल यह है कि धार्मिक जुलूस में किसी अन्य धर्म के झंडे को उखाड़ने की कौन सी परंपरा है? और यह भी कि आज लगभग हर धार्मिक जुलूस के दौरान सांप्रदायिक तनाव पैदा करना इतना आसान कैसे हो गया है? कौन है जो दो समुदायों के बीच झगड़ों की संभावनाओं को धार्मिक त्योहारों के बीच ही तलाशता है? और क्यों?
बेरोज़गारों को हिंसक धार्मिक भीड़ में तब्दील कर दिया गया?
- विमर्श
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- 20 Oct, 2024

करोड़ों लोग अपना और अपने परिवार का पेट कैसे भरते होंगे? यदि पेट भर भी दिया गया तो इस महंगाई में उस भोजन की गुणवत्ता क्या होगी?
इन सवालों के जवाब खोजने के लिए भारत की सामाजिक आर्थिक तस्वीर को यहाँ की राजनैतिक महत्वाकांक्षा के साथ मिलाकर पढ़ना पड़ेगा। मंगलवार को विश्व बैंक ने ‘Poverty, Prosperity and Planet: Pathways out of the Polycrisis’ नाम की एक रिपोर्ट जारी की। इसके अनुसार भारत में लगभग 13 करोड़ लोग ‘अत्यधिक ग़रीबी’ की अवस्था में हैं। अत्यधिक ग़रीबी का अर्थ है कि ये करोड़ों भारतीय नागरिक प्रतिदिन ₹181 रुपये (या $2.15) से कम में अपना जीवन गुज़ारने को बाध्य हैं। यदि ग़रीबी नापने का मानक ₹576 (यानी $6.85) को बना दिया जाय तो भारत में ग़रीबों की संख्या 1990 के आंकड़े को भी पार कर जाएगी। वर्तमान में लगभग 55 करोड़ लोग ऐसे हैं जो प्रतिदिन ₹576 से कम में गुज़र बसर करने को बाध्य हैं।