कोई दल या व्यक्ति चुनाव क्यों जीतना चाहता होगा? थोड़ी देर के लिए यह मान लिया जाए कि लोग चुनाव कुर्सी के लालच में नहीं जीतना चाहते होंगे, यह भी मान लिया जाए कि लोग जनता की सेवा ‘सच्चे मन’ से करना चाहते हैं, एक पारदर्शी सरकार लाना चाहते हैं, भ्रष्टाचार खत्म करना चाहते हैं और बस सिर्फ एक ‘चौकीदार’ की हैसियत से ही कुर्सी पर बैठेंगे ताकि देश और जनता के साथ न्याय हो सके। यद्यपि यह सब लगभग आदर्श के क़रीब है लेकिन फिर भी थोड़ी देर के लिए माना जा सकता है। अब जब चुनाव जीतने की प्रक्रिया के दौरान कोई नेता जनता के सामने दिए गए अपने भाषण में कहता हो कि “चुनाव में आप कमल का बटन ऐसे दबाओ कि उनको (कांग्रेस को) फांसी दे रहे हो।” तो इससे क्या अंदाजा लगाया जाना चाहिए?
प्रधानमंत्री क्यों बोले- ‘कमल का बटन ऐसे दबाओ कि उनको फाँसी दे रहे हो’
- विमर्श
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- 19 Nov, 2023

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाषा को लेकर लगातार सवाल क्यों उठते रहे हैं? पीएम ने आख़िर क्यों कहा- “चुनाव में आप कमल का बटन ऐसे दबाओ कि उनको फांसी दे रहे हो।”?
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजस्थान के बायतु में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल किया था। मात्र एक विधानसभा चुनाव को जीतने की कोशिश में और कुर्सी को बीजेपी के पक्ष में हासिल करने के लिए, सम्पूर्ण भारत और इसके मूल्यों को शर्मसार कर दिया? मैं बिल्कुल यह नहीं बताऊँगी कि भारत के प्रधानमंत्री के संवैधानिक दायित्व क्या हैं और वह किन-किन संस्थाओं का प्रमुख होता है और साथ ही यह कि वह हर आलोचना के बावजूद भारत की सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधि होता है। कहने को तो भारत के गृहमंत्री अमित शाह भी शाहीनबाग में चल रहे सीएए-एनआरसी प्रदर्शन के ख़िलाफ़ बोल चुके थे कि “ऐसे बटन दबाना कि करंट शाहीनबाग में लगे”। अपने देश के शांतिपूर्ण नागरिक प्रदर्शनों के विरोध में ऐसी अभद्र टिप्पणी, वह भी सिर्फ चुनाव जीतने के लिए, शोभा नहीं देती। इससे भी बदतर भाषा का इस्तेमाल अनुराग ठाकुर कर चुके हैं जिसमें उन्होंने एक समुदाय विशेष को टारगेट करते हुए “देश के गद्दारों को…गोली मारो…” जैसी भाषा का इस्तेमाल किया था।