बीते दिनों एक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक ने एक अंग्रेजी अखबार में लिखा कि “लोकतंत्र में चुनाव किसी युद्ध से कम नहीं होते”। लेखक के विचारों का सम्मान करते हुए भी मुझे इस बात से गहरी असहमति है कि लोकतंत्र में चुनावों को युद्ध के साथ जोड़कर देखा जाए। भले ही यह सुनने में बहुत आकर्षक लगता हो लेकिन जरा सोचकर देखिए ‘सुन जु’ या मैकियावेली को लोकतंत्र में शामिल करने के क्या खतरे हो सकते हैं। युद्ध शब्द आते ही हिंसा परछाई की तरह शामिल हो जाती है। चाहे युद्ध दो सेनाओं के बीच हो, दो विचारों के बीच या फिर लोकतंत्र में दो दलों के बीच, हिंसा अपना स्थान बना ही लेती है।
लोकतंत्र में चुनाव को 'युद्ध' मानने की गलती नहीं करनी चाहिये
- विमर्श
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- 29 Mar, 2025

इस चुनाव को युद्ध में बदल दिया गया है। मोदी और भाजपा इस युद्ध को लड़ रहे हैं। वे देश के 80 फीसदी लोगों को बता रहे हैं कि हाशिए पर पड़े 20 फीसदी लोग कैसे उनके लिए खतरा हैं। 2024 का आम चुनाव मोदी के साम्प्रदायिक भाषणों के लिए इतिहास में याद रखा जाएगा। स्तंभकार वंदिता मिश्रा ने मोदी के भाषणों के आलोक में इस चुनाव पर विचारोत्तेजक टिप्पणी की है। जरूर पढ़िएः