बीते दिनों एक वरिष्ठ पत्रकार और लेखक ने एक अंग्रेजी अखबार में लिखा कि “लोकतंत्र में चुनाव किसी युद्ध से कम नहीं होते”। लेखक के विचारों का सम्मान करते हुए भी मुझे इस बात से गहरी असहमति है कि लोकतंत्र में चुनावों को युद्ध के साथ जोड़कर देखा जाए। भले ही यह सुनने में बहुत आकर्षक लगता हो लेकिन जरा सोचकर देखिए ‘सुन जु’ या मैकियावेली को लोकतंत्र में शामिल करने के क्या खतरे हो सकते हैं। युद्ध शब्द आते ही हिंसा परछाई की तरह शामिल हो जाती है। चाहे युद्ध दो सेनाओं के बीच हो, दो विचारों के बीच या फिर लोकतंत्र में दो दलों के बीच, हिंसा अपना स्थान बना ही लेती है।