वर्ष 2023 के लिए भारत G20 की अध्यक्षता कर रहा है। G20 एक अन्तरसरकारी मंच है जिसमें 19 देशों के अतिरिक्त यूरोपीय संघ (EU) और अफ्रीकी संघ (AU) भी शामिल हैं, इसलिए इसे G21 के रूप में भी संबोधित किया जाता है। इस मंच का प्रमुख कार्य वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन अल्पीकरण और सतत विकास व अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर कार्य करना है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं के समूह के रूप में चिन्हित यह संगठन विश्व की दो तिहाई जनसंख्या, 75% व्यापार और 80% जीडीपी को प्रत्यक्ष रूप से समाहित करता है। 1999 में औपचारिक शुरुआत के बाद 2008 की लंदन समिट के बाद जी20 एक वैश्विक आर्थिक मंच के रूप में उभरा। 2009 के अपने पिट्सबर्ग शिखर सम्मेलन में, जी20 ने स्वयं को अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और वित्तीय सहयोग के लिए प्राथमिक स्थल घोषित किया।
G20, सनातन धर्म और दुनिया के सामने भारत की तस्वीर
- विमर्श
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- 10 Sep, 2023

जी20 देशों के सामने भारत की कैसी तस्वीर गई? क्या मोदी सरकार ने जिस तरह की पेश करने की कोशिश की उस तरह की या फिर हक़ीकत वाली?
नवंबर 2022 में भारत को एक साल के लिए जी20 के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्काल ही इसे “भारतीयों के लिए गर्व का विषय” कहकर अपनी प्रशंसा जाहिर की। एक बैठक के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि "भारत की G20 प्रेसीडेंसी पूरे देश की है और यह पूरी दुनिया को भारत की ताकत दिखाने का एक अनूठा अवसर है। भारत के प्रति वैश्विक जिज्ञासा और आकर्षण है। G20 प्रेसीडेंसी पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए महान अवसर लाई है”। इसे पढ़कर ऐसा लगेगा मानो G20 का आयोजन ओलंपिक खेलों या फुटबॉल विश्वकप का आयोजन है जहां से लाखों करोड़ों की संख्या में रोजगार के अवसर उत्पन्न होने वाले हैं। या यह कोई ऐसा आयोजन है जिसकी अध्यक्षता आजतक किसी को नहीं मिली और भारत ही वह देश है जिसे इस संगठन का अध्यक्ष बनने का मौका मिला है? वास्तविकता तो यह है कि भारत को अध्यक्ष बनने का मौका मिला है G20 के अपने नियमों के कारण जिसमें रोटेशन प्रणाली अपनाई जाती है। इसके तहत19 देशों को 5 समूहों में बाँट दिया गया है- समूह-1, समूह-2, लैटिन अमेरिका(समूह-3), पश्चिमी यूरोप(समूह-4) और पूर्वी एशिया(समूह-5)। प्रत्येक वर्ष एक समूह का नंबर आता है, उसमें स्थित देश अपने में से किसी एक को सहमति से अध्यक्ष चुन लेते हैं। G20 अध्यक्ष का चयन करने के लिए संबंधित समूह के देशों को आपस में बातचीत करने की आवश्यकता होती है। भारत को समूह-2 में रखा गया है इसमें भारत के अतिरिक्त 3 अन्य देश- रूस, दक्षिण अफ्रीका और तुर्किए (टर्की) शामिल हैं। जब 2023 की अध्यक्षता के लिए समूह-2, जिसमें भारत है, का नंबर आया तब भारत को अध्यक्ष बनने के लिए मात्र दो और देशों की सहमति चाहिए थी। रूस युद्ध में संलग्न होने के कारण किसी भी समिट का आयोजन करने की स्थिति में नहीं है इसलिए वह रेस से दूर रहा होगा, दूसरा यह कि रूस पहले भी 2013 में एक बार अध्यक्षता कर चुका है इसलिए दोबारा अध्यक्षता के लिए उसका आग्रह लगभग असंभव था। और निश्चित रूप से भारत के साथ नेहरू के जमाने से चले आ रहे आत्मीय संबंध रूस को सदा से भारत की ओर ही खड़ा करते रहे हैं। इसलिए भारत को अब सिर्फ तुर्किए और दक्षिण अफ्रीका में से एक का सहयोग चाहिए था जिसे भारत ने आसानी से हासिल कर लिया। इसका मतलब यह हुआ कि भारत को अध्यक्षता मिलना कोई वैश्विक और चमत्कारिक घटना नहीं बल्कि एक समूह के नियमों और भारत के ऐतिहासिक संबंधों का परिणाम थी जिसे वर्तमान सरकार कुछ अलग तरह से पेश करने की कोशिश कर रही है।