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फोटो साभार: ट्विटर/@amitabhk87

G20, सनातन धर्म और दुनिया के सामने भारत की तस्वीर

वर्ष 2023 के लिए भारत G20 की अध्यक्षता कर रहा है। G20 एक अन्तरसरकारी मंच है जिसमें 19 देशों के अतिरिक्त यूरोपीय संघ (EU) और अफ्रीकी संघ (AU) भी शामिल हैं, इसलिए इसे G21 के रूप में भी संबोधित किया जाता है। इस मंच का प्रमुख कार्य वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन अल्पीकरण और सतत विकास व अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर कार्य करना है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं के समूह के रूप में चिन्हित यह संगठन विश्व की दो तिहाई जनसंख्या, 75% व्यापार और 80% जीडीपी को प्रत्यक्ष रूप से समाहित करता है। 1999 में औपचारिक शुरुआत के बाद 2008 की लंदन समिट के बाद जी20 एक वैश्विक आर्थिक मंच के रूप में उभरा। 2009 के अपने पिट्सबर्ग शिखर सम्मेलन में, जी20 ने स्वयं को अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और वित्तीय सहयोग के लिए प्राथमिक स्थल घोषित किया। 

नवंबर 2022 में भारत को एक साल के लिए जी20 के अध्यक्ष के रूप में चुना गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्काल ही इसे “भारतीयों के लिए गर्व का विषय” कहकर अपनी प्रशंसा जाहिर की। एक बैठक के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि "भारत की G20 प्रेसीडेंसी पूरे देश की है और यह पूरी दुनिया को भारत की ताकत दिखाने का एक अनूठा अवसर है। भारत के प्रति वैश्विक जिज्ञासा और आकर्षण है। G20 प्रेसीडेंसी पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए महान अवसर लाई है”। इसे पढ़कर ऐसा लगेगा मानो G20 का आयोजन ओलंपिक खेलों या फुटबॉल विश्वकप का आयोजन है जहां से लाखों करोड़ों की संख्या में रोजगार के अवसर उत्पन्न होने वाले हैं। या यह कोई ऐसा आयोजन है जिसकी अध्यक्षता आजतक किसी को नहीं मिली और भारत ही वह देश है जिसे इस संगठन का अध्यक्ष बनने का मौका मिला है? वास्तविकता तो यह है कि भारत को अध्यक्ष बनने का मौका मिला है G20 के अपने नियमों के कारण जिसमें रोटेशन प्रणाली अपनाई जाती है। इसके तहत19 देशों को 5 समूहों में बाँट दिया गया है- समूह-1, समूह-2, लैटिन अमेरिका(समूह-3), पश्चिमी यूरोप(समूह-4) और पूर्वी एशिया(समूह-5)। प्रत्येक वर्ष एक समूह का नंबर आता है, उसमें स्थित देश अपने में से किसी एक को सहमति से अध्यक्ष चुन लेते हैं। G20 अध्यक्ष का चयन करने के लिए संबंधित समूह के देशों को आपस में बातचीत करने की आवश्यकता होती है। भारत को समूह-2 में रखा गया है इसमें भारत के अतिरिक्त 3 अन्य देश- रूस, दक्षिण अफ्रीका और तुर्किए (टर्की) शामिल हैं। जब 2023 की अध्यक्षता के लिए समूह-2, जिसमें भारत है, का नंबर आया तब भारत को अध्यक्ष बनने के लिए मात्र दो और देशों की सहमति चाहिए थी। रूस युद्ध में संलग्न होने के कारण किसी भी समिट का आयोजन करने की स्थिति में नहीं है इसलिए वह रेस से दूर रहा होगा, दूसरा यह कि रूस पहले भी 2013 में एक बार अध्यक्षता कर चुका है इसलिए दोबारा अध्यक्षता के लिए उसका आग्रह लगभग असंभव था। और निश्चित रूप से भारत के साथ नेहरू के जमाने से चले आ रहे आत्मीय संबंध रूस को सदा से भारत की ओर ही खड़ा करते रहे हैं। इसलिए भारत को अब सिर्फ तुर्किए और दक्षिण अफ्रीका में से एक का सहयोग चाहिए था जिसे भारत ने आसानी से हासिल कर लिया। इसका मतलब यह हुआ कि भारत को अध्यक्षता मिलना कोई वैश्विक और चमत्कारिक घटना नहीं बल्कि एक समूह के नियमों और भारत के ऐतिहासिक संबंधों का परिणाम थी जिसे वर्तमान सरकार कुछ अलग तरह से पेश करने की कोशिश कर रही है। 

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भारत को G20 की अध्यक्षता मिलने के बाद पीएम मोदी ने एक ब्लॉग लिखा जिसमें उन्होंने लिखा कि "आइए हम भारत की G20 की अध्यक्षता को संरक्षण ,सद्भाव और उम्मीद की अध्यक्षता बनाने के लिए मिलकर काम करें"। साथ ही “वसुधैव कुटुंबकम” और अंग्रेजी में “वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर”  को अपना लक्ष्य घोषित किया, लेकिन जहां दुनिया को दिखाने और बताने के लिए उनके पास ‘वैश्विक’ लक्ष्य हैं वहीं अपने देश में उनकी सोच विस्तार की जगह ‘संकुचन’ और रूढ़ियों को अपना आदर्श मानती हुई प्रतीत होती है। तमिलनाडु के एक मंत्री उदयनिधि स्टालिन के द्वारा सनातन धर्म पर विवादित टिप्पणी के बाद पीएम मोदी ने प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा ‘सनातन धर्म को धमकी देने वाला बयान स्वीकार्य नहीं है’, उन्होंने अपने मंत्रियों से कहा कि ‘सनातन पर बयान का सख्ती से विरोध करें’। स्टालिन के बयान के बाद कुछ ही समय पर पीएम मोदी की प्रतिक्रिया आ गई, उनके मंत्री और प्रवक्ता भी बोल उठे, एक पार्टी के तौर पर यह सब अच्छा लग सकता है लेकिन मेरा प्रश्न यह है कि जिस सनातन धर्म के बारे में स्टालिन ने विवादित टिप्पणी की थी उसमें महिलायें शामिल हैं या नहीं? जब महिलाओं का सड़कों पर अपमान होता है, सरकार में बैठे लोग बलात्कारियों और शोषणकर्ताओं को बचाते हैं तब सनातन धर्म को नुकसान होता है या नहीं? महिला पहलवानों के यौन शोषण पर पीएम मोदी खामोश रहे, सनातन धर्म भी खामोश रहा और सनातन धर्म के पहरेदार भी, ऐसा क्यों? मणिपुर में, सीएम बिरेन सिंह के अनुसार, सैकड़ों शर्मनाक घटनाएं महिलाओं के साथ हुईं, पीएम मोदी बोले क्या? 
सनातन धर्म पर स्टालिन की टिप्पणी के बाद जिस तरह पीएम मोदी हरकत में आए उससे लगता है कि चोट सनातन धर्म और पीएम मोदी दोनों को लगी है! अगर ऐसा है तो पूछा जाना चाहिए कि स्वयं को सनातनी कहने वाला नरसिंहानन्द जब महिलाओं पर शर्मनाक टिप्पणी करता है तब दोनों को चोट लगती है या नहीं? जब महिलाओं को मंदिरों के गर्भगृहों में जाने से रोक दिया जाता है, दलितों को मंदिरों में प्रवेश पर अब भी रोक लगाई जाती है तब दोनों को तकलीफ होती है या नहीं? जब शनि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक लगाई जाती है तब भी सनातन धर्म और पीएम मोदी कुछ बोलते हैं क्या? ...शायद नहीं! कभी नहीं! इसीलिए आधुनिक भारत की नींव रखने वाले आंबेडकर और नेहरू जैसे नेताओं और सम्पूर्ण संविधान सभा ने सर्वसम्मति से यह फ़ैसला किया कि वर्तमान भारत की नींव सनातन या किसी अन्य धर्म पर आधारित नहीं होगी, यदि कहीं इसका आधार निर्मित किया जाएगा तो वह है भारत का संविधान, और कहीं नहीं! पीएम मोदी को यह समझ जाना चाहिए था कि वह संविधान की शपथ लेकर, संविधान के आधार पर प्रधानमंत्री बने हैं न कि सनातन धर्म की शपथ लेकर। जब तक वह प्रधानमंत्री पद पर हैं उन्हें शक्ति संविधान ही देगा और संविधान ही उनपर तब रोक लगाएगा जब वो अपनी शक्तियों का प्रयोग संविधान के अनुसार नहीं करेंगे। इसलिए पीएम मोदी को ग़ुस्सा, तकलीफ और क्षोभ तब होना चाहिए जब कोई उनके शक्ति स्रोत और राष्ट्र के आधार संविधान को नुक़सान पहुंचाने के बारे में सोचता है।
धर्म प्रधानमंत्री का विषय नहीं है, न ही राष्ट्र का विषय है। राष्ट्र का एक ही धर्म है संविधान और प्रधानमंत्री जी को अपने ‘राजधर्म’ का पालन करना चाहिए।

प्रोफेसर अर्नेस्ट बार्कर ने भारत के संविधान की तारीफ करते हुए, प्रस्तावना में अंतर्निहित आदर्शों की अवहेलना पर चेताया है उन्होंने कहा कि “….यदि राष्ट्रीय समरसता की समस्या मुँह बाये खड़ी है और बंधुता की कोई भावना नहीं है, यदि समाज के कुछ अंगों को कम शिक्षा, निम्न वंश या अन्य किसी भी कारण से बाहरी समझा जाता है तो समान स्वतंत्र जीवन का आदर्श कभी प्राप्त नहीं हो सकता…”। 

धर्म को आधार बनाकर देश को चलाना, अपनी बात रखना और यह तय करना कि इससे चुनाव की नैय्या पार होगी, न सिर्फ संविधान के साथ छल है बल्कि उस विश्वास के साथ भी छल है जिसके भरोसे करोड़ों दलित और आदिवासी खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। संविधान और वंचितों के मुद्दे के ऊपर धर्म को रखना देश के अंदर विश्वास के संकट को बढ़ाएगा, जोकि निश्चित रूप से प्रधानमंत्री जी नहीं चाहेंगे। 

भारत के प्रधानमंत्री नहीं चाहेंगे कि G20 के महत्वपूर्ण माहौल में दुनिया भर के नेता भारत की पहचान एक धार्मिक देश के रूप में करें, इसके विपरीत वह चाहेंगे कि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के उद्देश्य के साथ चलने वाला भारत एक ऐसी छवि प्राप्त करे जहां नागरिक का धर्म नहीं बल्कि उसकी भारतीयता मायने रखती हो। साथ ही पीएम यह भी नहीं चाहेंगे कि भारत को विकास के एक बुलबुले के रूप में समझा जाए, इसलिए पीएम को ऐसा कुछ नहीं बोलना चाहिए था जिससे लगे कि भारत आज के पहले कभी कुछ नहीं था और आज सबकुछ हो गया है। राष्ट्र की छवि उसके नेता से ज्यादा बड़ी होती है क्योंकि वो राष्ट्र नहीं है जो बदलता है वह तो नेता होता है जो हर 5-10 सालों में बदल जाता है। इसके बाद भी पीएम मोदी ने पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में भारत के भूत और वर्तमान को लेकर जो कहा वह बड़ा अजीब था।

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पीएम मोदी ने यह भी कहा कि आज भारत वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए भी देखा जाता है। उन्होंने कहा कि “लंबे समय तक, भारत को एक अरब से अधिक भूखे पेट वाले लोगों के देश के रूप में जाना जाता था। लेकिन अब, भारत को एक अरब से अधिक महत्वाकांक्षी मस्तिष्क, दो अरब से अधिक कुशल हाथों और करोड़ों युवाओं के देश के रूप में देखा जा रहा है।” मुझे नहीं पता कि पीएम मोदी ऐसे समय में ये सब क्यों बोल रहे हैं जब पूरा विश्व G20 को लेकर भारत पर नजर रखे हुए है? क्या वो सच में नहीं जानते कि भारत ने उनके सत्ता संभालने से बहुत पहले यह सब हासिल कर लिया था? क्या उन्हें ‘गुट निरपेक्ष आंदोलन’(NAM) के बारे में नहीं पता? क्या वो नहीं जानते कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के विश्व के लिए यह एक अभिनव प्रयोग था जिसकी पृष्ठभूमि 1955 के बांडुंग सम्मेलन में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू व अन्य के नेतृत्व में रची गई थी? क्या उन्हें नहीं मालूम कि 120 देशों की सदस्यता वाला NAM संयुक्त राष्ट्र के बाद सबसे बड़ा अंतरसरकारी संगठन है? क्या पीएम मोदी को नहीं पता कि ब्रेटनवुड्स के बाद की व्यवस्था में स्थापित विश्व बैंक और आईएमएफ़ के निर्माण में भारत शुरुआत से ही शामिल था? क्या उन्हें यह भी नहीं पता कि पहले GATT (आजादी के दो महीने बाद) और बाद में 1995 में बने WTO में भारत शुरुआत से नेतृत्वकर्ताओं में शामिल था? विश्व शांति के लिए किए गए प्रयासों- जैव हथियार अभिसमय, रासायनिक हथियार अभिसमय आदि महत्वपूर्ण मंचों पर भारत मुखरता से विश्व शांति की संरचना तैयार करने में मदद करता रहा है। पीएम मोदी को और सोचना चाहिए जब उन्हें यह कहना था कि एक समय भारत को भूखे नंगों का देश कहा जाता था। कहने को तो कोई भी कुछ भी कह सकता है, लेकिन क्या यह सब भारत के प्रधानमंत्री को अपने मुँह से कहना चाहिए था? 
अनाज की किल्लत झेल रहे भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जब USA मदद के लिए गईं (1966) तो अलबामा के एक अखबार ने उन्हें संबोधित करते हुए ‘भिखारी’ तक कह डाला था। उन्होंने इसे कैसे लिया इसका साक्षी आज पूरा विश्व है जहां भारत का अनाज अनगिनत देशों में निर्यात होता है। उन्होंने सिर्फ भारत के लिए ‘गरीबी हटाओ’ जैसा नारा नहीं दिया बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर जाकर गरीबी के खिलाफ आवाज बुलंद की। आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ का नारा दे रहे हैं, आज दुनिया के तमाम देशों को जलवायु परिवर्तन एक हकीकत नजर आ रही है, आज दुनिया इस रास्ते पर खड़ी है कि अगर एक्शन नहीं लिया गया तो न आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ बचेगा और न ही आने वाली पीढ़ी कभी अस्तित्व में आ पाएगी। लेकिन भारत ने इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में आज से 50 साल पहले ही जलवायु परिवर्तन को न सिर्फ भांप लिया था बल्कि उसे नेतृत्व भी प्रदान किया। 1972 में जलवायु परिवर्तन के लिए दुनिया के पहले आधिकारिक प्रयास का आयोजन स्टॉकहोम में किया गया। इसे स्टॉकहोम कन्वेन्शन (UNCHE) के नाम से जाना जाता है। इसी कन्वेन्शन से जिसकी थीम ‘एक ही पृथ्वी’ थी, UNEP का निर्माण हुआ जिससे अंततः UNFCCC, CBD जैसे संगठनों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ। इसमें भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने ओजस्वी भाषण दिया था। इसकी याद करते हुए, यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक और स्टॉकहोम+50 के महासचिव इंगर एंडरसन ने 18 मई 2022 को डाउन टू अर्थ पत्रिका में लिखा “उस समय भारत की प्रधान मंत्री, इंदिरा गांधी, उपस्थित 113 देशों में से एकमात्र विदेशी सरकार प्रमुख थीं। सम्मेलन में उनका भाषण इस मायने में अभूतपूर्व था कि इसने पर्यावरण संरक्षण को गरीबी उन्मूलन से जोड़ा - जो सतत विकास लक्ष्यों या एसडीजी के प्रमुख सिद्धांतों में से एक है”। आज जिस ओर पूरा विश्व भाग रहा है उस समस्या को समझने और उसे गरीबी से जोड़ने का काम इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में भारत ने किया था। क्या पीएम मोदी को यह पता था? 
आने वाले 1000 सालों का सपना दिखाने वाले नेतृत्व से सवाल किए जाने चाहिए कि जब संसाधनहीन भारत ने आज़ादी के बाद से इतनी योग्यता हासिल कर ली तब आज जबकि भारत में संसाधनों की कमी नहीं है तब भी वह वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) में 107वें स्थान पर क्यों है, यद्यपि भारत ने इसे नकार दिया है लेकिन नकारने का कोई ठोस कारण नहीं दे सका है।
माना जाता है कि GHI में भारत की इस बुरी स्थिति के पीछे अल्पपोषण और बच्चों में कुपोषण का बढ़ा हुआ स्तर है। मोदी सरकार के अंतर्गत ही किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के नतीजों के अनुसार 5 वर्ष से कम आयु के भारत एक तिहाई बच्चे ठिंगनेपन और कम वजन के शिकार हैं। भारत में अल्पपोषण की जो अवस्था 2009 में थी लगभग वही स्थिति 2020 में भी थी। द हिन्दू की एक रिपोर्ट बता रही है कि उत्तर भारत के मैदान प्रदूषण की दृष्टि से सबसे बुरी स्थिति में हैं, गंगा ग्लैशियर पिघल रहा है, हिमालय के दरकने की खबर भी हर रोज सुनाई पड़ रही है और यह भी कि प्रधानमंत्री का स्वप्न ‘चारधामों के लिए हर मौसम में सड़क’ अब हिमालय और उसके इकोसिस्टम को महंगा पड़ रहा है। 
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महंगाई और बेरोजगारी गरीबी का मजाक बनाने में लगी है। बचा खुचा मजाक उन परदों से उड़ाया जा रहा है जो दिल्ली में झुग्गी बस्तियों को ढकने में लगाए गए हैं। आधुनिक महान भारत में गरीबी छिपाने की चीज है मानो अन्य देशों के राष्ट्र प्रमुखों को यह पता ही न हो कि भारत की वास्तविक स्थिति क्या है। इतनी समझ होनी चाहिए कि आज भारत का कद और इसका स्वतंत्र अस्तित्व भारत के नागरिकों की वजह से है, फिर चाहे वो गरीब हों या अमीर। जिस लोकतान्त्रिक व्यवस्था की वजह से यूरोपीय देशों और अमेरिका में भारत का सम्मान है उस लोकतंत्र की ताकत भी यही भारत के नागरिक ही हैं, इन्हें छिपाकर इनका मजाक बनाने की जरूरत नहीं है।     

भारत ने 1947 के बाद से सतत विकास किया है, कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, कुछ लोगों ने बाधाएं बढ़ाईं पर भारत ने बांध बनाए, लोगों ने धर्म जैसे मसलों पर भारत को रोकना चाहा लेकिन भारत ने मिसाइलें और रॉकेट बनाकर धरती को पार करके अंतरिक्ष तक का सफर किया, परमाणु बम भी बनाया तो यह सोचकर कि कभी पहले उपयोग नहीं करेंगे, विध्वंस में भी शांति के प्रयास जारी रखे, गरीबी और संसाधनों की कमी में भी रोगों से बचाव, सीमाओं की सुरक्षा और देश को पेटभर अन्न खिलाते रहे, विश्व में अपना स्थान बनाते रहे यह सब इसलिए ताकि आनेवाली सरकारें भारत के भविष्य के बारे में सोचें, इसलिए नहीं कि कोई कुर्सी-आधारित, सत्ता-प्रेरित, सत्ता; भारत के पूरे सामर्थ्य को सिर्फ इसलिए नकार दे क्योंकि उसे सत्ता पाने के अपने पत्ते अच्छे न होने के बावजूद चमकाने की जिद हो गई है।

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वंदिता मिश्रा
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