कोई व्यक्ति जब आईआईटी जैसी बड़ी परीक्षा पास करके संस्थान में दाखिला लेता है तो उसे आत्म-गौरव की अनुभूति होती है और जब यह उपलब्धि महिलायें हासिल करती हैं तब उनके भीतर के आत्मविश्वास को तौलना बहुत मुश्किल हो सकता है। घुटन भरे भारतीय समाज के दो-मुँही ढांचे में महिलाओं को परिवारों से मिलने वाला समर्थन अक्सर अपर्याप्त होता है इसके बावजूद IIT-JEE पास करना और बाहर निकलकर उच्च शिक्षा ग्रहण करना बेहद शानदार अनुभव होता है। लेकिन देश और दुनिया के सर्वोच्च संस्थानों में पहुँचने के बाद भी महिला की ‘देह’ उसका पीछा नहीं छोड़ती। एक छात्र के रूप में उसकी ‘मकैनिक्स’ कितनी अच्छी थी, उसे ‘फ़ंक्शन’ में कितनी महारत हासिल थी या वो रोटैशनल डाइनैमिक्स, फ्रिक्शन व पुली के सवाल कितने आसानी से कर लेती थी किसी को संभवतया इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। किसी को यह जानने में दिलचस्पी नहीं है कि उसकी ऑर्गैनिक केमिस्ट्री ज्यादा अच्छी थी या इनॉर्गैनिक! इतना सबकुछ पढ़के,अंत में पुरुष के लिए वो सिर्फ देह रह जाती है। एक महिला जिसमें असीमित संभवनाएं उमड़ती रहती हैं पर वो सिर्फ एक देह है, इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता, कुछ भी नहीं!