रायबरेली में 7 जनवरी 1921 को हुए 'मुंशीगंज किसान हत्याकांड’ की चर्चा भारत के किसानों की उस जीवट को याद करना है जिसके तहत वे बीते कई सालों से दिल्ली सरकार को निशाना बनाते हुए आंदोलन कर रहे हैं। पंजाब के खनौरी बॉर्डर पर दस महीने से किसानों का धरना जारी है और उनके नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल क़रीब डेढ़ महीने से अनशन करते हुए जान दाँव पर लगाये हुए हैं।
‘मुंशीगंज हत्याकांड’ को 104 साल बाद भी याद करना क्यों ज़रूरी?
- विविध
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- 7 Jan, 2025

फ़सलों के उचित मूल्य की क़ानूनी गारंटी का सवाल देश के किसानों की ‘आज़ादी’ से जुड़ा है। रायबरेली शहर से सट कर बहने वाली सई नदी का पानी एक सौ चार साल पहले यही सपना देखने वाले किसानों के लहू से लाल हुआ था।
फ़सलों के उचित मूल्य की क़ानूनी गारंटी का सवाल देश के किसानों की ‘आज़ादी’ से जुड़ा है। रायबरेली शहर से सट कर बहने वाली सई नदी का पानी एक सौ चार साल पहले यही सपना देखने वाले किसानों के लहू से लाल हुआ था। शहर और मुंशीगंज कस्बे को जोड़ने वाले पुल पर आंदोलनकारी किसानों को घेरकर अंग्रेज़ों के गुर्गे ज़मींदार वीरपाल सिंह के हुक्म पर गोलियों से भून दिया गया था। अंग्रेज़ों के ताबेदार ज़मींदारों के ज़ुल्म और लगान वसूली से उजड़े किसानों के दिलों में बाबा रामचंदर और मदारी पासी जैसे किसान नेताओं ने जो आग भरी थी, उसने किसानों को निर्भय बना दिया था। गाँधी जी के आह्वान पर शुरू हुए असहयोग आंदोलन ने इसे राष्ट्रीय मुक्ति के स्वप्न से जोड़ दिया था। इस गोलीकांड में दर्जनों किसानों की शहादत हुई थी।