मज़दूर आंदोलन ने भले ही 19वीं और 20वीं सदी में यूरोप और दुनिया के कई महाद्वीपों में सत्ता परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया हो लेकिन हमारे देश में यह आंदोलन मज़दूरों के वेतन, कार्य का समय, कार्य के घंटे, सुरक्षा और कल्याण के दायरों तक ही सिमट कर रहा है। ऐसा नहीं है कि देश की आज़ादी या राजनीतिक बदलाव के दौर में मज़दूर आंदोलन नहीं खड़े हुए लेकिन वे भुला दिए गए।