इंग्लैंड की एक ख़बर भारत में इलेक्ट्रिक कार की संभावनाओं के द्वार खोल सकती है। इलेक्ट्रिक कार यानी डीजल-पेट्रोल की बेतहाशा बढ़ती क़ीमतों और ज़हरीले धुएँ से मुक्ति। वैसे, भारत में भी इलेक्ट्रिक कारें चलती हैं लेकिन लंबी दूरी जाने पर चार्जिंग की बड़ी समस्या और ऐसी ही दूसरी समस्याएँ इसकी बढ़ती संभावनाओं के आड़े आ जाती हैं। इन्हीं समस्याओं के समाधान की राह इंग्लैंड ने दिखाई है। 2030 से पूरे इंग्लैंड में डीजल-पेट्रोल की नयी कारें व वैन नहीं बेची जा सकेंगी। यानी इंग्लैंड ने इसके लिए तैयारी पूरी कर ली है। इंग्लैंड ने यह सब कैसे किया और क्या भारत में यह संभव है?
इंग्लैंड की इस योजना को दरअसल 2040 के आसपास लागू किया जाना था, लेकिन बॉरिस जॉनसन सरकार ने इसे एक दशक पहले ही लागू करने की घोषणा कर दी। इससे कार मालिकों से लेकर कार चालकों और कार निर्माताओं में कई सवाल उठे। बिल्कुल उसी तरह से जैसे भारत में यदि कोई व्यक्ति इलेक्ट्रिक कार ख़रीदने जाएगा तो उसके दिमाग़ में सवाल उठेगा।
- एक बार चार्ज करने पर कार कितने किलोमीटर चलेगी?
- ज़्यादा दूरी चलाना हो तो बीच रास्ते में कैसे चार्ज की जा सकेगी?
- कितने घंटे में गाड़ी को चार्ज किया जा सकेगा?
- चार्ज करने में कितना ख़र्च आएगा, गाड़ी कितनी महंगी होगी?
यही वे सवाल हैं जिससे दुनिया के किसी भी देश में अभी तक डीजल-पेट्रोल की कारों या वैन पर प्रतिबंध नहीं लग पाया है। यानी इलेक्ट्रिक कार सड़कों पर नहीं के बराबर ही दिखती हैं।
इंग्लैंड ने इन समस्याओं के समाधान के लिए योजना बनाई है। इस योजना में सबसे बड़ी समस्या है चार्जिंग की। सरकार इसके लिए इंफ़्रास्ट्रक्चर विकसित करेगी।
चार्जिंग प्वाइंट
सड़कों पर चार्जिंग प्वाइंट लगाए जा रहे हैं। इंग्लैंड में फ़िलहाल 30 हज़ार से ज़्यादा चार्जिंग प्वाइंट हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार इंग्लैंड में इतने डीजल-पेट्रोल पंप भी नहीं हैं। कई इलेक्ट्रिक कारों में पहले से ही ऐप इंस्टॉल की हुई रहती हैं जो बताती हैं कि सबसे नज़दीकी कौन सी जगह पर चार्जिंग प्वाइंट उपलब्ध है। सार्वजनिक के साथ-साथ निजी कंपनियों के भी चार्जिंग प्वाइंट हैं जहाँ पर चार्जिंग का भुगतान कर कारों को चार्ज किया जा सकता है। कुछ चार्जिंग प्वाइंट हैं कि आधे से पौने एक घंटे में फुल चार्ज कर देते हैं।
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इन कारों को घर पर भी चार्ज किया जा सकता है। कारों और इसके आकार की बैट्री के अनुसार इसको चार्ज करने में अलग-अलग समय लगता है। घर में इस्तेमाल होने वाले चार्जिंग प्वाइंट में कार को चार्ज करने पर 14 से 24 घंटे तक लग सकते हैं। जल्द चार्जिंग के लिए चार्जिंग प्वाइंट इंस्टॉल करने पर काफ़ी पैसे ख़र्च होते हैं। इंग्लैंड सरकार की योजना है कि ऐसे प्वाइंट इंस्टॉल करने पर 75 फ़ीसदी सरकार ख़र्च उठाएगी। ये चार्जिंग प्वाइंट 12 घंटे में पूरी बैट्री चार्ज कर देंगे।
भारत में भी इलेक्ट्रिक वाहन की योजना
फ़रवरी महीने में ऑटो एक्सपो 2020 का उद्घाटन करते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था कि आने वाले दिनों में भारत दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वाला देश होगा। नितिन गडकरी का इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल पर काफ़ी ज़ोर रहा है और वह इसके प्रति काफ़ी सक्रिय रहे हैं। उन्होंने 2017 में ही कार निर्माता कंपनियों को कहा था कि 2030 तक इलेक्ट्रिक कार ती तरफ़ स्विच करें। उन्होंने चार्जिंग स्टेशनों की योजना और इलेक्ट्रिक वाहन नीति लाने की बात की थी।
नितिन गडकरी ने तो उस दौरान यहाँ तक चेतावनी दे दी थी कि यदि इस दौरान कंपनियों ने इलेक्ट्रिक कार का उत्पादन नहीं बढ़ाया तो तेल पीने वाली और धुआँ उगलने वाली कारों पर बुल्डोजर चलवा दिया जाएगा।
फ़िलहाल, भारत में भी इलेक्ट्रिक कारें बिक रही हैं, लेकिन ये चलन में उतनी ज़्यादा नहीं हैं। बेंगलुरु में इलेक्ट्रिक कारों का चलन बढ़ा है। देश के दूसरे हिस्सों में भी अब धीरे-धीरे इलेक्ट्रिक कारों के प्रति लोगों का ध्यान गया है लेकिन चार्जिंग की समस्या और एक बार चार्ज किए जाने पर सीमित दूरी तक चलने के कारण इसके प्रति वैसा आकर्षण नहीं हो पा रहा है। दुनिया भर में कार बनाने वाली कंपनियाँ इस मामले में अनुसंधान कर रही हैं।
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एक दिक्कत यह भी है कि इलेक्ट्रिक कारों की क़ीमतें भी अपेक्षाकृत ज़्यादा हैं। हालाँकि क़रीब 25 लाख रुपये तक के ख़र्च में भी अब ऐसी कारें मिल जा रही हैं।
इलेक्ट्रिक कारों की सबसे ख़ास बात यह है कि डीजल-पेट्रोल की अपेक्षा इसकी यात्रा काफ़ी किफायती है। एक अनुमान है कि भारत में सामान्य कारें क़रीब 20 किलोमीटर का एवरेज देती हैं। अब यदि 80 रुपये प्रति लीटर पेट्रोल हो तो 320 रुपये में 60 किलोमीटर पहुँचा जा सकता है। अब इलेक्ट्रिक कार पर आने वाले ख़र्च को देखें। महिंद्रा ई2ओ को चार्जिंग के लिए कंपनी दावा करती है कि फुल चार्ज होने के लिए 10 यूनिट बिजली चाहिए होती है। 4 रुपये प्रति यूनिट की दर से 40 रुपये ख़र्च होंगे। क़रीब-क़रीब इतने ही ख़र्च दूसरी कंपनियों के वाहनों पर भी आएँगे।
अब यदि इस नफ़ा-नुक़सान को छोड़ दें तो इलेक्ट्रिक कारों का सबसे अव्वल फ़ायदा तो यह होगा कि इंसानों को ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी साफ़ हवा को बनाए रखने में मदद मिलेगी। इससे बेहतर और क्या हो सकता है!
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