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एआई की अगली होड़ ‘आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस’ में

लिखित कमांड पर नया संगीत बना देन, नई पेंटिंग पेश कर देने या कोई ढीला-ढाला नया सॉफ्टवेयर कोड लिख देने वाली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस 2010 के बाद से ही चर्चा में आने लगी थी। पैटर्न पहचानने में माहिर एआई की बाकी किस्मों से अलगाने के लिए इसे जेनरेटिव एआई कहने का चलन रहा है। ऐसी एआई, जो सिर्फ चीजों को अलग से पहचान लेने तक सीमित रहने के बजाय आपके हुक्म पर कोई नया विजुअल, ऑडियो-वीडियो या कोड जेनरेट करती है। यह धीरे-धीरे विकसित होने वाली तकनीक रही है, हालांकि पिछले कुछ सालों में इसकी रफ्तार बहुत तेज हो गई है। सूचना और मनोरंजन से जुड़े प्रॉडक्शन में बैठे लोग जेन एआई में हो रहे विकास को लेकर चकित होते रहे हैं लेकिन इसको लेकर बड़े पैमाने की कोई चहल-पहल पिछले दशक तक देखने को नहीं मिली। 

सनसनी फैली 2022 के आखिरी महीनों में लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) को लेकर, जिसको जेन एआई का ही एक प्रकार कहा जा सकता है, और जहां नया कंटेंट प्रस्तुत करने का काम पूरी तरह भाषा तक सीमित कर दिया गया है। शुरू में एक शब्द के बाद अगला शब्द सुझाने तक सीमित यह काम लोगों को कुछ खास उत्साहित नहीं करता था, लेकिन जैसे ही यह नया कंटेंट पेश करने तक पहुंचा, इसको बाजार पर छाते देर नहीं लगी। चमत्कार जैसा यह मामला पहली बार अमेरिका में चैटजीपीटी की धमक के साथ दिखाई पड़ा था, और अभी दूसरी बार चीन के चैटबॉट्स डीपसीक वी-3 और डीपसीक आर-1 की इंटरनेशनल रिलीज के साथ हुआ है। इस नए धमाके पर हफ्ते भर के अंदर इतनी सामग्री आ चुकी है कि इसमें कुछ नया जोड़ना जरा पीछे लौटकर ही संभव हो पाएगा।

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टेक्नॉलजी के एक नए दौर के रूप में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अलग-अलग क्षेत्रों को कैसे बदल रही है, इस बारे में पीछे हमने मेडिकल साइंस, मैटीरियल साइंस और स्पेस साइंस को लेकर बात की है। जैसे भाप के इंजन ने एक दौर में जीवन के हर क्षेत्र में दखल बनाया था, वैसा ही बाद में पेट्रो पदार्थों से चलने वाले इंटर्नल कंबस्टन इंजन, बिजली और कंप्यूटर ने किया। वैसा ही कुछ करने की राह पर अभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी है। साइंस-टेक्नॉलजी को एक तरफ रखकर आप मीडिया से लेकर मनोविज्ञान या ज्योतिष तक जीवन का कोई भी क्षेत्र पकड़ लें, उसमें एआई के जमीनी दखल या आगे की संभावनाओं को लेकर कहने को कुछ न कुछ नया जरूर मिल जाएगा। दुर्भाग्यवश, इन पहलुओं पर अभी ज्यादा बातें नहीं हो रही हैं और सारी तवज्जो जेन एआई और एलएलएम ही खींच ले जा रहे हैं। 

एआई होते हुए भी ये दोनों बाकी एआई से निस्संदेह कुछ अलग हैं और अभी की दुनिया में, खासकर अमेरिका और चीन के बीच इनकी मैपिंग करने से पहले हल्की सी झलक हमें उस बुनियादी मामले की भी ले लेनी चाहिए, जिसके लिए यह सारी भागादौड़ी है। बहुत तेज प्रगति के बावजूद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की सारी धाराएं जिस दिशा में अभी बहुत थोड़ा ही आगे बढ़ पाई हैं, वह मामला है आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस (एजीआई) की तलाश का। ऐसी कृत्रिम बुद्धि, जो उलझे हुए लेकिन सबसे जरूरी सवालों का जवाब अधिकतम तथ्यों का विश्लेषण करके साफ ढंग से दे सके और इस मामले में सामान्य इंसानी बुद्धि से ज्यादा वस्तुगत, ज्यादा कारगर साबित हो सके।
मसलन, ‘मेरे घर-परिवार और खुद मेरी सोशल मीडिया पर्सनाल्टी, हमसे जुड़े सारे डेटा, सीवी और कम्युनिकेशन का विश्लेषण करके बताओ कि जिंदगी में कामयाब होने के लिए मुझे पढ़ाई में जुटना चाहिए, कोई हुनर सीखना चाहिए, या पैसे से पैसा बनाने के कारोबार पर फोकस करना चाहिए?’ अट्ठारह से बीस साल की उमर में उठने वाले इस बड़े सवाल से इतर कुछ छोटे सवाल भी साफ जवाबों की मांग करते हुए मुरझा जाते हैं। जैसे ‘अमुक लड़की या लड़के से शादी करना मेरे लिए ठीक रहेगा या दोस्ती तक ही सीमित रहूं?’ यह कि ‘बाजार में अपने पैसे कहां-कहां लगाना इस साल सबसे अच्छा रहेगा?’ या ‘मेरे चुनाव क्षेत्र में एक्सक्लूसिव तौर पर सिर्फ मुझे फायदा पहुंचाने वाले तीन मुद्दे क्या हो सकते हैं?’ या यह कि ‘हवाबाजी से हटकर ग्लोबल वॉर्मिंग रोकने का कारगर रोडमैप क्या होगा?’

एलएलएम के क्षेत्र में अभी दुनिया के सबसे बड़े नाम, ओपेनएआई कंपनी के सीईओ सैम आल्टमैन ने चैटजीपीटी का जो नया 03 संस्करण लांच किया है, उसका महीने का किराया 200 डॉलर (लगभग साढ़े सत्रह हजार रुपये) है और इतनी रकम लगाकर 30 दिन में आप इससे अधिकतम सौ सवाल ही कर सकते हैं।
यानी सवाल सोचने में भी आपको मेहनत करनी पड़ेगी, बात से बात निकलते जाने की ज्यादा गुंजाइश नहीं रह जाएगी। सैम का दावा है कि उनका यह कदम हकीकत में एआई से एजीआई की ओर, आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस की ओर है। ओपेन एआई की यह पहल खुद इस कंपनी के लिए तो एक बड़ी चुनौती है ही, ज्यादा बड़ी बात यह कि सैम आल्टमैन ने  हाल में हुए नुकसान पर सिर धुनने के बजाय पूरी दुनिया के एआई परिवेश को कुछ नए सवालों से रूबरू किया है।  

एक दिन में अमेरिकी शेयर बाजारों के एक ट्रिलियन डॉलर स्वाहा कर देने वाले डीपसीक को लेकर ऐसी बौखलाहट की वजह यह गलतफहमी थी कि चीनी सॉफ्टवेयर इंजीनियर अप्लीकेशन बेस्ड एआई बनाने में चाहे जितने भी माहिर क्यों न हों, जेन एआई और लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) से जुड़े प्रॉडक्ट बनाने में वे अमेरिका की खरबपति कंपनियों के सामने कुछ खास नहीं कर पाएंगे। दुनिया के भविष्य पर अमेरिकी वर्चस्व का सबसे सुरक्षित क्षेत्र इसे ही मानकर डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार पद संभालते ही इसमें 250 अरब डॉलर लगाने की घोषणा भी कर दी।
एक आम समझ और चार धारणाएं इस गलतफहमी की बुनियाद में थीं। आम समझ यह कि अमेरिका को टेक्नॉलजी में चुनौती अब सिर्फ चीन से मिल सकती है। धारणाओं में घुसें तो पहली यह कि चीन आज भी एक मैन्युफैक्चरिंग अर्थव्यवस्था है। एक रणनीति के तहत उसने अपनी एआई रिसर्च को भी उन्हीं कामों तक सीमित कर रखा है, जो उसके फैक्ट्री-बेस्ड कामकाज को आगे ले जाते हों। दो, जेन एआई और एलएलएम के प्रॉडक्ट तकनीकी उन्नयन वाले काम बाद में करेंगे, दिमागी दोहराव के कामों में लगी श्रमशक्ति के एक बड़े हिस्से को गैरजरूरी सबसे पहले बना देंगे। ऐसी तकनीक को बढ़ावा देने का जोखिम चीनी हुकूमत हरगिज नहीं उठाएगी। और तीन, सूचनाओं पर रोक-टोक चीन में इतनी ज्यादा है कि लार्ज लैंग्वेज मॉडल वहां विकसित ही नहीं हो पाएंगे। चौथी और ज्यादा प्रो-ऐक्टिव बात यह कि अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद चीन के पास इस काम के लिए जरूरी कंप्यूटर चिप ही नहीं हैं।

ये धारणाएं बिल्कुल निराधार नहीं थीं लेकिन डीपसीक ने अपने चैटबॉट्स से यह साबित किया है कि लार्ज लैंग्वेज मॉडल पर काम करना उतना जटिल और खर्चीला नहीं है, जितना अमेरिका की सुपर रिच सॉफ्टवेयर कंपनियों ने इसे बना दिया है।
सूचना है कि ओपेन आई के पेड वर्शन (किराया बीस डॉलर प्रति माह) चैटजीपीटी-01 का हर मामले में तुर्की-ब-तुर्की जवाब देने वाला और कुछ मामलों में उससे बेहतर प्रदर्शन करने वाला डीपसीक आर-1 चैटबॉट अपने अमेरिकी प्रतिद्वंद्वी की तुलना में आठवें हिस्से के बराबर कंप्यूटर चिप्स का इस्तेमाल करके और उसके दसवें हिस्से से भी कम रकम लगाकर तैयार किया गया है। अमेरिकी कंपनियों के लिए इससे भी खतरनाक बात यह है कि डीपसीक के दोनों चैटबॉट ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर की तरह पेश किए गए हैं। यानी कुछ भी किराया या कीमत दिए बिना, जेब से एक धेला भी लगाए बिना आप अपनी जरूरत के मुताबिक इसे ढाल सकते हैं।        

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यह बात सही है कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में एआई के फंडामेंटल्स पर जारी काम के बरक्स चीन सरकार का ज्यादा जोर अभी तक एआई के अप्लीकेशन पक्ष पर ही रहा है। हर चीनी कंपनी अपनी जरूरत के हिसाब से एआई विकसित करने में जुटी है और इस क्षेत्र को लेकर चीन से प्रकाशित होने वाले शोधपत्रों में भी ऐसे ब्यौरे ही ज्यादा उभरते हैं। चीन सरकार की ओर से इस मामले में यूनिवर्सिटी-इंडस्ट्री कोऑर्डिनेशन के काम में पूरी मदद मिलने की खबरें भी आती रही हैं। लेकिन अमेरिकी रणनीतिकारों की ओर से एआई के क्षेत्र में चीन की प्राइवेट सॉफ्टवेयर कंपनियों को कमतर आंकने की गलती हो गई। 
अभी सारी तुलनाएं डीपसीक के एलएलएम प्रॉडक्ट्स को पांच-छह अमेरिकी कंपनियों प्रॉडक्ट्स के सामने ही रखकर हो रही हैं। खुद चीन में डीपसीक के प्रतिद्वंद्वी कहीं ज्यादा हैं, इस बारे में तो अभी कोई बात ही नहीं हो रही। देखना है, अगले कुछ सालों में इनमें एजीआई की बाजी कौन मारता है।

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चंद्र भूषण
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