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चीनियों का एक और कारनामा! और ठोस किया फ्यूजन एनर्जी का सपना

चीन ने अपनी एक प्रयोगशाला में दस करोड़ डिग्री तापमान वाले प्लाज्मा को 1066 सेकंड (17 मिनट 46 सेकंड) तक स्थिर रखकर विश्व कीर्तिमान बनाया ही है, फ्यूजन एनर्जी की संभावना को कुछ और करीब लाकर देर-सबेर ग्लोबल वॉर्मिंग का मुकाबला हो पाने की उम्मीद भी जगा दी है। पिछले तीन सालों में इस लैब ने प्लाज्मा को स्थिर रखने के अपने ही रिकॉर्ड को 403 सेकंड के ढाई गुने से भी ऊपर ला दिया है, हालाँकि ऐसे रिकॉर्ड बनाए जाने की ख़बरें चीन के अलावा बीच-बीच में अमेरिका, जापान और कोरिया से भी आती रही हैं। ऊर्जा के क्षेत्र में यकीनन कुछ बहुत बड़ा घटित होने जा रहा है। लेकिन यह एक झटके में हो जाने वाला काम नहीं, कई तरफ़ से चलकर लंबे समय में मंजिल तक पहुंचने वाली वैश्विक परियोजना है और इन ख़बरों का कुछ सिर-पैर समझने के लिए हमें थोड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है।

फ्यूजन एनर्जी परमाणु ऊर्जा का ही एक अलग रूप है, लेकिन अधिक संभावनाशील और कुछ ज्यादा ही कठिन। इसकी मुश्किलों में सीधे जाने के बजाय हम ढाई साल पहले आई एक और चौंकाने वाली ख़बर पर लौटते हैं। 2022 में फ्यूजन एनर्जी के क्षेत्र में एक बड़े ब्रेकथ्रू की घोषणा करते हुए अमेरिका की लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लैबोरेट्री (एलएलएनएल) ने पहली बार किसी फ्यूजन रिएक्शन में लगाई गई एनर्जी से ज़्यादा एनर्जी हासिल करने की बात कही थी। उसने हाइड्रोजन के दो आइसोटोपों ड्यूटीरियम और ट्राइटियम का फ्यूजन लेजर के ज़रिये कराया था और इसमें 2.1 मेगाजूल एनर्जी लगाकर 2.5 मेगाजूल एनर्जी हासिल की थी। इससे कम से कम सिद्धांततः यह बात तय हो गई कि फ्यूजन एनर्जी में नेट गेन संभव है, यह बेकार की कसरत नहीं है। ध्यान रहे, चीन वाले चर्चित प्रयोग के नतीजों में सिर्फ़ तापमान और समय का ज़िक्र है। कितनी ऊर्जा लगाकर कितनी हासिल की गई, ऐसी कोई बात उनके बयान में नहीं है।

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फ्यूजन एनर्जी में ये दोनों दो अलग तरह की चुनौतियां हैं। कम ऊर्जा लगाकर अधिक ऊर्जा हासिल करना, जिसको ‘नेट गेन’ कहते हैं। यह काम ट्रिगर दबाने और गोली चलने जैसा है और अमेरिकियों ने इसमें लीड ले रखी है। यह बहुत नियंत्रित और सूक्ष्म पैमाने पर हाइड्रोजन बम के विस्फोट जैसा ही है, जो काम भारत समेत दुनिया के छह या सात देश कर चुके हैं। लेकिन फ्यूजन से बिजली बनाने के लिए उचित सामग्री को बहुत अधिक दबाव में बहुत देर तक, यूं कहें कि लगातार करोड़ों डिग्री सेल्सियस पर रखना होगा। इस मामले में चीनी अभी यकीनन अपने सभी प्रतिद्वंद्वियों से बहुत आगे हैं। एक्सपेरिमेंट्स फॉर ऐन एडवांस्ड सुपरकंडक्टिंग टोकामाक (ईस्ट) चीन के हेफेई प्रांत में स्थित एक प्रयोगशाला है, जिसने सिर्फ एक चुनौती अपने लिए तय कर रखी है- दस करोड़ डिग्री से ज्यादा गर्म प्लाज्मा को देर तक टिकाकर रखना।

ध्यान रहे, सूरज जैसे तारों की प्रचंड ऊर्जा फ्यूजन से ही निकलती है, लेकिन वहां तारों की कोर में धरती का दस लाख गुना या इससे भी ज्यादा वजन गैसों को दबा रहा होता है। दुनिया की कोई भी लैब किसी गैसीय पदार्थ पर इतना ताकतवर दबाव नहीं बना सकती, लिहाजा अपेक्षाकृत कम दबाव में उसको सूरज की कोर से कई गुना ज्यादा गरम करने पर ही फ्यूजन की शुरुआत की जा सकती है। असल ब्रेकथ्रू तब होगा, जब दोनों मोर्चों पर एक साथ फतह हासिल की जाए। यानी प्लाज्मा को कम से कम दस करोड़ डिग्री सेल्सियस तापमान पर सतत रूप में स्थिर करने का इंतजाम रहे, साथ ही इस काम में जितनी ऊर्जा लगाई जाए, उससे ज्यादा हासिल की जाए। हाइड्रोजन बमों में ट्रिगर का काम एटम बम से लिया जाता है। इससे पता चलता है कि लगाने और पाने, दोनों ही छोरों पर हम किस पैमाने की ऊर्जा की बात कर रहे हैं।

रूसी नाम टोकामाक कई ताकतवर चलायमान चुंबकों वाली एक खास मशीन से जुड़ा है। और प्लाज्मा क्या है? यह परमाणुओं का मलबा है। परमाणुओं के बारे में हम जानते हैं कि इसमें बाहर इलेक्ट्रॉन घूमते हैं और धुरी की जगह नाभिक मौजूद होता है, जिसमें प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बंधे रहते हैं। नाभिक बहुत छोटी चीज है। इसकी मोटाई परमाणु की मोटाई के दस हजारवें हिस्से के बराबर होती है। परमाणुओं का ढांचा बहुत ऊंचे तापमान पर पहुंचकर टूट-बिखर जाता है तो प्लाज्मा बनता है। धनात्मक आवेश वाले नाभिक और ऋणात्मक आवेश वाले इलेक्ट्रॉन एक घोल जैसी स्थिति में आ गए रहते हैं। इस प्लाज्मा को देर तक नियंत्रित करने के बाद ही बिजली बनाने के लिए जरूरी फ्यूजन के बारे में सोचा जा सकता है। लेकिन हाल तक स्थिति यही थी कि प्लाज्मा बनते ही इसके कण तितर-बितर हो जाते थे और यह ठंडा हो जाता था।
चीनियों ने दस करोड़ डिग्री तापमान वाले प्लाज्मा को लगभग 18 मिनट तक स्थिर रखकर यह सुनिश्चित कर दिया है कि थोड़ी और कोशिश से यह काम लगभग सतत ढंग से संभव किया जा सकता है।
इसे फ्यूजन के बिंदु तक ले जाना एक अलग चुनौती है, लेकिन वह अब पहुंच के दायरे में है। असल मुश्किल इससे आगे के काम को लेकर पेश आ रही है। वह यह कि इतने ऊंचे तापमान को देर तक बनाए रखने पर मशीनों का क्या हाल होगा और बिजली बनाने के मुकाम तक इसको कैसे ले जाया जाएगा। 
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काफी पहले से हिसाब लगाया गया है कि बीस से ज्यादा क्षेत्रों में बुनियादी तौर पर नई वैज्ञानिक खोजों से ही इसे संभव बनाया जा सकता है। बानगी के तौर पर देखें कि धरती पर मौजूद कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं है जो पांच हजार डिग्री तापमान पर भाप न बन जाए। मगर आपको चाहिए एक ऐसा बर्तन जो इसका दोगुना टेंपरेचर बिना टेढ़ा-मेढ़ा हुए झेल जाए। तो ऐसे 19 क्षेत्रों पर एक ही छत के नीचे काम चीन की कॉम्प्रीहेंसिव रिसर्च फैसिलिटी फॉर फ्यूजन टेक्नॉलजी (क्राफ्ट) में हो रहा है और विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले उनके 300 वैज्ञानिक इसमें जुटे हैं। उनकी खोजों की टेस्टिंग के लिए सीएफईटीआर (फ्यूजन इंजीनियरिंग टेस्ट रिएक्टर) नाम के एक अलग नाभिकीय संयंत्र पर काम शुरू होने की खबर कोई दो साल पहले आई थी।

फ्यूजन से जुड़े नए वैज्ञानिक काम वाले सभी क्षेत्रों के बारे में कुछ बताना यहां संभव नहीं है। फिर कुछ अंदाजा लगाने के लिए एक-दो बातों का जिक्र किया जा सकता है। ऐसी तकनीकों पर काम चल रहा है जो फ्यूजन चैंबर में उत्पन्न ऊर्जा को तेजी से बाहर करती रहें, चैंबर में उसे देर तक टिकने ही न दें। इस कोशिश के बाद भी फ्यूजन चैंबर का तापमान दस हजार डिग्री तक तो जाएगा ही। क्या समय से कोई कृत्रिम पदार्थ ऐसा बनाया जा सकेगा, जो इस तापमान पर दो-चार मिनट नहीं, दस-बीस साल चल जाए?

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एक बड़ी समस्या बेहद ताकतवर चुंबकों के निर्माण की है, जो फ्यूल को बहुत छोटी जगह में बिल्कुल अधर में लटकाए रखें और वहीं उसे तेजी से घुमाते भी रहें, ताकि वह अधिक से अधिक दबे और किसी हाल में बिखरने न पाए। यहां से आगे अति-उच्च तापमान को तेजी से कामकाजी बिजली में बदलने की चुनौती है। अभी कोयले और गैस से चलने वाले ताप बिजलीघरों में यह क़िस्सा आठ सौ डिग्री सेल्सियस तक और एटमी बिजलीघरों में इससे दो-तीन गुना तापमान पर सुपर-क्रिटिकल भाप बनाकर उससे डायनेमो के पंखे घुमाने का है। इसके दस-बीस गुने तापमान पर कहां की भाप, कहां का डायनेमो! जाहिर है, इस मामले में कई सारे छोटे-छोटे पहलुओं पर बिल्कुल नई नजर से काम करना पड़ रहा है। 

फिर फ्यूजन से पैदा होने वाली बिजली के ट्रांसमिशन का मामला भी और तरह की बिजली जैसा नहीं होगा। एक अनुमान के मुताबिक इसका पोटेंशियल (वोल्टेज) बहुत ज्यादा होगा और इसकी आवाजाही के लिए ग्रिड में भी कुछ बड़े बदलाव करने पड़ेंगे। इसमें कदम-कदम पर ऐसे सुपरकंडक्टिव मैटीरियल की जरूरत पड़ेगी, जो अपेक्षाकृत ऊंचे तापमान पर काम कर सके। ऐसी कोई व्यावहारिक चीज अभी राडार पर भी नहीं है, लिहाजा फ्यूजन में अगले दस साल तो वैज्ञानिक खोज की ख़बरें सुनते ही पार होने हैं। 

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चंद्र भूषण
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