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उत्तराखंड की बीजेपी सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून को और सख्त किया है। सरकार ने इसमें संशोधन करते हुए 10 साल की जेल की सजा का प्रावधान किया है। पिछले कानून में जबरन धर्मांतरण के लिए 5 साल की सजा का प्रावधान था। पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी जबरन धर्मांतरण पर 10 साल की सजा का प्रावधान है।
उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार ने उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलिजन एक्ट, 2018 में संशोधन कर उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलिजन (संशोधन) एक्ट, 2022 बनाया है। पुराने एक्ट में संशोधन का यह फैसला मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया।
राज्य सरकार जल्द होने वाले विधानसभा के सत्र में संशोधन से जुड़ा विधेयक लाएगी। राज्य सरकार ने इसे 10 साल की जेल की सजा के साथ ही संज्ञेय अपराध बनाने वाले संशोधन को भी मंजूरी दे दी है।
राज्य के कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि जबरन धर्मांतरण के मामले में इस संशोधन के साथ राज्य की सरकार उत्तर प्रदेश से भी सख्त कानून बना रही है।
इस साल सितंबर में पुष्कर सिंह धामी सरकार ने संकेत दिया था कि वह राज्य में गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे करा सकती है। इससे पहले उत्तर प्रदेश की सरकार ने इस तरह का सर्वे अपने राज्य में कराया था। उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने कुछ दिन पहले कहा था कि वक्फ की संपत्तियों को अवैध कब्जे और अतिक्रमण से मुक्त कराने के लिए वक्फ बोर्ड बुलडोजर खरीदेगा।
अन्य बीजेपी शासित राज्यों में भी कानून
इस साल अगस्त में हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने भी सामूहिक धर्मांतरण विरोधी विधेयक पारित किया था। यह विधेयक राज्य में विधानसभा चुनाव के ऐलान होने से कुछ दिन पहले पारित किया गया था।
हिमाचल प्रदेश में 2019 के कानून में बल या प्रलोभन के माध्यम से धर्म परिवर्तन के खिलाफ अधिकतम सजा 7 साल थी, जिसे 10 साल कर दिया गया था। इस विधेयक को हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) विधेयक, 2022 नाम दिया गया था।
बीजेपी शासित राज्य कर्नाटक में भी इस साल मई में धर्मांतरण विरोधी विधेयक को लेकर अध्यादेश लाया गया था और इसे राज्यपाल ने मंजूरी दे दी थी। इस साल मार्च में हरियाणा की बीजेपी सरकार ने भी विधानसभा में धर्मांतरण विरोधी विधेयक पास किया था। मध्य प्रदेश और गुजरात में भी ऐसे विधेयक पारित होकर कानून की शक्ल ले चुके हैं।
जबरन धर्मांतरण के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में कुछ दिन पहले सुनवाई हुई थी और अदालत ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। अदालत ने कहा था कि जबरन धर्म परिवर्तन एक बेहद गंभीर मुद्दा है। अदालत ने केंद्र सरकार से हलफनामा भी दाखिल करने को कहा था। जस्टिस अहमद शाह ने कहा था कि जबरन धर्मांतरण देश की सुरक्षा को भी प्रभावित कर सकता है इसलिए केंद्र सरकार इस मामले में अपना रुख साफ करे कि वह जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए क्या कदम उठा रही है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पिछले महीने कहा था कि धर्मांतरण और देश के सीमावर्ती इलाकों में हो रही घुसपैठ से आबादी का असंतुलन बढ़ रहा है। संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबाले ने सख्त धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की मांग की थी। होसबाले ने कहा था कि धर्मांतरण के लिए वर्तमान में जो कानून है, उसे सख्ती से लागू किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि संघ का यह मानना है कि धर्मांतरण कर चुके लोगों को आरक्षण का फायदा नहीं मिलना चाहिए।
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